IANS-CVoter National Mood Tracker: स्वतंत्र भारत की राजनीति का राजनीतिक राजवंशों से गहरा नाता है. आज भी देश की सबसे पुरानी पार्टी पर नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी राज करती है. देश के अधिकतर क्षेत्रीय दलों पर राजनीतिक परिवारों का नियंत्रण है. देशभर में और कई पार्टियों में वंशवाद की राजनीति मौजूद है. प्रधानमंत्री मोदी वंशवाद की राजनीति के विरोधी रहे हैं. इसे लेकर वो लगातार विपक्षी दलों पर हमलावर रहते हैं. 


देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर सोमवार को अपने भाषण में पीएम मोदी ने एक बार फिर वंशवाद की राजनीति पर हमला बोलते हुए इसे भ्रष्टाचार से जोड़ा था. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश इस समय दो बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. पहला- भ्रष्टाचार और दूसरा-परिवारवाद (भाई-भतीजावाद).


बीजेपी पर विपक्ष के आरोप
हालांकि, विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि पीएम की वंशवाद की राजनीति की निंदा मात्र दिखावा है. वह अपनी ही पार्टी में कुछ राजनीतिक परिवारों के प्रभुत्व को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं. सीवोटर-इंडियाट्रैकर ने आईएएनएस के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वे किया, जिसमें विपक्षी नेताओं के लगाए गए आरोपों के बारे में लोगों से पूछा गया कि क्या वास्तव में भाजपा वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रही है? इस मुद्दे पर लोगों की अलग-अलग राय रही.


क्या रहे सर्वे के नतीजे
सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, जहां 52 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भगवा पार्टी वंशवाद की राजनीति में शामिल नहीं है और न ही इसे बढ़ावा नहीं देती है, वहीं 48 प्रतिशत लोगों ने जोर देकर कहा कि सत्तारूढ़ दल में भी कुछ हद तक वंशवाद है. सर्वे के दौरान, एनडीए के अधिकतर मतदाताओं और विपक्षी समर्थकों ने अपने राजनीतिक और वैचारिक झुकाव के अनुसार जवाब दिया.


एनडीए समर्थक 70 फीसदी उत्तर देने वालों ने भाजपा में वंशवाद की राजनीति नहीं होने का दावा किया, तो वहीं 63 फीसदी ने इस मुद्दे पर स्पष्ट तौर पर कहा कि भाजपा के नेता भी वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देते हैं. इसके अलावा, सर्वे में अधिकतर अनुसूचित जाति (एससी) के 69 प्रतिशत और मुस्लिम के 63 प्रतिशत लोगों ने जोर देकर कहा कि भाजपा राजनीति में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देती है. वहीं ऊंची जाति के हिंदुओं में से 67 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भाजपा वंशवाद की राजनीति को खत्म करना चाहती है. 


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