Flood In North Eastern States: असम (Assam) में ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra), बराक और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है. राज्य में इस प्राकृतिक आपदा के कारण अब तक 82 लोगों की जान जा चुकी है और करीब 45 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. पिछले 24 घंटे में असम में बाढ़ (Flood In Assam) की वजह से 11 लोगों की मौत हो गयी जबकि सात व्यक्ति लापता बताए जा रहे हैं. इस दौरान एबीपी न्यूज़ बाढ़ प्रभावित इलाकों का जायजा लेने के लिए खुद ग्राउंड पर पहुंचा.


इस दौरान बाढ़ प्रभावित इलाके में हमारी रिपोर्टर मनोज्ञा लोइवाल ने एक 50 वर्षीय महिला सविता कुमारी दास से बात की. उनको इन दिनों अपने डूबे हुए घर के सामने सरकार से मिली हुई राहत सामग्री से अपना पेट भरना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मेरे घर में गले तक पानी भर गया है. गद्दा, तकिया और सारा सामान सब कुछ भीग गया है. सरकार के दिए हुए राशन से मुझे 2 वक़्त की रोटी मिल रही है. कल भूखे ही सो गए थे. बहुत तकलीफ हो रही है इस दर्द को कैसे बयां करूं. सरकार हमें थोड़ा सा राशन दे रही है उसी से खाना पीना चल रहा है बाकी सब कुछ बर्बाद हो गया है. 


भूखे पेट सोना पड़ता है
बाढ़ से एक अन्य पीड़ित ने बताया कि मैं रोज अपना घर देखता हूं. सामने ही मेरा घर है, मकान में पानी भर गया है और इसका पहला तल डूब गया है. 4 दिन से सड़क पर तिरपाल के नीचे समय बिता रहा हूं. सरकार की तरफ से जो मिल जाता है वही खा लेता हूं क्योंकि घर में अब कुछ बचा नहीं है.


बाढ़ पीड़ितों को नहीं मिल रही है राहत सामग्री
राहत सामग्री को लेकर अपना दर्द बयां करते हुए एक अन्य पीड़ित ने कहा कि नेता आते हैं और नेता जाते हैं लेकिन राहत के नाम पर जो भी हमको देकर जाते हैं उससे हमारा काम नहीं चलता है. कभी नमक मिलता है तो कभी चावल नहीं मिलता है. कभी दाल मिलती है तो तेल नहीं मिलता है. हमें जो तिरपाल दिया जाता है वो तेज हवा चलने पर फट जाता है. कई लोगों को तो ये भी नहीं मिला है. नेता केवल गिनती करके चले जाते हैं. उनके लिए हम बस आंकड़े हैं. 


बाढ़ के दौरान पीने के पानी की भी है किल्लत
कुछ लोग राहत सामग्री भी बेच रहे हैं. उनको ये राहत सामग्री मुफ्त में मिल रही है जोकि हमें पैसे देकर खरीदनी पड़ती है. कुछ जगहों पर तो सरकार को भी पता नहीं है कि राहत सामग्री भेजी जा रही है. प्रभावित लोगों ने कहा कि हमारी सरकार से विनती है कि हमें पीने का पानी दें. शौचालय दें. यहां पानी इतना गंदा है कि ये बीमारी का घर हो गया है. हम पानी नहीं पी पा रहे हैं और न ही शौचालय जा पा रहे हैं तो जरा सोचिए हमारे इलाके में महिलाओं की क्या स्थिति होगी ?


नेशनल हाईवे पर रह रहे हैं लोग
असम में कई जगहों पर बाढ़ ने हालात नाजुक बना दिए हैं कि लोगों को नेशनल हाईवे और रास्ते पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. कामरूप जिले में जगह जगह बाढ़ प्रभावित नेशनल हाईवे पर अस्थाई तंबू बनाकर रह रहे हैं. क्योंकि यहां एकमात्र नेशनल हाईवे ही पानी की मार से बचा हुआ है.


आसपास के सभी गांव और इलाके पानी में डूब चुके हैं. सरकार की ओर से इनको दो वक्त का खाना और पानी दिया जा रहा है. ये लोग यहां अपने मवेशियों के साथ बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं. आज चार दिनों से बारिश के बीच भी यहीं पर रहना पड़ रहा है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने कहा है कि जो लोग राहत शिविर में नहीं हैं उनको भी राहत सामग्री पहुंचाना अनिवार्य है. ये बड़ी चुनौती है. मुश्किल ये है कि कई इलाकों में रास्ते ही नहीं है, इसलिए हमें सेना पर निर्भर रहना पड़ता है. राहत सामग्री पहुंचाने के लिए बहुत से ऐसे इलाके हैं जो अभी भी जलमग्न है.  


राहत और बचाव में जुटी है भारतीय सेना
असम में बाढ़ के हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं जहां 42 लाख से ज्यादा लोग और 32 से ज्यादा जिले बाढ़ की चपेट में है. एनडीआरएफ के साथ-साथ भारतीय सेना भी राहत और रेस्क्यू के काम में जुटी हुई है. राज्य सरकार की SDRF और ASDMA भी लगातार जमीनी स्तर पर काम कर रही है. राहत और बचाव के काम में आर्मी के कई कॉलम जुटे हुए हैं. पिछले कई दिनों में आर्मी की ओर से 5000 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू किया गया है.  सेना के जवान नावों के जरिए बाढ़ में फंसे लोगों को निकालने में जुटे हुए हैं. 


क्या कह रहे हैं बाढ़ में फंसे पीड़ित?
बाढ़ के दौरान कई लोगों ने एक अस्पताल में शरण ले रखी है. सबसे पहले बच्चे, बूढ़े और महिलाओं को रेस्क्यू किया गया. उनमें से ही एक पीड़ित रोकैया बीबी ने कहा कि हम यहां पिछले चार दिनों से है. ना खाने को कुछ है न रहने को इतनी गरीबी और इतनी तकलीफ में है कि आंसू भी नहीं रुक रहे हैं मेरा घर बह गया है इसलिए मुझे अस्पताल में रहना पड़ रहा है. अन्य पीड़ित शान्ता ने बताया कि उनकी गाय, बछड़ा और उसके साथ उनकी दो बकरी सब कुछ बह गईं हैं. हम बर्बाद हो गए हैं. हमारे पास कुछ नहीं बचा है. हमें अस्पताल में रहने में भी तकलीफ हो रही है.


स्ट्रेचर में पहुंचाया जा रहा है खाना
शोमा बताती हैं कि मैं अस्पताल के बिस्तर पर बैठी हूं क्योंकि मेरे घर में अब कुछ नहीं बचा है. मुझे यहां अपने छोटे बच्चे के साथ रहना पड़ रहा है. बहुत दिक्कत हो रही है. बच्चे के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. ऊपर से ये बाढ़ बीमारी का घर है. कभी मच्छर तो कभी गंदगी बच्चों को खिलाने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं है. अस्पताल में स्ट्रेचर का इस्तेमाल खाना और राहत सामग्री पहुंचाने में किया जा रहा है. इस इलाके में चारों ओर मीलों पानी ही पानी है जिसकी गहराई 10 फीट से लेकर कहीं कहीं तो 25 से 30 फुट तक है. 


अस्पतालों में नहीं मौजूद हैं दवाइयां 
अस्पताल में ऐसे भी कई बच्चे थे जिनको चोट लग गई है लेकिन उनके लिए टेटनस और बाकी दवाइयां इस अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. जिस वजह से बच्चों को रेस्क्यू करके एक नाव में बिठाकर मेडिकल कैंप (Medical Camp) तक पहुंचाया गया जहां उनको बाकी दवाएं और इंजेक्शन दिए गये. असम में वर्तमान की स्थिति दयनीय और चिंताजनक है. बाढ़ का पानी अब कम नहीं होगा बल्कि बारिश बढ़ेगी. आंकड़े भले कुछ भी कहें लेकिन सरकारी वादों और दावों के बीच सवाल यह उठता है कि आखिर जरा सी बारिश में असम डूब क्यों जाता है.




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