Death Sentence: देशभर में बीते साल ट्रायल कोर्ट ने 165 लोगों को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई है. साल 2022 का ये आंकड़ा बीते दो दशकों में सबसे ज्यादा रहा है. इससे पहले साल 2021 में 146 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. चौंकाने वाली बात है कि फांसी की सजा पाने वाला हर तीसरा शख्स यौन अपराधों से जुड़ा हुआ है.


साल 2015 से 2022 तक सजा-ए-मौत पाने वालों का आंकड़ा 40 फीसदी तक बढ़ा है. 'भारत में फांसी की सजा: वार्षिक आंकड़े 2022' की रिपोर्ट के अनुसार, निचली अदालतों की ओर से दी जाने वाली मौत की सजा और उच्च अपीलीय अदालतों में ऐसे मामलों की सुनवाई में देरी को इस बढ़ी संख्या कारण बताया गया है.


2008 के सीरियल ब्लास्ट मामले में एक साथ 38 लोगों को सजा-ए-मौत


'भारत में फांसी की सजा: वार्षिक आंकड़े 2022' की रिपोर्ट के मुतबिक, बीते साल फरवरी में अहमदाबाद कोर्ट ने 2008 के सीरियल ब्लास्ट मामले में 38 कैदियों को फांसी की सजा सुनाई थी. इस मामले ने ही 2022 में सजा-ए-मौत के आंकड़ों बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान दिया है. 2016 में यौन अपराधों में फांसी की सजा पाने वाले कैदियों का आंकड़ा 27 था. ये यौन अपराधों के कुल 153 मामलों का 17.6 फीसदी थी. वहीं, 2022 में यौन अपराध के 165 मामलों के 52 कैदियों को फांसी की सजा सुनाई गई. जो कुल मामलों का 31.5 फीसदी है.


2020 में केवल 77 लोगों को मिली फांसी की सजा


टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, कानून के प्रोफेसर और रिपोर्ट जारी करने वाले अनूप सुंदरनाथ ने कहा कि बढ़े हुए आंकड़े ट्रायल कोर्ट में फांसी देने के बढ़ते चलन की ओर इशारा करते हैं. उन्होंने कहा कि 2020 में कोरोना महामारी के दौरान केवल 77 कैदियों को फांसी की सजा दी गई थी. जिसके बाद ट्रायल कोर्ट में सजा-ए-मौत देने का चलन बढ़ा है.


फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी की थी गाइडलाइन


बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट की ओर से फांसी की सजा दिए जाने को लेकर गाइडलाइन जारी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फांसी की सजा देने से पहले ट्रायल कोर्ट देखे कि अपराध किन परिस्थितियों में हुआ और अपराधी की पृष्ठभूमि कैसी है, जैसी चीजों के बारे में भी देखना चाहिए. 


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