Election Result 2022: 5 राज्यों के चुनाव नतीजे आ गए हैं. 4 राज्यों मे बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन, पंजाब में आप की धमाकेदार जीत के साथ हीं कांग्रेस की दुर्गति की भी चर्चा गर्म है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस अब प्रमुख विपक्षी दल भी रह पाएगी या नहीं. पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस का जो हाल हुआ है उसके बाद कांग्रेस के अंदर हीं अब आपसी जंग चरम पर पहुंच सकती है. सूत्रों के मुताबिक़ पार्टी के अंदर हीं वरिष्ठ नेताओं का G-23 खेमा भी अब नेतृत्व के खिलाफ आवाज़ और बुलंद करने की तैयारी भी कर रहा है और इस संदर्भ में G-23 गुट के नेताओं की मुलाकात भी हो सकती है. इन सब के बीच सबसे बड़ सवाल ये कि आखिर कांग्रेस की ये दुर्गति क्यों हुई? सबसे पहले बात करते हैं उत्तर प्रदेश की. उत्तर प्रदेश में कमान संभाला था खुद पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस उतनी सीटें भी नहीं बचा पाई जितनी सीटें पार्टी को पिछले विधानसभा चुनावों में मिली थी.


यूपी में क्यों हुआ कांग्रेस का बुरा हाल?


कांग्रेस के कुछ नेता मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ के मज़बूत प्रशासन और अखिलेश यादव के आक्रामक प्रचार के सामने जनता अब गांधी परिवार से कत्तई प्रभावित होने के मूड में नहीँ है. पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि अभी भी प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश से हटाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बना देना चाहिए तो कुछ नेता ऐसे हैं जिनका कहना है कि शायद G-23 की मांग ठीक है और अब वक्त आ गया है कि गांधी परिवार को कदम पीछे खींच नेतृत्व किसी गैर गांधी को दे देना चाहिए. विधानसभा चुनाव में सिर्फ उत्तर प्रदेश हीं नहीं, पंजाब और उत्तराखंड में भी कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई. जहां अब से कोई ढाई-तीन महीने पहले तक पंजाब में कांग्रेस के जीत होने की अच्छी संभावना बताई जा रही थी. वहां भी बंटाधार हो गया. पार्टी के कई नेता यहां भी जिम्मेदार गांधी परिवार को हीं मानते हैं.
 
पंजाब में क्यों हो गई कांग्रेस सत्ता से बाहर?


ये बात तो स्पष्ट है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा कर नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष बनाने के चंद दिनों बाद हीं जिस तरह से सिद्धू ने ना सिर्फ अचानक ही इस्तीफा दे दिया बल्कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर लगातार निशाना साधते रहे उससे कांग्रेस की उम्मीदें दफन हो गईं, मगर पार्टी के भीतर कई नेता इसे एक बार फिर नेतृत्व की ही गलती मानते हैं. इन नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी ने पहली गलती सिद्धू को राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाकर की और फिर समूचे नेतृत्व ने दूसरी गलती तब की जब चंद दिनों में हीं सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया तो गांधी परिवार ने सिद्धू के इस्तीफे को कबूल कर किसी और को कमान नहीं सौंपी. ऐसे पार्टी पंजाब में आखरी वक्त तक कई खेमों मे बंटी रही. एक तरफ मुख्यमंत्री चन्नी का खेमा, तो दूसरी तरफ सिद्धू खेमा, तो तीसरी तरफ पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड का खेमा और यही खेमेबाजी पार्टी को पंजाब मे निगल गई.


उत्तराखंड में भी क्या कांग्रेस हुई गुटबाजी का शिकार?


पंजाब की ही तरह कांग्रेस उत्तराखंड में भी गुटबाज़ी की भेंट चढ़ गई. उत्तराखंड में तो इस कदर बुरा हाल हुआ कि संभावित मुख्यमंत्री के चेहरे हरीश रावत खुद अपना ही चुनाव हार गए. यहां भी कुछ महिनों पहले तक कहा जा रहा था कि बीजेपी सरकार के खिलाफ काफी Anti Incumbency है लिहाजा कांग्रेस की वापसी की मज़बूत संभावना है पर यहां भी पार्टी खेमों में बंट गई. चर्चा थी कि मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा को लेकर हरीश रावत और प्रभारी के बीच ही ठन गई थी. हरीश रावत चाहते थे उनके नाम की घोषणा हो तो बाकी नेता इस हक में नहीं थे. यही नहीं, बीजेपी से वापस आए हरक सिंह रावत को पार्टी में वापस लाने के नेतृत्व के फैसले के खिलाफ भी हरीश रावत ने मोर्चा खोल दिया था. लिहाजा आप खुद हीं अंदाजा लगा सकते हैं कि उत्तराखंड में भी एक तरह से दो-तीन कांग्रेस खेमे ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था और पार्टी नेतृत्व कुछ नही कर सका और जीता हुआ राज्य हाथ से निकल गया.


क्या G-23 खेमा बदलना चाहता है नेतृत्व?


अब कांग्रेस कह रही है कि पार्टी नेता व्यक्तिगत महत्वकांक्षा के लिए उसी पेड़ को ना कांटे जिसपे सब बैठे हैं. सितंबर महीने में कांग्रेस में संगठन और अध्यक्ष पद के चुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि राहुल गांधी हीं एक बार फिर से पार्टी के अध्यक्ष बनाए जाएंगे, मगर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सितंबर तक तो बहुत देर हो चुकी होगी, कांग्रेस को जो करना है वो अभी जल्द से जल्द हीं करना होगा. उधर बागी गुट G-23 ने भी अब तलवार एक बार फिर से मयान से बाहर निकालने के संकेत दे दिए हैं. गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए एक अखबार से कहा कि नतीजे देख कर उनके दिल से खून टपक रहा है, उन्होंने कहा "My heart is bleeding". वहीं शशि थरूर ने ट्वीट करके कहा कि कांग्रेस में अब संगठनात्मक बदलाव की सख्त जरूरत है. और ये किसी से अब छिपा भी नहीं है कि G-23 में शामिल नेता काफी समय से गांधी परिवार के अलावा किसी और को पार्टी की कमान दिए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दे रहे हैं. 


मणिपुर और गोवा में भी मिली कांग्रेस को हार


कांग्रेस मणिपुर और गोवा में भी अपने आप को बचा नहीं पाई. गोवा मे भी चर्चा थी कि कांग्रेस या तो चुनाव जीत सकती है या कम से कम सबसे बड़ी पार्टी बन कर तो उभरेगी हीं मगर यहां भी बुरा हाल हो गया. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक पर ऐसी सेंध लगाई कि कांग्रेस कहीं की नहीं रही. सवाल उठ रहे हैं कि जब चुनाव से पहले तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा ने चुनावी गठबंधन करने का प्रस्ताव दिया था तो क्या कांग्रेस को इस बारे में सोंचना नहीं चाहिए था. पार्टी के कई नेता अब सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर चिदंबरम जैसे वरिष्ठ नेता वहां महीनों से क्या कर रहे थे ? क्या ये नेता खुद ज़मीनी सच्चाई समझ नहीं पाए या फिर नेतृत्व को जान बूझ कर अंधेरे में रखा. फिलहाल कांग्रेस के सामने अब अस्तित्व बचाने समेत कई चुनौतियां हैं.


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