नई दिल्ली: गुजरात देश का वह राज्य है जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति की एबीसीडी सीखी. 13 साल तक सूबे की कमान संभालने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी पर 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता ने अपना प्यार इस कदर उड़ेला कि वह गुजरात से दिल्ली के 7 आरसीआर तक पहुंच गये. इस जीत के साथ ही बीजेपी को एक ऐसा हथियार मिला जिसकी काट विपक्ष अभी तक नहीं ढूंढ पाया है. 'मोदी लहर' नामक इस हथियार के सहारे बीजेपी अब 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना देखने लगी.


पटेलों की नाराजगी के बावजूद गुजरात में फिर बनेगी BJP की सरकार: ABP ओपिनियन पोल

2014 के इस जीत के साथ ही मोदी ने गुजरात को भारत की राजनीति का केंद्र बना दिया. इस विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी ने गुजराती अस्मिता को मुद्दा बनाया. अप्रत्यक्ष रूप से पीएम खुद गुजराती अस्मिता के प्रतीक बन गये. ऐसे में जब नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात में पहली बार विधानसभा चुनाव होने हैं तो लाजमी है कि देश की निगाहें इस चुनावी दंगल पर टिकी रहेंगी. यह दंगल और ज्यादा दिलचस्प हो गया जब गुजरात के तीन नौजवान हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर ने इंट्री मारी. इन तीनों ने बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक में ऐसी सेंधमारी की कि इसकी शिकन बीजेपी के शीर्ष नेताओं के चेहरे पर साफ दिखने लगी. अब ओपिनियन पोल भी कुछ इसी तरह की कहानी कह रही है.

गुजरात ओपिनियन पोल: बीजेपी या कांग्रेस, जानें किस इलाके में कौन है आगे?

गुजरात में पिछले 22 साल से बीजेपी सत्ता की सवारी कर रही है. अब बीजेपी और कांग्रेस चुनावी समर में हर हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं. कांग्रेस जहां वापसी के लिए बेताब है तो बीजेपी सत्ता को बरकरार रखना चाहती है. यह चुनाव कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बेहद मायने रखता है. जहां गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की अटकलें लगाई जा रही हैं, वहीं पीएम मोदी के लिए साख का सवाल है. बता दें कि 09 दिसंबर और 14 दिसंबर को मतदान होंगे और नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे. चुनाव परिणाम से पहले जनता के मूड को भांपने के लिए एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीएस ने ओपिनियन पोल किया है. आपको बता दें कि एबीपी न्यूज -लोकनीति-सीएसडीएस ने अगस्त में भी सर्वे किया था. अब दोनों में काफी परिवर्तन दिख रहा है. कांग्रेस को फायदा तो है लेकिन सत्ता से दूर दिख रही है.

गुजरात ओपिनियन पोल: जानें किसके साथ जाएंगे पटेल, कांग्रेस या बीजेपी?

अगस्त से तुलना करते हुए अक्टूबर के आंकड़े - 

सौराष्ट्र- कच्छ (54 सीट)

बीजेपी को 42 % (-23)  वोट का अनुमान मतलब अगस्त में बीजेपी का वोट शेयर 65% था अब 42 % रह गया
कांग्रेस को 42% (+16) वोट का अनुमान मतलब अगस्त में कांग्रेस का वोट शेयर 26% था अब 42 % हो गया

सौराष्ट्र के ओपिनियन पोल के मायने : सौराष्ट्र क्षेत्र में पाटीदार सबसे ज्यादा है. पाटीदारों की नाराजगी का फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है. 1995 से पाटीदार बीजेपी के वोटबैंक माने जाते थे. आरक्षण ना मिलने से नाराज पाटीदारों को बीजेपी मना नहीं पाई. हार्दिक पटेल के झुकाव से पाटीदार कांग्रेस की तरफ आए.

उत्तर गुजरात (53 सीट) 

बीजेपी को 44 % (-15) वोट का अनुमान अगस्त में बीजेपी का वोट शेयर 59% था अब 44 % रह गया
कांग्रेस को 49 % (+16) वोट का अनुमान अगस्त में कांग्रेस का वोट शेयर 33% था अब 49 % हो गया

उत्तर गुजरात के ओपिनियन पोल के मायने : उत्तर गुजरात में ग्रामीण इलाके ज्यादा हैं. ग्रामीण किसान बीजेपी सरकार के काम से खुश नहीं हैं. महंगाई बढ़ने से किसान बीजेपी से नाराज हैं. उत्तर गुजरात के वोटर बदलाव के मूड में हैं. पाटीदारों की नाराजगी का खामियाज यहां भी बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.

मध्य गुजरात (40 सीट)

बीजेपी- 54 % (-2) वोट का अनुमान अगस्त में बीजेपी का वोट शेयर 56% था अब 54 % रह गया
कांग्रेस 38% (+8) वोट का अनुमान अगस्त में कांग्रेस का वोट शेयर 30% था अब 38 % हो गया

मध्य गुजरात के ओपिनियन पोल के मायने: अहमदाबाद, गांधीनगर, वडोदरा जैसे शहर मध्य गुजरात में हैं. शहरी वोटर अब भी बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े हैं. मध्य गुजरात में कोली वोटरों का प्रभाव ज्यादा है. नाराज पाटीदारों के विकल्प में बीजेपी कोली वोटरों को साधने में कामयाब होती दिख रही है.

दक्षिण गुजरात (35 सीट)

बीजेपी - 51%(-3) वोट का अनुमान अगस्त में बीजेपी का वोट शेयर 54% था अब 51 % रह गया
कांग्रेस- 33%(+6) वोट का अनुमान अगस्त में कांग्रेस का वोट शेयर 27% था अब 33 % हो गया

दक्षिण गुजरात के ओपिनियन पोल के मायने : दक्षिण गुजरात आदिवासी बहुल इलाका है. आदिवासी वोटर बीजेपी सरकार के काम से खुश हैं. आदिवासी कांग्रेस का वोटबैंक माने जाते रहे हैं. पारंपरिक वोटबैंक में कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है. पटेलों, ओबीसी और दलितों पर फोकस से आदिवासी छिटक गए.

पूरे गुजरात की बात करें तो बीजेपी को अगस्त में 59 % अब बीजेपी को अब 47 %. अर्थात करीब 12% का नुकसान.

कांग्रेस को अगस्त में 29 % अब 41 % वोट. अर्थात करीब 12 फीसदी का फायदा

कैसे हुआ सर्वे?
यह सर्वे 26 अक्टूबर से 1 नवंबर के बीच गुजरात के 50 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया है. ओपिनियन पोल में 200 पोलिंग बूथ के 3757 लोगों की राय ली गई है.

ये ओपिनियन पोल के नतीजे हैं. अभी मतदान में करीब एक महीने हैं. अब दोनों ही बड़े सियासी दल इस सियासी संग्राम में पूरी ताकत झोंक देंगे. दोनों के लिए ही गुजरात विजय कई मायने में बेहद अहम है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मायने

गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश है. वे इस सूबे के 13 साल तक लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे. गुजरात के विकास मॉडल के सहारे ही वो देश की सत्ता के शिखर पर पहुंचे हैं. इसलिए यहां के चुनाव नतीजे सीधे तौर पर उनके सियासी कद का इम्तिहान है. प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार जीत रहे मोदी के सामने ये सिलसिला बरकरार रखने की चुनौती है. अगर वो चुनाव जीतते हैं तो उनका और उनकी सरकार का इक़बाल बुलंद होगा. जनता में उनकी पैठ और गहरी होगी. उनके विकास के मॉडल पर मुहर लगेगी. हारते हैं तो उनकी राह मुश्किल होगी, क्योंकि सरकार नोटबंदी और जीएसटी को लेकर बैकफुट पर है.

अब 2019 के चुनाव में डेढ़ साल से भी कम वक्त रह गया है. गुजरात बीजेपी का गढ है इसलिए इसे 2019 का सेमीफाइनल और मोदी लहर का टेस्ट माना जा रहा है. अब तक मोदी लहर दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार और पंजाब छोड़कर हर राज्य में दिखा है. अगर गुजरात के नतीजे भी उनकी उम्मीदों के एन मुताबिक आते हैं तो मोदी के लिए इससे बड़ी खुशखबरी नहीं हो सकती.

एक औऱ अहम सवाल कि मोदी के बगैर गुजरात में बीजेपी की हैसियत क्या है, इसका जवाब भी इस चुनाव से मिलेगा. विधानसभा के बीते चार विधानसभा चुनाव में ये पहला चुनाव है, जो मोदी के नेतृत्व में नहीं लड़ा जा रहा है. अब सीएम की कुर्सी पर विजय रुपाणी हैं.  साथ ही इसके नतीजों को इस तरह भी देखा जाएगा कि नोटबंदी और जीएसटी पर एक कारोबारी राज्य का फैसला क्या रहता है? नोटबंदी के बाद बीजेपी यूपी का चुनाव जीत चुकी है. लेकिन जीएसटी लागू किए जाने के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव है.

राहुल गांधी के लिए मायने

राहुल गांधी के लिए ये बेहद अहम चुनाव है. इसीलिए वो काफी वक्त भी यहां दे रहे हैं.  राहुल गांधी को पार्टी की कमान देने की चर्चा है. ऐसे में अगर वो यहां कांग्रेस की जीत दर्ज करा देते हैं तो मायूस कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया उत्साह औऱ उर्जा तो आएगी ही साथ ही नए नेतृत्व के प्रति भरोसा भी बढ़ेगा. राहुल गांधी के लिए ये जीत इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पार्टी के अंदर से भी उनके नेतृत्व को लेकर आवाजें उठती रही हैं. गुजरात में मोदी की होम पिच पर उन्हें मात दे राहुल उन आवाजों को चुप करा सकते हैं. उनकी लगातार हारने वाली छवि भी खत्म होगी.

राहुल के लिए ये चुनाव इसलिए भी एक मौका बताया रहा है क्योंकि वो एक ऐसे राज्य के चुनाव मैदान में जहां बीजेपी काफी दिनों से सत्ता में है और सरकार विरोधी लहरें भी मुखर हैं. पटेलों की नाराज़गी जगजाहिर है. अगर ऐसे मौके को राहुल गंवा देते हैं तो उनके नेतृत्व क्षमता पर गहरे सवाल खड़े हो जाएंगे. मुमकिन है कि कुछ ऐसी आवाज़ें सुनाई पड़े जो राहुल के लिए सहज नहीं हो.

गुजरात में अगर राहुल स्थानीय युवा नेताओं को अपने पाले में कर बीजेपी को मात देते हैं तो फिर उनपर दूसरे क्षेत्रीय पार्टियों और नेताओं का भी भरोसा बढ़ेगा. राहुल गांधी के नेतृत्व में एक नये गठजोड़ की संभावनाएं बनेगी जहां युवा नेतृत्व 2019 के लिए चुनौती के तौर पर खड़े होते दिखेगा.

इसी चुनावी दंगल में जनता का मूड भांपने के लिए एबीपी न्यूज -लोकनीति-सीएसडीएस ने अगस्त में भी सर्वे किया था. अब अक्टूबर में फिर सर्वे हुआ. दोनों सर्वे में काफी परिवर्तन दिख रहा है. कांग्रेस को फायदा तो है लेकिन सत्ता से दूर दिख रही है.