ऐसे वक्त में जब लगातार एक-एक कर चुनावों में शिकस्त खाने के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं की तरफ से सवाल खड़े किए जाने की वजह से असहजता की स्थिति बनी है, प्रणब मुखर्जी की एक किताब जल्द ही आ रही, जिससे यह बहस और तेज हो जाएगी. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन अगस्त महीने में हुआ है. उन्होंने 2014 की करारी शिकस्त के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जिम्मेवार ठहराया है. इसमें उन्होंने लिखा है कि कुछ कांग्रेस के सदस्य ऐसा मानते थे कि अगर वह खुद प्रधानमंत्री बन गए होते तो पार्टी को सत्ता नहीं गंवानी पड़ती.


मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस ने खोया फोकस


प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब "द प्रेसिडेंशियल इयर्स" में" लिखा है- "मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस ने दिशा खो दी थी, जबकि सोनिया पार्टी के मामले नहीं संभाल पा रहीं थीं. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब "द प्रेसिडेंशियल इयर्स" जनवरी 2021 में प्रकाशित होने वाली है. प्रणब मुखर्जी ने ये किताब अपने राष्ट्रपति कार्यालय के दौरान के अनुभवों पर लिखी थी. इस किताब में प्रणब मुखर्जी ने कुछ ऐसी बातों का ज़िक्र किया है जिनके बारे में खुद प्रणब मुखर्जी ने भी पहले कभी कुछ नहीं कहा था.


2014 में हार के लिए सोनिया-मनमोहन पर आरोप      


यही नहीं, प्रणब दा ने अपनी किताब में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में बड़ी बात कही है. प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने मुझसे कहा था कि अगर साल 2004 में मैं प्रधानमंत्री बन गया होता तो 2014 में कांग्रेस को ऐसी हार का मुंह नहीं देखना पड़ता.


इसके आगे प्रणब दा लिखते हैं कि हालांकि मैं ऐसा नहीं मानता मगर ये ज़रूर मानता हूं कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी ने अपना फोकस खो दिया था, एक तरफ सोनिया गांधी पार्टी के मामले संभाल नहीं पा रहीं थीं तो दूसरी तरफ तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के संसद में सदन से लगातार नदारद रहने से सांसदों से सीधा संपर्क टूट गया था.


बतौर पीएम मनमोहन सिंह और पीएम मोदी के कार्यकाल की तुलना


प्रणब मुखर्जी ने अपनी इस किताब में प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की तुलना की है, क्योंकि प्रणब मुखर्जी दोनों के हीं कार्यालय में राष्ट्रपति रहे. प्रणब दा ने लिखा है कि डॉ. मनमोहन सिंह का ज्यादा वक्त उनके कार्यालय के दौरान यूपीए गठबंधन को बचाने में ही निकल गया जिसका बुरा असर प्रशासन पर पड़ा.


वहीं प्रधानमंत्री मोदी के बारे में उन्होंने लिखा है कि मोदी ने निरंकुश/एकतंत्र कि तरह सरकार चलाने का रास्ता चुना जिसका उदाहरण सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के बीच के रिश्तों में कड़वाहट में नज़र आया. हलांकि, प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा है कि नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में ये देखना होगा कि इन मामलों में बेहतर समझ दिखाई देता है या नहीं.


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