Lion Pair Akbar And Sita Row: पश्चिम बंगाल इन दिनों कई विवादों से घिरा हुआ है. बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के उत्पीड़न का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि शेर और शेरनी के नाम अकबर-सीता रखने पर नया विवाद खड़ा हो गया. मामला कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने इनके नाम बदलने का आदेश दिया है.


मामले पर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका डाली थी और इसे भावनाएं आहत करने वाला कदम बताया था. जब गुरुवार (22 फरवरी) को हाई कोर्ट में सुनवाई हुई तो राज्य सरकार के वकील ने कहा कि ये नाम तो त्रिपुरा सरकार ने रखे थे. वहीं, जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने कहा कि देश में एक बड़ा वर्ग सीता की पूजा करता है, जबकि अकबर एक मुगल सम्राट थे.


कोर्ट में इस तरह हुई बहस


लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने सवाल करते हुए कहा, “राज्य का रुख क्या है? क्या नामकरण हो चुका है?” इस पर राज्य सरकार ने कहा, “इसका नामकरण त्रिपुरा ने किया है.”


जस्टिस भट्टाचार्य ने पूछा, “इस राज्य के अधिकारियों ने नहीं किया?” जवाब में राज्य सरकार के वकील ने कहा, “मैं दिखाऊंगा कि कैसे नाम रखा गया है. इन जानवरों की एक्सचेंज करने की अनुमति 27 दिसंबर 2023 को मिली. यह सिलीगुड़ी सफारी पार्क और त्रिपुरा चिड़ियाघर के बीच बाघ, तेंदुए आदि समेत कुछ अन्य जानवरों के लिए एक एक्सचेंज प्रोग्राम था.”


इस पर जस्टिस भट्टाचार्य ने पूछा, “नामकरण कहां से हुआ?” जवाब देते हुए वकील ने कहा, “31 जनवरी 2024 को ट्रांसपोर्टेशन ऑर्डर के लिए जानवरों की लिस्ट भेजी गई थी. इसके बाद रिसीविंग सर्टिफिकेट आता है. इसमें जानवरों को सूचीबद्ध किया गया था. इसमें नर शेर को अकबर और मादा शेरनी को सीता कहा जाता है. इसके अलावा जानवरों के अन्य घरेलू नाम भी दिए गए थे.”


फिर जस्टिस भट्टाचार्य पूछते हैं, “क्या ये त्रिपुरा चिड़ियाघर की ओर से जारी किया गया आदेश है?” इसके जवाब में राज्य सरकार ने कहा, “हां, त्रिपुरा राज्य ने जानवरों के नाम और डेटा के साथ ये दस्तावेज सौंपे.”


जस्टिस भट्टाचार्य फिर पूछते हैं, “क्या हम प्रतिवादी के रूप में त्रिपुरा के अधिकारियों को जोड़ सकते हैं? नहीं तो आज इस मुद्दे को कवर नहीं किया जा सकता.” इस पर राज्य सरकार ने कहा, “इस अदालत के पास त्रिपुरा राज्य को पक्षकार बनाकर दिए गए नाम के संबंध में कोई अधिकार नहीं है.”


जस्टिस भट्टाचार्य ने कहा, “फिर तो ये जनहित याचिका होगी. मैंने कल कहा था कि अगर नामकरण नहीं हुआ है तो बात आगे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है. फिर मुद्दा यह है कि क्या याचिका को जनहित याचिका के रूप में फिर से वर्गीकृत किया जाना चाहिए. आज आपने प्रस्तुत किया है कि नामकरण पश्चिम बंगाल राज्य अधिकारियों ने नहीं बल्कि त्रिपुरा की ओर से किया गया था. प्रक्रिया के मुताबिक, त्रिपुरा के अधिकारियों को प्रतिवादी के रूप में जोड़ना होगा.”


जस्टिस भट्टाचार्य आगे कहते हैं, “यह एक संगठन की ओर से दायर रिट याचिका है जिसमें किसी भी निजी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है. दावा किया गया है कि इन शेरों का नाम रखने से एक समूह के लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं. तो फिर यह एक नियमित रिट याचिका क्यों होनी चाहिए? अगर यह जनहित याचिका है तो यह बेंच इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती.”


इस पर सलाहकार कहते हैं, “फिर आप रजिस्ट्रार को इसे जनहित याचिका पीठ के समक्ष रखने का निर्देश देते हुए एक पंक्ति का आदेश पारित कर सकते हैं.” जिस पर राज्य सरकार के वकील ने कहा, “वह भी नहीं किया जा सकता. मैं दिखाता हूं ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता. सबसे पहले, मेरी शिकायत यह थी कि क्या वह व्यक्ति पीड़ित है? क्या यह कानूनी अधिकार का उल्लंघन था?”


इसको लेकर कोर्ट ने कहा, “तो कोई संस्था जनहित याचिका नहीं ला सकती? यह एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है. यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है. हर समुदाय को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. इसलिए अगर ऐसा लगता है कि शेर का नाम रखने से धार्मिक भावना खराब हो रही है तो वे जनहित याचिका दायर कर सकते हैं. अगर कोई व्यक्तिगत अधिकार प्रभावित नहीं होता है तो रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है लेकिन अगर जनहित का कोई तत्व शामिल है तो इसे जनहित याचिका के रूप में सुना जा सकता है.”


इस पर राज्य ने पूछा, “क्या यह जनहित की प्रकृति में है?” वहीं, याचिकाकर्ता ने कहा, “इस पर गौर करने की जरूरत है. मेरे दस्तावेज में कोई नाम नहीं दिया गया है, वे कहते हैं कि नाम दिया गया है. जनहित याचिका अदालत को इसका पता लगाने दीजिए. वही दस्तावेज, वही तारीख, वही हस्ताक्षरकर्ता.”


कोर्ट ने फिर सवाल करते हुए कहा, “लेकिन यह नाम किसने दिया? विवाद का कारण? मैं सोच रहा था कि क्या किसी जानवर का नाम किसी भगवान या पौराणिक नायक या स्वतंत्रता सेनानी या नोबेल पुरस्कार विजेता के नाम पर रखा जा सकता है? क्या हम किसी शेर का नाम स्वामी विवेकानन्द या रामकृष्ण के नाम पर रख सकते हैं? क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आज हम आपके जूलॉजिकल ऑफिसर के पालतू कुत्ते के नामकरण को लेकर विचार नहीं कर रहे हैं. वह पालतू कुत्ते को जो चाहें बुला सकते हैं लेकिन आप एक कल्याणकारी राज्य हैं, यह एक धर्मनिर्पेक्ष राज्य है. आपको सीता और अकबर के नाम पर शेर का नाम रखकर विवाद क्यों खड़ा करना चाहिए?”


इसके जवाब में राज्य सरकार ने कहा, “यह मैं नहीं हूं, हमने उन्हें निमंत्रण नहीं दिया था. वो त्रिपुरा है. मेरे राज्य ने तो चिड़ियाघर में पैदा हुए सभी जानवरों के नाम रखे हैं.” इस पर कोर्ट ने कहा, “आप इसका नाम 'बिजली' या कुछ और रख सकते थे लेकिन शेर और शेरनी का नाम सीता और अकबर!”


फिर राज्य सरकार की ओर से आए वकील ने कहा, “इसका जवाब तो त्रिपुरा देगा. यह सवाल है या कोई प्रतिबंध.”


कोर्ट ने कहा, “आप एक राज्य अधिवक्ता के अलावा एक एएजी भी हैं. क्या आप अपने पालतू कुत्ते का नाम किसी पौराणिक देवता या हिंदू देवता या देवी या पैगंबर के नाम पर रखेंगे? इस विवाद से बचना चाहिए था. अगर इसका नाम है तो राज्य सत्ता को इससे दूर रहना चाहिए और इससे बचना चाहिए. हमारा राज्य कई विवादों से जूझ रहा है. शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर अन्य. विवेकपूर्ण निर्णय लें और विवाद से बचें. इन दोनों जानवरों का नाम कुछ और रखें.”


इस पर राज्य सरकार ने कहा, “हम नाम बदलने पर विचार कर रहे हैं.”


कोर्ट ने कहा, “मैं ये नहीं कह रहा कि शेर का नाम किसने रखा है लेकिन अगर आज आप पालतू कुत्ता या बिल्ली रख सकते हैं तो क्या उसका नाम आप नेशनल हीरो या देवी-देवताओं के नाम रखेंगे. इसलिए मैं आपसे कह रहा हूं उन्हें विवाद से बचने और नाम बदलकर अन्य नाम देने का निर्देश दें. इसके बारे में सोचो. क्या आप किसी शेर का नाम अशोर रखेंगे? सिर्फ सीता ही नहीं मैं शेर का नाम अकबर रखने का भी समर्थन नहीं करता. वह एक बहुत ही कुशल और महान मुगल सम्राट थे. बेहद सफल और धर्मनिरपेक्ष मुगल बादशाह.”


कोर्ट ने आगे कहा, “हमने यह भी सीखा है कि पश्चिम बंगाल राज्य रास्ता दिखाता है. इसलिए अगर त्रिपुरा ने इसे चुनौती नहीं दी, तो पश्चिम बंगाल राज्य इसे चुनौती दे सकता है. क्या आपके पास पालतू कुत्ते हैं? नाम क्या हैं?” इस पर राज्य सरकार के वकील ने कहा, “मेरे पास तीन हैं. टफी, ट्रफल और थिओ.” कोर्ट ने कहा, “विवेकपूर्ण नामकरण. नहीं तो अगली तारीख को अखबार कहेगा कि एएजी ने कुत्तों का नाम राष्ट्रीय नायकों के नाम पर रखा है. आपको उदाहरण पेश करना चाहिए.”


इस पर राज्य सरकार ने कहा, “मैंने नाम बदलने की संभावना तलाशी है. अगर याचिका को जनहित याचिका में बदल दिया जाएगा तो मैं ऐसा नहीं कर सकता. अगर याचिका खारिज हो जाती है तो यह मेरा ऑफ द रिकार्ड अंडरटेकिंग है कि मैं नामांकरण कराऊंगा.”


इस पर कोर्ट ने कहा, “मैं इसे जनहित याचिका के रूप में फिर से वर्गीकृत करने और नियमित पीठ को ट्रांसफर करने के अलावा कोई आदेश पारित नहीं कर सकता.” इसके जवाब में वकील ने कहा, “इसे एक जनहित याचिका के रूप में समझा जाना है तो विचार करने योग्य रखरखाव के तत्व हैं. यह उन पर निर्भर है.”


इस पर कोर्ट ने कहा, “मैं चुनौती की प्रकृति को देखते हुए कोई आदेश पारित नहीं कर सकता. नामकरण के मुताबिक मेरी अंतरात्मा आपके साथ नहीं है, मैं यह बात आपको अदालत के बाहर बता सकता हूं.”


इसको लेकर राज्य सरकार ने पूछा, “क्या पीआईएल अदालत का क्षेत्राधिकार होगा? पश्चिम बंगाल राज्य ने नाम नहीं बताया है.”


इसके जवाब में कोर्ट ने कहा, “कोई भी निजी व्यक्ति अपने पालतू जानवरों का नाम रख सकता है. आप आर्टिकल 12 के प्राधिकारी हैं.”


फिर राज्य सरकार ने कहा, “जिस तरह से सोशल मीडिया और ट्रोल आ रहे हैं वो बहुत ही खराब हैं. वो लोग अकबर और सीता शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं और अर्थ निकाल रहे हैं. हम ये नहीं चाहते हैं. इससे राज्य की छवि खराब होती है.”


इस पर कोर्ट ने कहा, “अगर हममें से किसी को शेरों का नाम रखना होता तो हममें से कोई भी अकबर और सीता का नाम नहीं लेता. क्या हम टैगोर के नाम पर एक शेर का नाम रख सकते हैं?”


राज्य सरकार ने जवाब देते हुए कहा, “यह व्यक्तियों पर निर्भर करता है, संबंधित चिड़ियाघर के निदेशक जिम्मेदार हैं.”


फिर कोर्ट ने सवाल करते हुए कहा, “सीता की भी कई लोग पूजा करते हैं. क्या आप किसी राष्ट्रीय नायक के नाम पर शेर का नाम रखेंगे?”


इस पर राज्य सरकार ने कहा, “शेरों की भी पूजा की जाती है, यह समृद्ध विरासत पर निर्भर करता है.” वहीं सलाहकार ने कहा, “अलीपुर चिड़ियाघर में श्रुति नाम की एक शेरनी है.” जिस पर कोर्ट ने कहा, “हां यही नाम होना चाहिए. बहुत सारे नाम हैं. निर्विवाद नाम. किसी भी जानवर का नाम उन लोगों के नाम पर नहीं रखना चाहिए जिनका नागरिक सम्मान करते हैं.” इस पर राज्य सरकार ने कहा, “हां, हम उस व्यक्ति के नाम पर सम्मान देते हैं लेकिन वह भिन्न होता है.”


इसके बाद कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा, “एक सामाजिक संगठन और निजी व्यक्ति यह याचिका लेकर आए हैं, क्योंकि ये नाम कथित तौर पर एक विशेष धार्मिक समुदाय के लोगों की भावनाओं को आहत करते हैं. इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं के व्यक्तिगत अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, बल्कि उन्होंने हमारे देश के एक विशेष धर्म से संबंधित लोगों के एक बड़े वर्ग के हितों का समर्थन किया है.


कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा, “अधिक से अधिक याचिका को जनहित याचिका के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जा सकता है और अपेक्षित विवरण में संशोधन करके याचिका को जनहित याचिका के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने की अनुमति दी जाती है. अगर ऐसा संशोधन कल तक किया जाता है तो रजिस्ट्री को आवश्यक संख्या आवंटित करके इसे जनहित याचिका के रूप में स्थानांतरित करने और नियमित जनहित याचिका पीठ को भेजने का निर्देश दिया जाता है.”


आदेश में आगे कहा गया, “याचिका मेरी सूची से हटा दी गई है. यह भी प्रस्तुत किया गया कि नामकरण त्रिपुरा के प्राधिकरण की ओर से किया गया था और पश्चिम बंगाल प्राधिकरण इन दो शेरों का नाम बदलने पर विचार कर रहा है. अपने विवेक से पूछें और विवाद से बचें. सुनवाई खत्म, मामला खत्म.”


(लाइव लॉ के इनपुट के साथ)


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