देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के परिचालन संकट के चलते फ्लाइट कैंसिलेशन और देरी से यात्री बेहाल हैं. इसी बीच लोकसभा में गुरुवार (11 दिसंबर, 2025) को पेश सरकारी आंकड़ों ने भारतीय उड्डयन क्षेत्र की एक चिंताजनक तस्वीर सामने रखी। लगातार बढ़ती मांग के बावजूद यह उद्योग फिलहाल बड़े पैमाने पर घाटे में डूबा हुआ है.

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केवल इंडिगो ही मुनाफे मेंनागरिक उड्डयन मंत्रालय की ओर से दिए गए लिखित जवाब के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में इंडिगो ही एकमात्र प्रमुख एयरलाइन रही जिसने मुनाफा कमाया. कंपनी ने इस अवधि में 7,253 करोड़ रुपये का फायदा दर्ज किया. इसके उलट सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया को 3,976 करोड़, एयर इंडिया एक्सप्रेस को 5,832 करोड़, अकासा एयर को 1,986 करोड़ और अलायंस एयर को 691 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. स्पाइसजेट भी घाटे में रही और उसने 56 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया. छोटे स्तर पर परिचालन करने वाली स्टार एयर अपवाद रही, जिसने 68 करोड़ रुपये का मामूली मुनाफा कमाया.

घाटे का सिलसिला पुरानायह आर्थिक संकट नया नहीं है. वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय एयरलाइंस ने कुल 18,600 करोड़ रुपये से अधिक का सामूहिक घाटा उठाया था. अकेले एयर इंडिया ने 11,387 करोड़ रुपये गंवाए, जबकि इंडिगो को भी 316 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. अगले वित्त वर्ष 2023-24 में हालांकि इंडिगो ने जबरदस्त वापसी करते हुए 8,167 करोड़ रुपये का लाभ दर्ज किया, लेकिन बाकी कंपनियां नुकसान के दलदल से नहीं निकल सकीं. एयर इंडिया को 4,444 करोड़ और स्पाइसजेट को 404 करोड़ रुपये का घाटा झेलना पड़ा.

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मांग बढ़ी, पर कर्ज और लागत ने बढ़ाई मुश्किलेंयह स्थिति तब है जब देश में उड़ान भरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. वित्त वर्ष 2024-25 में घरेलू यात्री संख्या 7.7% बढ़कर 16.55 करोड़ पर पहुंच गई. इसके बावजूद विमानन कंपनियां भारी कर्ज, ऊंची परिचालन लागत और कम मार्जिन के चक्र में फंसी हुई हैं. इसी वजह से बाजार में नए खिलाड़ी प्रवेश करने से डर रहे हैं, जबकि मांग लगातार रिकॉर्ड स्तर छू रही है.

इंडिगो संकट से यात्री परेशान, विकल्पों की कमी ने बढ़ाई मुश्किललगभग 65% घरेलू बाजार हिस्सेदारी रखने वाली इंडिगो के हालिया परिचालन संकट ने पूरी प्रणाली को हिला दिया है. क्रू की भारी कमी और नई ड्यूटी-टाइम नियमावली के कारण हजारों उड़ानें रद्द करनी पड़ीं. प्रतिस्पर्धी एयरलाइंस पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही हैं, ऐसे में यात्रियों के पास विकल्प बेहद सीमित रह गए हैं. नतीजतन हवाई अड्डों पर भीड़ बढ़ रही है, किराए आसमान छू रहे हैं और यात्रियों की नाराजगी भी लगातार बढ़ रही है.