Ghulam Nabi Azad Political Profile: "दिया था वास्ता वफादारी का हमने तो उनको, सिला ये मिला कि भरे दिल से लेना पड़ा रुखस्ती का फैसला हमको..." शायद कुछ यही आज कांग्रेस (Congress) पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने के बाद अनुभवी नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के दिलो-दिमाग में चल रहा होगा. कांग्रेस पार्टी से दिलो-जान से जुड़े आजाद पार्टी की बेकद्री होती शायद नहीं देख पाए.


इस वजह से ही शायद उनके जेहन में पार्टी को अलविदा कहने का ख्याव आया होगा. बार-बार उन्होंने पार्टी को नई जिंदगी देने की बात की, लेकिन अपनी बात अनसुनी होती देख उन्होंने पार्टी छोड़ना ही बेहतर समझा. अब इस कद्दावार और पार्टी का भला चाहने वाले नेता के जाने से पहले से ही डूब रही कांग्रेस की नैय्या का क्या होगा ये तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन यहां जानिए आखिर कौन और क्या है गुलाम नबी आजाद.


गांधी परिवार के करीबी हैं रहे


गुलाम नबी आजाद केवल कांग्रेस पार्टी के एक नेता ही नहीं थे. उनके आजादी के वक्त से चली आ रही कांग्रेस पार्टी और उसके अहम किरदारों से करीबी रिश्ते रहे हैं. गांधी परिवार से उनके घरेलू रिश्तों की बात की जाती है. हालांकि बाद में यही करीबी कांग्रेस से दूरी बनाने लगे. वक्त के साथ पार्टी में आए बदलावों से वह कांग्रेस पार्टी के जी-23 के एक अहम नेता के तौर पर उभर कर सामने आए. वह कहते रहे कि पार्टी रिमोट से चल रही है और उन्हें ये पसंद नहीं था. आखिरकार इस बेहद करीबी ने कांग्रेस पार्टी से स्थाई दूरी बना ली है. कांग्रेस में ही नहीं देश की राजनीति में उनके अनुभव और कद का अंदाजा इसी से लग जाता है कि केवल जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि देश के सभी राज्यों में उनका दखल रहा है. उनके अहमियत का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि मोदी सरकार में 23 मार्च 2022 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया. 


कांग्रेस कमेटी के सचिव से कद्दावार नेता तक


गुलाम नबी आजाद ने साल 1973 में  भलस्वा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में राजनीति की शुरुआत की थी. उनके काम और अंदाज से कांग्रेस उनकी मुरीद हो गई और उन्हें पार्टी ने उन्हें युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नवाजा. साल 1980 उनके राजनीतिक करियर में अहम मुकाम बनकर आया. इस साल उन्होंने  महाराष्ट्र में वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से 1980 में पहला संसदीय चुनाव लड़ने का आगाज किया. यहां उन्होंने जीत का परचम लहराया.


पार्टी और राजनीति में इसके बाद उन्होंने एक और सीढ़ी चढ़ी जब उन्हें साल 1982 में केंद्रीय मंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल किया गया. इस प्रभावी नेता के राजनीतिक सफर में साल 2005 स्वर्णिम युग बनकर आया. साल 2005 में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री जम्मू-कश्मीर का कार्य भार संभाला. उनकी कामयाबी यहीं नहीं रूकी  जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए आजाद की अगुवाई में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत हासिल की और इसी का नतीजा रहा कि इस राज्य में कांग्रेस राज्य की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर छा गई. वह जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम, पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे हैं.


गुलाम नबी आजाद के सियासी सफर पर एक नजर



  • 1980 में गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर राज्य की यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए.

  • 1980 महाराष्ट्र की वाशिम लोकसभा सीट से 1980 में चुनकर आने के बाद गुलाम नबी आजाद लोकसभा में दाखिल हुए

  • 1982 में गुलाम नबी आजाद लॉ मिनिस्ट्री में डिप्टी मिनिस्टर के पद पर चुने गए

  • 1984 में  वो आठवीं लोकसभा के लिए  में भी चुने गए

  • 1985-89 सूचना और प्रसारण मंत्रालय में केंद्रीय उप मंत्री

  • 1990 से 1996 तक आजाद राज्यसभा के सदस्य रहे

  • अप्रैल 2006 राज्य के इतिहास में सबसे अधिक मतों के साथ जम्मू और कश्मीर विधान सभा के लिए चुने गए.

  • 2008 भद्रवाह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए दोबारा से चुने गए. दया कृष्ण को 29936 वोटों के अंतर से शिक्सत दी.

  • 2008 में गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने

  • 2009 चौथे कार्यकाल के लिए राज्यसभा के लिए चुने गए. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाए गए

  • 2014 राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे.

  • 2015 पांचवीं बार राज्यसभा के लिए फिर से चुने गए.

  • राज्य सभा में जून 2014-15 फरवरी और साल  अगस्त 2021 विपक्ष के नेता.

  • यूपीए-2 शासनकाल में इन्हे स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रभार दिया गया

  • नरसिम्हा राव की सरकार में गुलाम नबी आजाद संसदीय कार्य मंत्री और नागरिक उड्डयन मंत्री रहे थे.

  • कांग्रेस के रिबेल ग्रुप G-23 के सदस्य हैं.


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