India-China LAC Row: भारत अब चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए कमर कस चुका है. चीन ने एलएसी (LAC) पर सड़कों का जाल बिछाया है तो भारत ने भी सीमावर्ती इलाकों में रोड और मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर दिया है. अब बारी है 5जी नेटवर्क की. चीन के एलएसी पर 5जी नेटवर्क के बाद अब भारत भी सेना के लिए 18 हजार फीट की उंचाई पर तैनात सैनिकों के लिए 5जी नेटवर्क लाने के लिए तैयार है. भारतीय सेना ने इस बावत मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए आरएफआई जारी कर दी है. एबीपी न्यूज के पास भारतीय सेना की 17 पेज की वो आरएफआई (RFI) यानी रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन की कॉपी है, जो मोबाइल सेल्यूलर कम्युनिकेशन सिस्टम के लिए जारी की गई है. 


इस आरएफआई में साफ तौर से लिखा है कि भारतीय सेना को बॉर्डर एरिया के लिए सिर्फ 5जी नेटवर्क ही नहीं चाहिए बल्कि पूरा 5जी सिस्टम और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है. इसमें साफ तौर से लिखा है कि सेना को ऐसा नेटवर्क चाहिए जो लॉन्ग-टर्म एडवांस 4जी सिस्टम हो और स्टैंड-एलोन 5जी सिस्टम हो.


दुर्गम इलाकों में सुरक्षित नेटवर्क की मांग


रक्षा मंत्रालय द्वारा सेना के लिए जारी की गई इस RFI में दूरसंचार कंपनियों से दुर्गम इलाकों में सैन्य ठिकानों की जरूरत के हिसाब से सुरक्षित नेटवर्क, वॉयस मैसेज और डाटा प्रदान करने की बात कही गई है. आरएफआई के अनुसार मोबाइल कंपनी सेना को 5जी नेटवर्क के साथ-साथ मोबाइल हैंडसेट और इंफ्रास्ट्रक्चर यानी टावर इत्यादि भी खड़ा करके देगी ताकि हमेशा 99 प्रतिशत नेटवर्क उपलब्धता रहे. किसी भी रक्षा सौदे के लिए आरएफआई टेंडर प्रक्रिया का दूसरा चरण होता है. अगले दो महीने के भीतर यानी सितंबर के महीने तक दूरसंचार कंपनियों को सेना की इस आरएफआई का जवाब देना है. जानकारी मुहैया होने के बाद रक्षा मंत्रालय योग्य कंपनियों को आरएफपी यानि रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल जारी करेगा


18000 फीट की ऊंचाई पर भी काम करेगा सिस्टम


आरएफआई के अनुसार ये सिस्टम 18000 फीट की ऊंचाई, माइनस (-)20 से (-)25 डिग्री के तापमान में भी काम कर सकना चाहिए. इसके अलावा ये सिस्टम 5 मिलीमीटर से 50 सेंटीमीटर बारिश, 10 फीट तक की बर्फबारी और 50 से 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली हवाओं वाले इलाकों में बेहतर तरीके से काम करना चाहिए. साथ ही आकाशीय बिजली (वज्रपात) से भी सिस्टम को नुकसान नहीं होना चाहिए.


ऑपरेशनल जरूरत और सीक्रेसी


भारतीय सेना की फील्ड फॉर्मेशन इस 5जी नेटवर्क को पर्वतीय और 18 हजार फीट उंचाई वाले हाई आल्टिट्यूड इलाके में इस्तेमाल करेगी. सेना द्वारा इस्तेमाल होने वाले कम्युनिकेशन उपकरण और मोबाइल हैंडसेट एक खास इन्सक्रिप्शन पर आधारित होने चाहिए. हैंडसेट पर सीक्रेसी की एक खास लेयर होगी. पूरा नेटवर्क एक इन्सक्रिप्शन डिवाइस से जोड़ा होगा ताकि नेटवर्क में कोई सेंध लगाकर जासूसी ना कर सके. इस नेटवर्क पर किसी भी तरह से कोई अवैध यूजर और रेडियो टेक्नोलॉजी नेटवर्क काम नहीं करना चाहिए.


स्वदेशी नेटवर्क और डिलीवरी


दूरसंचार कंपनी को बताना होगा कि उसके सिस्टम और नेटवर्क में कितना प्रतिशत स्वदेशी हिस्सा है. रक्षा मंत्रालय की रक्षा अधिग्रहण नीति-डीपीपी 2020 के आधार पर ही बाय (इंडियन) प्रक्रिया के तहत ही पूरा सिस्टम होना चाहिए. मोबाइल कंपनी को टेंडर जारी करने के 12 महीनों के भीतर कॉन्ट्रैक्ट पूरा करना होगा. 


नेटवर्क में सेंधमारी का खतरा


दरअसल वर्ष 2020 में जब पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गलवान घाटी की लड़ाई और फिर उसके बाद तनतानी चल रही थी तो उस वक्त भारत ने उस एलएसी से सटे इलाकों में अपने मोबाइल फोन बंद कर दिए थे. ये इसलिए किया गया था क्योंकि भारत को नेटवर्क में सेंधमारी का खतरा था, इसलिए भारतीय सेना अब खुद का एक सिक्योर 5जी मोबाइल नेटवर्क चाहती है, जिसका इस्तेमाल सिर्फ सेना और सैनिक ही कर सके.


चीन का 5G नेटवर्क LAC के बेहद करीब


गौरतलब है कि कम्युनिकेशन के तौर पर चीन 5जी को एलएसी के बेहद करीब ले आया है. चीन ने तिब्बत में भूटान-भारत सीमा के करीब दुनिया के सबसे उंचे रडार स्टेशन पर 5जी सिगनल बेस पर पिछले साल ही काम शुरू कर दिया था. यही नहीं एलएसी के करीब बसे गांव के लोगों के फोन पर चीनी सर्विस प्रोवाइडर के रोमिंग सिंगनल भारतीय फोन पर आने लगते है ताकि चीन अपनी जासूसी के मंसूबों को पूरा कर सके. यही वजह है कि चीन के इस वार के जवाब में भारत ने भी चीन के साथ लगने वाली 3488 किलोमीटर की सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों को सेक्योर हाई-स्पीड 5जी नेटवर्क देने की तैयारी शुरु कर दी है.


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भारत की क्या है योजना?


चीन से सटी लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलएसी पर तैनात सैनिकों के साथ-साथ सीमावर्ती गांवों को भी भारत सरकार अब 4जी नेटवर्क देने की तैयारी कर चुकी है. बुधवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनट कमेटी (मंत्रिमंडल) ने देश के सभी दूरदराज और सीमावर्ती गांव में 4जी नेटवर्क पहुंचाने के लिए 26316 करोड़ के पैकेज की घोषणा की है. कैबिनेट के फैसले के बाद केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव ने मीडिया को बताया था कि मंत्रिमंडल की मीटिंग में पीएम मोदी ने आदेश दिया है कि जिन गांव में 2जी नेटवर्क है वहां 4जी सर्विस मिलनी चाहिए.


पूर्वी लद्दाख के गांवों में इंटरनेट नेटवर्क की तैयारी


ये आदेश बॉर्डर एरिया के लिए भी दिया गया है. एबीपी न्यूज के इस सवाल पर कि क्या बॉर्डर एरिया में पूर्वी लद्दाख भी शामिल है तो अश्वनी वैष्णव ने हां कहते हुए कहा कि इसके लिए रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और टेलीकम्युनिकेशन मंत्रालय मिलकर एक प्रपोजल तैयार करेंगे कि किस तरह इसे क्रियांवित किया जा सकता है. आपको बता दें कि चीन सीमा से सटे पूर्वी लद्दाख के गांवों में नेटवर्क को लेकर वहां के स्थानीय प्रतिनिधि आवाज उठा रहे हैं. अश्वनी वैष्णव ने बताया कि अभी भी देश में 25 हजार (24,680) गांव ऐसे हैं जहां कोई कनेक्टिविटी नहीं है. ऐसे में इन गांवों के लिए कैबिनेट ने 26316 करोड़ के पैकेज की भी घोषणा की है. ये प्रोजेक्ट बीएसएनएल के हवाले होगा.


ड्रैगन का अक्साई चीन पर कब से है कब्जा?


आपको बता दें कि हाल ही में ये खबर आई थी कि चीन तिब्बत से लेकर शिंजियांग तक एक नया एक्सप्रेस-वे (जी-695) बना रहा है, जो विवादित अक्साई चीन से होकर गुजरेगा. 1962 के युद्ध के बाद से ही चीन ने गैर-कानूनी तरीके से अक्साई-चीन पर कब्जा किया हुआ है. ये दूसरा हाईवे है जो चीन वाया अक्साई चीन तिब्बत से शिंजियांग के बीच बनाने जा रहा है. इससे पहले 1957 में भी चीन ने ऐसा एक हाईवे (जी-219) बनाया था अक्साई-चीन से होकर गुजरता था और जो 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध का एक बड़ा कारण बना था.


भारत भी बिछा रहा सड़कों का जाल


एलएसी (LAC) पर भारत भी सड़कों के जाल बिछाने में अब पीछे नहीं है. सोमवार को ही संसद (Parliament) में एक सवाल के जवाब में रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट (Ajay Bhatt) ने बताया था कि पिछले पांच सालों में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानी बीआरओ (BRO) ने चीन सीमा पर कुल 2088.57 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण किया है. इन सड़कों के निर्माण में 15477.06 करोड़ का खर्च आया है. रक्षा राज्यमंत्री ने ये भी बताया कि चीन सीमा से सटी लाइन ऑफ कंट्रोल पर बनी ये सभी सड़कें ऑल-वेदर हैं यानी 12 महीने इन पर आवाजाही हो सकती है.


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