Supreme Court On Hate Speech Case: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (13 जनवरी) को एक सुनवाई के दौरान दिल्ली में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर शंभू दयाल की शहादत का जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि सबके सामने पुलिस अधिकारी को चाकू मारा गया, लेकिन कोई बीच-बचाव में नहीं आया. जस्टिस केएम जोसफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह टिप्पणी तब की जब नफरत फैलाने वाले बयानों पर सुनवाई चल रही थी. उस दौरान यह दलील दी जा रही थी कि कानून का सही तरीके से पालन न होने से यह समस्या बढ़ती जा रही है. जजों का यह मानना था कि कानून का सही तरीके से पालन समाज में उसके प्रति उपेक्षा का भाव बढ़ता है.


नफरत फैलाने वाले बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई तरह की याचिकाएं लंबित हैं. इनमें उत्तराखंड, यूपी और दिल्ली में हुए धर्म संसद के मामले हैं. इन कार्यक्रमों के अलावा भी अलग-अलग लोगों की तरफ से दिए गए नफरत फैलाने वाले बयानों के मामले हैं, भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पहले दिए गए निर्देशों के पालन की मांग है. साथ ही साथ टीवी चैनलों के जरिए धार्मिक और सामाजिक विद्वेष फैलाने वाले कार्यक्रमों की भी बात की गई है.


केस में आती है जांच करने में दिक्कत


इस मामले को सुनते हुए पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, उत्तराखंड और दिल्ली पुलिस को यह निर्देश दिया था कि अगर उनके क्षेत्र में नफरत फैलाने वाला बयान दिया जाता है, तो वह बिना शिकायत का इंतजार किए खुद केस दर्ज करें. आज यूपी और उत्तराखंड की तरफ से बताया गया कि उन्होंने इस तरह के कई केस दर्ज किए. हालांकि, पुलिस अधिकारियों के ही शिकायतकर्ता बन जाने से केस की जांच में व्यावहारिक दिक्कतें आ रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस पहलू पर बाद में विचार करेगा.


नफरत भरा बयान पर कार्यवाही जरूरी


सुनवाई के दौरान सुदर्शन टीवी (Sudarshan TV) के संपादक सुरेश चव्हाणके की तरफ से महाराष्ट्र में दिए गए एक भाषण का मसला वकील निजाम पाशा ने रखा. उन्होंने कहा कि चव्हाणके पहले भी इस तरह के भाषण देते रहे हैं. इसका विरोध करते हुए सुदर्शन टीवी की तरफ से पेश वकील विष्णु जैन ने कहा कि उन्हें याचिका की कॉपी नहीं दी गई है. वह इसे देखकर जवाब देना चाहेंगे.


वकील विष्णु जैन ने यह भी कहा कि जाकिर नाइक से लेकर अकबरुद्दीन ओवैसी और शायर मुनव्वर राणा तक, तमाम लोगों ने नफरत फैलाने वाले बयान दिए हैं. लेकिन दूसरा पक्ष उन पर कार्रवाई की मांग नहीं करता है. इस पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, "इसलिए हमने पिछली सुनवाई में यह आदेश दिया था कि किसी भी पक्ष की तरफ से नफरत भरा बयान दिए जाने पर पुलिस को कार्यवाही करनी चाहिए."


क्या टीआरपी के लिए नफरत फैलाने का जरिया बन गया है टीवी?


सुनवाई के अंतिम हिस्से में जस्टिस के एम जोसेफ ने टीवी चैनलों की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि टीआरपी बढ़ाने के लिए चैनलों में नफरत भरी सामग्री परोसी जा रही है. एक चैनल को सफल होता देखकर दूसरा चैनल भी इसकी नकल करता है. टीवी चैनलों की स्वायत्त संस्था नेशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी की तरफ से पेश वकील ने कहा कि उन्हें शिकायत मिलते ही विवादित वीडियो इंटरनेट से हटवा दिए जाते हैं. लेकिन सुदर्शन टीवी और रिपब्लिक जैसे चैनल उनके सदस्य नहीं हैं. इसलिए कार्रवाई नहीं हो पाती.


जस्टिस बी वी नागरत्ना के साथ सुनवाई कर रहे जस्टिस जोसेफ ने इस पर केंद्र सरकार के लिए पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज को आड़े हाथों लिया. उन्होंने पूछा कि आखिर सरकार क्या कर रही है? अगर कोई चैनल या कोई न्यूज़ एंकर बार-बार नफरत फैलाने वाले कार्यक्रम पेश कर रहा है, तो उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है? सुनवाई के अंत में बेंच ने वकीलों से कहा कि वह मामले के अलग-अलग पहलुओं की एक सूची तैयार करें. इससे आगे सुनवाई में आसानी होगी.


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