एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद  की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के खिलाफ जीत दर्ज की है. द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से पहली बार राष्ट्रपति बनी हैं. द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज के आदिवासी गांव उबरबेड़ा गांव में हुआ था. भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने सिंचाई और बिजली विभाग क्लर्क के तौर पर नौकरी कर चुकी हैं. 


आदिवासियों के संथाल समुदाय से आने वाली मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था. इसके बाद वो राजनीति में एक कुशल नेता की तरह आगे बढ़ती चली गईं. पार्षद की जिम्मेदारी निभाने के बाद रायरंगपुर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की उपाध्यक्ष बनीं. 2013 में वह पार्टी के एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य बनीं. द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में बीजेपी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार में पहले वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार और मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री की भी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं. साल 2007 में द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक का भी सम्मान मिला. 


मुश्किलों से भरी रही जिंदगी


हालांकि द्रौपदी मुर्मू की निजी जिंदगी मुश्किलों से भरी रही है. मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था. उनके दो बेटे और एक बेटी हुई. उनके पति और दोनो बेटों की मौत हो गई.  उनकी बेटी इतिश्री का विवाह गणेश हेम्ब्रम से हुआ है. द्रौपदी मुर्मू बहुत ही अनुशाषित दिनचर्या का पालन करती हैं. वह सुबह तीन बजे उठती हैं और ध्यान और योगा करना वह नहीं भूलती हैं. हर दिन ब्रह्मकुमारी से सीखा हुआ ध्यान और मेडिटेशन करती हैं और रात 9 बजे तक सो जाती हैं. खास बात ये है कि वो ब्रह्मकुमारी की ट्रान्सलाईट रखती है और एक छोटी सी ज्ञान की पुस्तक भी अपने साथ रखती हैं.


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