उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और रामपुर-खतौली विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं. मैनपुरी सीट पर सपा की डिंपल यादव ने भारी मतों से जीत दर्ज करते हुए बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य को 2 लाख 88 हजार वोटों से मात दी. 


चुनाव के अंतिम राउंड तक दोनों उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला. हालांकि, डिंपल अंत तक लगातार आगे रही. बीजेपी उम्मीदवार रघुराज शाक्य अपना बूथ भी हार गए.


सभी 5 सीटों पर सपा की लीड


मैनपुरी लोकसभा में विधानसभा की 5 सीटें हैं. सदर, किशनी, भोगांव, करहल और जसवंत नगर. पहली बार सपा प्रत्याशी को पांचों सीटों पर लीड मिली. 2019 में मुलायम भोगांव से पिछड़ गए थे, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में भोगांव और सदर सीट सपा हार गई थी. 




डिंपल यादव ने बचाई परिवार की साख


उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव की बहु डिंपल यादव को इस सीट से प्रत्याशी बनाया, जिससे से साफ था कि सपा के लिए ये सीट कितनी महत्वपूर्ण सीट थी. इस सीट पर सपा के लिए जहां एक तरफ परिवार की साख बचाने की चुनौती थी तो वहीं लोगों के बीच ये संदेश भी पहुंचाना था कि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश ही उनकी विरासत के सही उत्तराधिकारी हैं.


डिंपल की जीत के साथ ही यह साबित भी हो गया. मैनपुरी सीट पर वोटों की गिनती शुरू होने के साथ ही आखिरी राउंड तक डिंपल यादव लगातार आगे रही. बीजेपी उम्मीदवार रघुराज शाक्य अपना बूथ तक हार गए.


मैनपुरी में बीजेपी का नहीं चला जादू


बीजेपी के हाथ में आते आते ये सीट रह गई. बीजेपी के प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य मुलायम सिंह यादव के गढ़ में उनकी बहु डिंपल यादव को मात देने में कामयाब नहीं हो पाए. लेकिन अगर इस सीट पर चुनाव जीतने के लिए बीजेपी की रणनीति की बात करें तो बीजेपी ने पूरी कोशिश की और एड़ी चोटी की जोर लगाते हुए इस सपा के गढ़ पर कमल खिलाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसका ये अरमान पूरा नहीं हो सका. आखिर बीजेपी डिंपल यादव के सामने क्यों फेल हो गई?


इस सीट पर मुलायम सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी में सीधी टक्कर थी, क्योंकि बसपा और कांग्रेस ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे. वहीं मुलाय सिह यादव के निधन के बाद अखिलेश परिवार को ना केवल अपने समर्थकों बल्कि तमाम लोगों का समर्थन भी मिला. कही ना कहीं बसपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार ना उतारकर सपा को समर्थन दिया.


ऐसे में इस सीट पर यादव वोटरों के साथ मुस्लिम और दलित वोटर भी सपा के पाले में चला गया. इसके अलावा यूपी की सबसे पुरानी पार्टियों में से एक समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव के निधन लोगों की सहानुभूति भी मिली जिसका नतीजा रहा कि लोगों ने इस सीट पर सपा को भारी समर्थन दिया.


मैनपुरी लोकसभा में सबसे ज्यादा 'यादव' वोटर्स


मैनपुरी सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो इस सीट पर कुल 17 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं. जिसमें से सबसे ज्यादा संख्या यादव वोटरों की जिसमें 35 फीसदी यादव वोटर हैं तो वहीं दूसरे नंबर पर शाक्य और राजपूत वोटर. जिसके बाद ब्राह्मण, लोधी, दलित, मुस्लिम वोटर्स हैं और इस चुनाव में भी हमेशा की तरह यादव और शाक्य वोटर्स का साथ सपा को मिला जिसके कारण सपा को भारी जीत मिली है.


बीजेपी के रघुराज सिंग शाक्य को शाक्य समाज का भी खासा समर्थन नहीं मिला बल्कि ये वोटर भी सपा के पाले में चला गया.जबकि बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमाने के लिए इस जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही रघुराज सिंह शाक्य पर दाव चला था. लेकिन बीजेपी का ये दांव खासा असर नहीं कर सका. 




इसके अलावा मैनपुरी लोकसभा में आने वाली जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से भी सपा को ही समर्थन मिला क्योंकि यहां से विधायक अखिलेश यादव के चाचा और मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव ने भी इस उपचुनाव में डिंपल यादव को समर्थन देने का ऐलान किया था. जिसके बाद लोगों के बीच यादव परिवार के बीच एकता का संदेश गया.


पूरा यादव परिवार एक साथ आ गया और मुलायम सिंह यादव की एतिहासिक सीट को बचाने के लिए बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा. यहां तक की नतीजा ये रहा कि उपचुनाव के नतीजे आते आते चाचा और भतीजे एक साथ आ गए.शिवपाल यादव ने डिंपल की जीत की घोषणा से पहले ही अपनी पार्टी प्रगतीशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय करने का ऐलान कर दिया. 


इन सभी कारणों के नतीजा यही रहा कि साल 1996 के मैनपुरी लोकसभा सीट पर कब्जा कर बैठी सपा ने एक बार फिर इतिहास रच दिया और फिर से नेता जी की सीट को सपा में बरकरार रहा. इस दौरान एक नारा जो चुनावी रैलियों के दौरान काफी सुनने को मिला कि "जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है...." ये नारा यहां इस जीत के साथ ही सिद्ध हो गया है.