नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस के साइबर सेल(साइपैड) ने चीनी हैकर्स की साजिश का पर्दाफाश किया है, जो सोशल मीडिया के माध्यम से यूआरएल लिंक भेज कर आपके मोबाइल में जबरन अपनी जगह बना लेते थे और फिर मोबाइल के रास्ते आपके दिमाग को हैक करके आपके मन को अपने अनुसार बदलने का प्रयास कर सकते थे.


पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें से दो चीनी नागरिक हैं. इनके पास से 25 लाख नकद बरामद किए गए हैं. साथ ही इनके बैंक अकाउंट से 6 करोड़ रुपए की ट्रांसक्शन का पता चला है, जिन्हें सीज करवा दिया गया है. इतना ही नहीं इस ग्रुप के दो मुख्य सदस्य भारत छोड़कर फरार हो चुके हैं. वे दोनों भी चीनी नागरिक ही बताए गए हैं और पुलिस उनसे संबंधित जानकारी जुटाकर उनके खिलाफ कार्यवाही के तैयारी कर रही है. अभी तक कि जांच में 40 हजार लोगों की जानकारी सामने आई है, जिन्हें प्रीमियम सदस्यता की स्कीम के नाम पर ठगा गया है. लेकिन जांच में यह भी पता चला है कि चीनी ऐप्स करोड़ों मोबाइल में डाउनलोड हुई हैं.


क्या है पूरा मामला


साइपैड के डीसीपी अनेश रॉय का कहना है कि 17 दिसंबर के बाद से देशभर में कई सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से अनजाने नंबरों से यूआरएल लिंक भेजे गए. जिन पर क्लिक करने पर रुपयों का लालच भी दिया जाता था. जब लोग उस पर क्लिक करते तो मोबाइल के डाटा की जानकारी शेयर करने की परमिशन भी ले ली जाती थी. जिससे ये चीनी हैकर्स मोबाइल का सारा डाटा चोरी कर लेते थे. इतना ही नहीं वह यूट्यूब या फिर फेसबुक जैसे सोशल मीडिया की मदद से अपना मनचाहा कंटेंट इन लोगों को परोस रहे थे.


 अनेश रॉय ने कहा कि ऐसी आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में ये लोग भड़काऊ कंटेंट का इस्तेमाल करते हुए हमारे देश की जनता के मन को भ्रमित करने का काम कर सकते थे.


एमएलएम की तर्ज पर कर रहे थे काम


फिलहाल की बात करें तो ये गिरोह लोगों को रुपयों का लालच देकर यूआरएल लिंक पर क्लिक करवाता था. इसके अलावा सोशल मीडिया पर पेज लाइक करने की एवज में 6 प्रति क्लिक देने का वादा करता था. इतना ही नहीं ये लोग मल्टी लेवल मार्केटिंग(एमएलएम) की तर्ज पर प्रीमियम स्कीम भी चला रहे थे और लोगों को कह रहे थे कि जिसे ज्यादा पैसा कमाना है वह प्रीमियम सदस्यता लें. जिसके लिए वीआईपी श्रेणी में सदस्यता मिलेगी और उसके लिए 10,000 से 30000 तक देने होंगे. वीआईपी स्कीम में जुड़ने वाले लोग अपने नीचे सदस्यों की चैन बना सकते हैं. उनके साथ जुड़े जो सदस्य हैं, वे जितने लिंक पर क्लिक करेंगे, उसका कमिशन भी प्रीमियम सदस्य को मिलेगा.


वर्चुअल पैसा ऐप पर आता था, असली नहीं
पुलिस का कहना है कि सदस्यता मिलने के बाद या यूआरएल लिंक पर क्लिक करने के बाद पैसा लोगों के अकाउंट में नहीं आते थे. पैसा उनकी ऐप या उनके फेसबुक आदि पर दिखाई देता था लेकिन बैंक एकाउंट में ट्रांसफर नहीं होता था. सबसे बड़ी बात यह है कि ये जो ऐप है, ये प्ले स्टोर माध्यम से डाउनलोड नहीं होती थी और इनका सर्वर भी चीन में है. अभी इस गैंग के दो प्रमुख सदस्यों की भी तलाश की जा रही है।. उनके नाम जुनाथें और बैरिक बताए गए हैं. ये दोनों किंगपिन हैं, जो विदेश में है. दोनों ही चीनी नागरिक हैं. पहले भारत में थे, लेकिन अब विदेश भाग चुके हैं.


शेल कंपनियों के माध्यम से विदेश जा रहा था पैसा


डीसीपी अनेश रॉय का कहना है कि जांच में पता चला है कि ये लोग सदस्यता के नाम पर ली जा रही रकम को शेल कंपनियों के माध्यम से विदेश भेज रहे थे. दिल्ली पुलिस की cypad ने दिसंबर के आखिरी सप्ताह में व्हाट्सएप के ऐसे मैसेज देखे जो आईएसडी नम्बर से किये गए थे जिसमें यूआरएल भी थे.जांच में पता चला कि ये सभी यूआरएल ऐसी एप्प्स के थे, जिन्हें केंद्र सरकार ने बेन कराया था. इसके अलावा यूट्यूब और फेसबुक पर एक्टिविटी करने को कहा जाता था और उसके बदले पैसा देने की बात कही जाती थी. उसके लिए प्रीमियम एकाउंट्स लेने के लिए कहा जाता, जिसके बदले पैसा मांगा जाता था.


जब ऐसे एकाउंट्स की जानकारी मांगी तो पाया कि उनकी जानकारी उपलब्ध नहीं थी. जांच में पता चला कि यह सोशल मीडिया पेज चलाने वाले एमएलएम की तर्ज पर काम कर रहा था. हर व्यक्ति को अपने साथ अन्य लोगों को जोड़ने के लिए कहा जाता और उसके बदले कमीशन दी जाती.


ऐप के नाम
न्यू वर्ड, इन्वॉय यूआरएल लिंक व्हाट्सएप के माध्यम से भेजे जाते हैं. ऐप लिंक पर क्लिक करते ही खुलते हैं, जो आपके मोबाइल में जगह बना लेते हैं और फिर आपके मोबाइल का रिमोट हैकर्स के हाथ में होता है.


कैसे बने जागरूक
पुलिस की सलाह है कि ऐसी गड़बड़ वाली गतिविधियों से बचने के लिए किसी भी मैसेज पर आए लिंक को क्लिक न करें. खासतौर से जो अनजान हो या फिर किसी लालच वाले मैसेज के साथ भेजी गई हों. आप चंद पैसे के लालच में किसी भी सोशल मीडिया पेज को लाइक न करें, इससे न केवल आपके बल्कि आपके दोस्त भी ऐसे पेज के मैसेज पढ़ सकते हैं, जिससे सोच भी बदली जा सकती है या नया माहौल बनाया जा सकता है.


व्हाट्सऐप की नई प्राइवेसी की कानूनी पड़ताल, फिलहाल नहीं है कोई सरकारी गाइडलाइन