Jawaharlal Nehru: भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता जवाहरलाल नेहरू अंग्रेजों से भारत की आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद की भारतीय राजनीति के केन्द्रीय व्यक्तित्व थे.14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में जन्मे जवाहर लाल नेहरू को प्रारंभिक शिक्षा उनके घर पर ही निजी शिक्षकों से प्राप्त हुई. बाद में उनका प्रवेश कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुआ. 1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए. राजनीति में उन्हें भले ही आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को आंका नहीं जा सकता है. उन्होंने लंबा समय जेल में गुजारा और अंग्रेजों से संघर्ष भी किया. अपने विचारों को लेकर वह स्पष्ट थे. आजादी की लड़ाई में विचारों के टकराव में वह अपने पिता से भी असहमत हो जाते थे. अपने इस आर्टिकल में जवाहर लाल नेहरू के स्वतंत्रता सेनानी के रूप में खास योगदान और संघर्ष पर चर्चा करेंगे-


अग्रेजों की लाठी से हुए थे लहूलुहान:


1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया था तो देशभर में उसका विरोध हो रहा था. एक तरफ जहां लाहौर में विरोध कर रहे लाला लाजपत राय अंग्रेजों द्वारा लाठीचार्ज के बाद बुरी तरह जख्मी हो गए(बाद में उनकी मृत्यु हो गई) वहीं दूसरी ओर लखनऊ में जवाहर लाल नेहरू भी साथी आंदोलनकारी जी.वी.पंत के साथ साइमन कमीशन का पुरजोर विरोध कर रहे थे. इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस के द्वारा उन पर बहुत ही बर्बरता से लाठियां बरसाई गईं. जिसके चलते नेहरू बुरी तरह घायल हो गए थे.


पिता के विचारों से भी जता देते थे असहमति-


जवाहरलाल नेहरू विचारों के स्तर पर बहुत ही स्पष्ट थे. वह अपने पिता मोतीलाल नेहरू से भी असहमति जता देते थे. अपने पिता मोतीलाल नेहरू द्वारा अंग्रेजों की चुनौती के बाद पेश की गई 'नेहरू रिपोर्ट' में 'डोमिनियन स्टेट' के प्रावधान से जवाहरलाल पूरी तरह असहमत थे और उन्होंने इस प्रावधान को लेकर खुलकर आपत्ति जताई थी. यह उनके लोकतांत्रिक व्यवहार का ही एक हिस्सा था. जो कि बाद में उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भी दिखाई दिया जब तमाम सहमति और असमति रखने के बाद भी कुछ नेता उनकी सरकार में थे.


जेल में गुजारा लंबा वक्त-


जवाहर लाल नेहरू ने आजादी की लड़ाई में अपने कई साल जेल में गुजारे. 1922 में पहली बार जेल जाने और 1945 में आखिरी बार रिहा होने के बीच वो कुल नौ बार जेल गए और अपने जीवन के करीब 9 साल उन्होंने अंग्रेजों की कैद में बिताए. जेल में ही उन्होंने लेखन का काम भी किया. विचारों से स्वतंत्र और व्यवहार में लोकतांत्रिक देश के पहले प्रधानमंत्री के आजादी की लड़ाई में योगदान को देश हमेशा याद रखेगा


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