दिग्गज संगीतकार इलैयाराजा एक किताब में लिखी प्रस्तावना को लेकर विवादों में आ गए हैं. दरअसल इस प्रस्तावना में उन्होंने जहां पीएम मोदी की तारीफों के पुल बांधे हैं वहीं यह भी कहा है कि भीमराव अंबेडकर और नरेंद्र मोदी के जीवन में कई समानाताएं हैं.


इलैयाराजा ने ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फॉउंडेशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक “आंबेडकर एंड मोदी, रिफॉर्मर्स आइडियाज, परफॉर्मर्स इम्प्लीमेंटेशन” पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है. दो पन्नों की इस प्रस्तावना में उन्होंने डॉ अंबेडकर की प्रशंसा की है लेकिन साथ ही पीएम मोदी और उनके जीवन के बीच समानता भी देखी हैं. बता दें इलैयाराज स्वयं दलित समाज से आते हैं.


इलैयाराजा ने कहा कि "मोदी ने कई कानूनों, संवैधानिक सुरक्षा और लंबे समय से लंबित ओबीसी आयोग की स्थापना के माध्यम से सामाजिक रूप से हाशिए के समुदायों के लिए कानूनी सुरक्षा को मजबूत किया है." उन्होंने तीन तलाक पर प्रतिबंध और ऐतिहासिक 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ पहल का जिक्र करते हुए कहा कि ये ऐस काम है जिन पर डॉ अंबेडकर को इस पर गर्व होगा.


इलैयाराजा की यह राय सामने आने के बाद एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया जहां बहुत से लोगों ने उनकी आलोचना की वहीं भारतीय जनता पार्टी उनके समर्थन में खुलकर सामने आ गई.


सोशल मीडिया पर इलैयाराजा की आलोचना करने वालों का कहना था कि पीएम मोदी की तुलना अंबेडकर से नहीं की जा सकती क्योंकि मोदी हिंदुत्व के लिए प्रतिबद्ध हैं जबकि आंबेडकर एक सुधारवादी नेता थे जिन्होंने अपना जीवन दलितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया.


दलित समर्थक संगठनों ने की आलोचना 
वामदलों और तमिल तथा दलित समर्थक संगठनों ने सोशल मीडिया पर संगीतकार का विरोध किया है. वहीं सत्तारूढ़ द्रमुक ने कहा कि पार्टी से किसी ने भी इलयराजा द्वारा मोदी पर की गई टिप्पणी पर कोई बयान नहीं दिया है. पार्टी के सांसद और संगठन सचिव आर एस भारती ने एक बयान में कहा कि द्रमुक का इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने का विचार नहीं है.


बीजेपी आई इलैयाराजा के समर्थन में 
बीजेपी विख्यात संगीतकार के विचारों के समर्थन में डटकर खड़ी हो गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इलैयाराजा की आलोचना करने वालों का आड़े हाथों लिया. तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने अपने ट्विटर खाते पर नड्डा का एक पत्र साझा किया है जिसमें नड्डा ने इलैयाराजा का नाम लिए बिना कहा, “तमिलनाडु में सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने भारत के सबसे बड़े संगीतकारों में से एक की आलोचना और अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके विचार एक राजनीतिक दल और उसके सहयोगियों से मेल नहीं खाते. क्या यह लोकतांत्रिक है? किसी के विचार आपसे मेल नहीं खाते फिर भी आप एक साथ रह सकते हैं लेकिन किसी का अपमान क्यों करते हैं?


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