Supreme Court : जस्टिस उदय उमेश ललित ( CJI UU LALIT) ने  27 अगस्त को भारत के 49वें मुख्य न्यायधीश के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया था. बीते शाम को  सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल एसोसिएशन (SCBA) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी बात को रखते हुए जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि उनके द्वारा 'केसों की लिस्टिंग' पर बनाए गए नये नियम के चलते सुप्रीम कोर्ट ने मात्र 13 दिनों में 4000 से ज्यादा मामलों का निपटारा कर दिया है.  उन्होंने नए लिस्टिंग सिस्टम पर जवाब देते हुए कहा कि हमारे सहयोगियों को  इस मुद्दे पर कोई भी मतभेद नहीं है. जस्टिस ललित ने कहा कि यह सब उनके सहयोगी जजों के मदद से ही संभव हो पाया है.


जोखिम भरा था यह स्टेप 


अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्होंने केसों की लिस्टिंग को लेकर एक जोखिम भरा स्टेप उठाया था. इसलिए बहुत सारी बातें भी इसके खिलाफ में कही गई, लेकिन हम सभी जज इस नए सिस्टम पर एक साथ काम कर रहें हैं. उन्होंने कहा, "जब मैंने पदभार संभाला तो हर आंखें मुझे एक ही कहानी बता रही थीं. 'सर, हमें आपसे बहुत उम्मीदें हैं.' मैं ईमानदारी से प्रयास करूंगा. मैं उन उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगा. सुप्रीम कोर्ट कोशिश करेगा कि ज्यादा से ज्यादा मामले निपटाए जाएं. अधिक से अधिक मामले सुप्रीम कोर्ट में लाए जाएं और इस संदेश को देश के कोने-कोने तक जाने दें."


नियमित मामलों के निपटारे पर अधिक जोर 


अपने संबोधन के दौरान चीफ जस्टिस  यूयू ललित ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट दो दिनों के अंदर नियमित सुनवाई के 106 मामलों पर भी फैसला कर सकती है. नियमित सुनवाई के मामले तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास हैं जिन्हें या तो व्यापक तर्क की आवश्यकता होती है या फिर वे सूचीबद्ध किए बिना दशकों से ठंडे बस्ते में पड़े हैं. सीजेआई ललित ने कहा, "आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि अदालतें अब नियमित मामलों के निपटारे पर अधिक जोर दे रही हैं."
जस्टिस ललित ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ज्यादा से ज्यादा मामलों को निपटाने की कोशिश करेगा और वह सीजेआई के रूप में 74 दिनों के अपने छोटे से कार्यकाल में लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेंगे.


क्यों हुआ था विरोध ?


सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जस्टिस यूयू ललित के तरफ से लाये गए केसों की लिस्टिंग के नए सिस्टम पर अपनी चिंता को व्यक्त किया था . उनका कहना था कि 'नया लिस्टिंग सिस्टम मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं देता है. 


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