Jammu And Kashmir: कश्मीर में पहली बार आतंकियों का आंकड़ा 200 से नीचे आ गया है. सेना की श्रीनगर स्थित चिनार कोर के मुताबिक, इस वक्त कश्मीर घाटी में आतंकियों की संख्या 150 रह गई है. इसके लिए पिछले एक साल से चिनार कोर की कमान संभाल रहे लेफ्टिनेंट जनरल डी पी पांडे (Lt Gen DP Pandey) को श्रेय दिया जा रहा है.


लेफ्टिनेंट जनरल डी पी पांडे अपने एक साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद अब श्रीनगर से सेना के महू (मध्य प्रदेश) स्थित वॉर कॉलेज के कमांडेंट के तौर पर जा रहे हैं. उनकी जगह पर लेफ्टिनेंट जनरल अमरदीप सिंह ओजला अब चिनार कोर की कमान संभालेंगे. सोमवार को लेफ्टिनेंट जनरल पांडे ने चिनार कोर का कार्यभार लेफ्टिनेंट जनरल ओजला को सौंप दिया.


महामारी के समय कश्मीर में क्या था आतंकवाद का हाल?


चिनार कोर ने बयान जारी कर बताया कि वर्ष 2021 में ले.जनरल पांडे ने उस वक्त सामरिक महत्व वाली कोर की कमान संभाली थी जब कश्मीर घाटी पूरी दुनिया की तरह कोरोना महामारी का दंश झेल रही थी. लेकिन कश्मीर घाटी में कोरोना के साथ साथ आतंकवाद भी चरम पर था. लेकिन पिछले एक साल में कश्मीर घाटी में सुरक्षा का माहौल काफी बदल गया है.


सेना के मुताबिक, कश्मीर घाटी के भीतर जहां सेना ने सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर आतंकियों को चुन-चुन कर ढेर किया तो एलओसी पर एंटी-इनफिल्ट्रेशन ग्रिड को मजबूत किया गया ताकि पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों की घुसपैठ को रोक जा सके. इसके अलावा पिछले साल एलओसी पर पाकिस्तान से हुए युद्धविराम समझौता का नतीजा था कि सीमावर्ती गांव के लोगों को कम से कम परेशानी का सामना करना पड़ा.




क्यों आई कश्मीर में नए आतंकियों के रिक्रूटमेंट में गिरावट ? 


चिनार कोर के मुताबिक, ले. जनरल पांडे ने उन वाइट कॉलर टेरेरिस्ट और ओजीडब्लू यानि ओवरग्राउंड वर्कर्स पर खासतौर से नकेल कसने का काम किया जिसके चलते पिछले कई सालों से घाटी में आतंकियों की संख्या 200 से नीचे नहीं आ पा रही थी. इसके अलावा कोर कमांडर ने सही रास्ता नाम से एक खास कार्यक्रम की शुरुआत की जिसमें भटके हुए नौजवानों को एक बार फिर से मुख्यधारा में शामिल किया गया. इसमें भटके हुए नौजवानों और आतंकियों के परिवारवालों की भी मदद ली गई. इसका नतीजा ये हुआ कि आतंकियों ने ना केवल सरेंडर किया बल्कि नए आतंकियों की रिक्रूटमेंट में भी गिरावट आई.


क्यों मिला ले.जनरल पांडे को राष्ट्रपति के हाथों अवार्ड? 


ले. जनरल पांडे के कश्मीर घाटी में नेतृत्व का ही नतीजा था कि पहली बार राजधानी, श्रीनगर के लाल चौक पर ना केवल तिरंगा लहराता हुआ नजर आया बल्कि खुद कोर कमांडर उधमपुर स्थित उत्तरी कमान के नए आर्मी कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी और पुलिस के अधिकारियों के साथ ठेले पर पकौड़े खाते हुए नजर आए थे. कोर कमांडर के तौर पर कश्मीर में कुशल सैन्य-नेतृत्व का ही नतीजा था कि उन्हें इसी साल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों उत्तम युद्ध सेवा मेडल यानि यूवाईएसएम से नवाजा गया था. 


मूलत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले ले.जनरल देवेंद्र प्रताप पांडे सेना की सिख लाईट इंफ्रेंट्री यानि सिखलाई के ऑफिसर हैं. कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होनें सोल्जर-सिविलियन कनेक्ट को खासी तवज्जो दी. वे बिना पहले सूचना दिए कश्मीर घाटी के अलग-अलग इलाकों में निकल जाते और स्थानीय लोगों से मुलाकात करते. उनके कार्यकाल में कई ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए गए जिनके बारे में पहले कभी सोचा भी नहीं जा सकता था. इसमें डल झील के आसमान में वायुसेना का एयर-शो और श्रीनगर एयरपोर्ट पर 1947-48 युद्ध की एतेहासिक लैंडिंग का रिक्रेएशन शामिल था.


स्थानीय कश्मीरी नागरिकों ने भी खींची ले.जनरल पांडे की जिप्सी


ले.जनरल डी पी पांडे अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीरी युवाओं में जबरदस्त मशहूर थे. जब भी किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाते तो युवा उनके साथ सेल्फी लगाने के लिए आतुर रहते. उनके बाइक-राइडिंग के शौक के भी युवा दीवाने थे. उन्होनें कश्मीरी समाज में महिलाओं की भागीदारी पर भी खासा जोर दिया. यही वजह है कि सोमवार को जब कोर कमांडर की श्रीनगर स्थित बदामी-बाग (बीबी) कैंट में विदाई समारोह आयोजित किया गया तो सेना के अधिकारियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्थानीय कश्मीरी भी उनकी जिप्सी को खींचते हुए नजर आए.


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