नई दिल्ली: संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करने से पहले ही गृह मंत्रालय ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से वीज़ा पर भारत आए नागरिकों के लिए भी अर्थदंड में धर्म के आधार पर लकीर खींच दी है. विदेशी नागरिकों के लिए बदले आव्रजन नियमों में इन तीन मुल्कों के मुस्लिम नागरिकों अगर तय समय-सीमा से अधिक दिनों तक भारत में रहते हैं तो उन्हें अल्पसंख्यकों के मुकाबले कई गुना अधिक पेनल्टी चुकाना होगा.


विदेशों नागरिकों के लिए भारत में नियमन करने वाले गृह मंत्रालय के आव्रजन ब्यूरो के मौजूदा नियमों के मुताबिक बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को जहां निर्धारित वीज़ा अवधि खत्म होने के 90 दिन बीतने पर 100 रुपए की पैनल्टी है. वहीं, मुस्लिमों के लिए इस अवधि का अर्थदंड 300 डॉलर यानी 21 हज़ार रुपये है.


इसी तरह यदि कोई हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई निर्धारित वीज़ा की मियाद को पार कर 2 साल से ज़्यादा वक्त तक रहता है तो उसपर अर्थदंड केवल 500 रुपए है जबकि इन मुल्कों के गैर अल्पसंख्यको के लिए यह पेनल्टी 500 डॉलर यानी करीब 35 हज़ार रुपए की है.



स्वाभाविक है कि इस बदलाव के ज़रिए सरकार ने करीब एक साल पहले ही इन तीन देशों के विदेशी नागरिकों के लिए वीज़ा नियमों में धर्म के आधार पर अंतर की ज़मीन तैयार कर दी थी. लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि नियमों के बदलाव से लेकर नागरिकता संशोधन विधेयक तक सरकार लगातार भारत का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना खराब करने में जुटी है. हालांकि. बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा का कहना था कि सरकार के सामान्य कामकाज में भी साम्प्रदायिकता देखना कांग्रेस की आदत हो गई है.


गौरतलब है कि सरकार ने संसद से पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 में भी बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना से बचने के लिए भारत आए अल्पसंख्यक (हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन, ईसाई) समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है. नए नागरिकता नियम के तहत धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर दिसम्बर 2014 से पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.


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