India-China Clash on Tawang: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर लंबे वक्त से मतभेद बना हुआ है. कई मौकों पर चीन के सैनिकों ने उकसावे की कार्रवाई करते हुए भारत को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मजबूर किया है. अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के तवांग (Tawang) में भारत और चीन के सैनिकों के बीच एक बार फिर से संघर्ष हुआ, जिसमें दोनों देशों के कई सैनिक जख्मी हुए. 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर में चीन के करीब 300 सैनिकों ने फिर से घुसपैठ की कोशिश की थी लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने उन्हें करारा जवाब दिया.


अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र भारत के लिए बेहद ही खास माना जाता है और यही वजह है कि भारतीय जवानों ने चीन (China) के करीब 300 से ज्यादा सैनिकों को पीछे खदेड़ दिया. संघर्ष की इस घटना में चीन को भारी नुकसान पहुंचा है.


भारत के लिए क्यों खास है तवांग?


भारत और चीन के बीच करीब 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है. यह बॉर्डर अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तरारखंड और सिक्किम से लगता है. अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर है. तवांग का इलाका मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है और यह भारत का अहम हिस्सा है लेकिन चीन की नीयत में खोट दिखता है और वो अब मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार करता है. यह इलाका पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत का बॉर्डर भी साझा करता है. रणनीतिक तौर पर यह इलाका भारत के लिए बेहद ही खास है. यह वही स्थान है जहां भारत का विशाल बौद्ध मठ भी है. 


चीन की क्यों है तवांग पर बुरी नजर?


भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर कुछ क्षेत्र को लेकर लंबे वक्त से विवाद है. चीन इन इलाकों पर कब्जा करने की फिराक में रहा है. चीन की बुरी मंशा यह भी है कि वो तवांग पोस्ट पर कब्जा जमा ले ताकि यहां से उसे तिब्बत के साथ एलएसी की निगरानी करने में और आसानी हो. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भी तवांग को भारत का क्षेत्र करार देते रहे हैं. चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता बताता है. चीन की मंशा यह भी है कि वो तवांग पर कब्जा करके तिब्बती बौद्ध केंद्र को नष्ट कर दे. चीन अगर तवांग पर कंट्रोल कर लेता है तो उसकी तिब्बत पर पकड़ और भी मजबूत होगी, साथ ही वह अरुणाचल पर भी दावा ठोक सकता है. हालांकि, भारत ऐसा किसी भी कीमत पर होने नहीं देगा.


तवांग का 1962 से कनेक्शन


तवांग 1962 के भारत-चीन युद्ध से भी जुड़ा हुआ है. 1962 के युद्ध में भारत को यहां काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. बाद में युद्धविराम के तहत चीन को पीछे हटना पड़ा था. मैकमोहन समझौते के बाद तवांग को भारत का हिस्सा माना गया. समझौते के बाद चीन ने इसे खाली भी कर दिया था क्योंकि यह इलाका मैकमोहन लाइन के भीतर पड़ता है लेकिन ड्रैगन इसे मान्यता देने से अब इनकार करता है.


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