बेंगलुरुः बीएस येदियुरप्पा ने सोमवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. ताकतवर लिंगायत नेता येदियुरप्पा को न केवल लिंगायत समुदाय बल्कि कई कांग्रेस के कई लिंगायत नेताओं और राज्य के विभिन्न लिंगायत मठों के संतों से भी भारी समर्थन मिला. जुलाई की शुरुआत में कर्नाटक भर में विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात की और समर्थन दिया. येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के बाद सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि उनकी जगह कौन लेगा. क्या यह लिंगायत समुदाय से होगा?


लिंगायत राज्य का सबसे बड़ा समुदाय
लिंगायत राज्य का सबसे बड़ा समुदाय है, जिसकी आबादी लगभग 17 प्रतिशत है. करीब 100 विधानसभा सीटों पर लिंगायतो का प्रभाव है. लिंगायत ज्यादातर उत्तरी कर्नाटक में हैं और बीजेपी और येदियुरप्पा के समर्थक हैं. लिंगायत हिंदू शैव कम्युनिटी है जो समाज में समानता के लिए लड़ने वाले बसवन्ना को देवता मानते हैं.  


लिंगायत मठों की राजनीति में भूमिका
कर्नाटक में 500 से अधिक मठ हैं. इनमें से अधिकांश लिंगायत मठ हैं और उसके बाद वोक्कालिगा मठ हैं. राज्य में लिंगायत मठ बहुत शक्तिशाली हैं और सीधे राजनीति में शामिल हैं क्योंकि उनके बड़ी संख्या में फॉलोअर्स हैं. अखिल भारतीय वीरशैव महासभा की 22 जिलों में जमीनी स्तर पर उपस्थिति है और यह लिंगायतों के गढ़ उत्तरी कर्नाटक में मजबूत है. इस संगठन ने भी येदियुरप्पा का समर्थन किया है.  


1990 के बाद कांग्रेस से दूर हुए लिंगायत, येदियुरप्पा का उदय
1990 के दशक तक लिंगायत बड़े पैमाने पर कांग्रेस को को वोट देते रहे. लेकिन 1990 में लिंगायत समुदाय से आने वाले वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के तरीके से लिंगायत कांग्रेस से दूर हो गए. इसके बाद बीजेपी को लिंगायत के काफी वोट मिलने लगे और इससे राज्य की राजनीति में लिंगायत चेहरे के रूप में येदियुरप्पा का उदय हुआ.


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