Amit Shah Jammu Kashmir Visit: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के राजौरी में एक रैली को संबोधित करते हुए पहाड़ी, गुर्जर और बकरवाल समुदाय को जल्द आरक्षण देने का एलान किया. अमित शाह ने कहा कि उनका वादा है कि पहाड़ी भी आएंगे और गुर्जर, बकरवाल का एक फीसदी हिस्सा भी कम नहीं होगा. उन्होंने कहा फिक्र करने की जरूरत नहीं है. शाह की इस घोषणा के बाद से पहाड़ियों में काफी उत्साह है. वहीं, गुर्जर समुदाय में शाह के इस एलान के बाद मायूसी है. 


गुर्जर समुदाय में नाराजगी


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस एलान के बाद जहां एक तरफ तो पहाड़ी समुदाय में उत्साह देखने को मिल रहा है. वहीं, गुर्जर समुदाय इस फैसले से खासा नाराज बताया जा रहा है. दरअसल, गुर्जर समुदाय के लोगों को लगता है कि पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने से उनकी नौकरियों और शिक्षा कोटा के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी. इसके अलावा गुर्जरों का मानना है कि पहाड़ी समुदाय के अधिकांश लोग अच्छी स्थिति में हैं और उन्हें एसटी का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए.


पहाड़ियों को एसटी कैटेगरी में शामिल किए जाने की इस घोषणा के बाद यहां के गुर्जरों और बकरवाल समुदाय ने नाराजगी जताई है. गुर्जर और बकरवाल समुदाय को इस बात की चिंता है कि पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से उन पर इसका प्रभाव पड़ सकता है. हालांकि, अमित शाह ने अपनी घोषणा में इस बात का आश्वासन अवश्य दिया है कि किसी भी समुदाय का एक फीसदी भी कम नहीं किया जाएगा.


भाषा के आधार पर आरक्षण से नाराज


केंद्र शासित प्रदेश में पहाड़ियों की आबादी लगभग 6 लाख है, जिनमें से 55 प्रतिशत हिंदू और बाकी मुस्लिम हैं. गुर्जर और बकरवाल समुदाय - जिनके पास पहले से ही 10 प्रतिशत एसटी कोटा है - पहाड़ियों को आदिवासी का दर्जा देने का विरोध कर रहे हैं. उनका यह कहना है कि विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों के मुसलमानों और हिंदुओं को केवल भाषा के आधार पर कोटा नहीं मिलना चाहिए. 


इन इलाकों में बड़ी तादाद में तीनों समुदाय 


जम्मू-कश्मीर के राजौरी और बारामूला में पहाड़ियों के साथ गुर्जर और बकरवाल की भी बड़ी आबादी रहती है. पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देकर बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर सीटें अपने नाम करने का राजनीतिक कदम उठाया है. बीजेपी ने इन दोनों इलाकों में रहने वाले पहाड़ी समुदाय की लंबे समय से मांग के तहत उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने का वादा किया था.


एसटी की मांग पर जोर क्यों?



  • चुनावी मौसम के आसपास अक्सर आरक्षण की मांग फिर से उठना कोई नई बात नहीं है. हालांकि, किसी भी सत्तारूढ़ सरकार ने अब तक इसको मान्यता नहीं दी थी. अगले साल की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने की संभावना है, क्योंकि परिसीमन योजना ने तत्कालीन राज्य के लिए नई चुनावी सीमाएं बना ली हैं. 

  • इसके अलावा जीडी शर्मा (सेनानिवृत्त) के नेतृत्व में एक आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें पहाड़ी समुदाय को आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी.

  • पिछले साल अमित शाह ने नवंबर में जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था. उस समय एक पहाड़ी प्रतिनिधिमंडल ने अमित शाह से मुलाकात कर उनके सामने आरक्षण की मांग रखी थी. 

  • केंद्र सरकार की विभिन्न समितियों द्वारा लगातार समीक्षा के बाद 1991 में गुर्जर-बकरवालों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था. पहाड़ी उनके बहिष्कार से स्तब्ध थे. समय के साथ घाव तो भर ही गए हैं.

  • समय-समय पर किए गए अध्ययनों में सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और पहाड़ियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के प्रमाण भी मिले हैं. 

  • 2014 में, उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) सरकार ने पहाड़ी लोगों के लिए आरक्षण की स्थिति की समीक्षा करने से इनकार कर दिया था. 

  • 2020 में, बीजेपी सरकार ने पहाड़ी लोगों के लिए एक योजना शुरू की - आय के आधार पर 4 प्रतिशत राज्य आरक्षण (8 लाख से कम वार्षिक आय वाले लोगों के लिए)- लेकिन यह भी नाकाफी मानी जाती है. 

  • हाल ही में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की कवायद के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजाति को 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है. वहीं, अनुसूचित जाति के लिए (एससी) के लिए 7 सीट आरक्षित हैं. इस फैसले के बाद बीजेपी में विधानसभा में अपनी दावेदारी को और मजूबत करने में जुटी हुई है.


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