Flood In Indian City : चक्रवात मिचौंग के कारण चेन्नई में आई बाढ़ ने एक बार फिर जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं के प्रति भारतीय शहरों पर खतरे को उजागर कर दिया है. 4 दिसंबर, 2023 तक 48 घंटों के भीतर 40 सेमी से अधिक वर्षा के साथ चेन्नई में बाढ़ आ गई. करीब 6 दिनों से पूरा शहर घुटनों भर पानी में डूबा हुआ है. ये हालात शहरी भारत के सामने बढ़ते जलवायु संकट का संकेत दे रहे हैं.


पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च एंड क्लाइमेट एनालिटिक्स की रिसर्च में चेतावनी दी गई है. इसमें कहा गया है कि भारत, भूमध्य रेखा के करीब होने के कारण, उच्च अक्षांशों की तुलना में समुद्र के स्तर में अधिक बढ़ोतरी का अनुभव करेगा. भारत के तटीय शहरों में समुद्र के खारे पानी के घुसने की वजह से एक गंभीर खतरा पैदा हो सकता है. इससे कृषि प्रभावित होती है, भूजल की गुणवत्ता में गिरावट आती है और संभावित रूप से जलजनित बीमारियों में वृद्धि होती है.


18 लोगों की मौत, सड़कों पर बह रही थीं कारें
चक्रवात मिचौंग ने करीब डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान ले ली और आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में विनाश के डरावने निशान छोड़े हैं. लगातार बारिश से जलमग्न हुई आवासीय इमारतों और सड़कों पर पानी के बहाव में बह गईं कारों की डरावनी तस्वीरें सामने आई हैं.


चेन्नई में पहले भी आती रही है बाढ़
भले ही इस बार चक्रवात के प्रभाव से भारी बारिश की वजह से ये हालात बने, लेकिन ये पहली बार नहीं है जब चेन्नई में बाढ़ आई है. पूर्वोत्तर मॉनसून से भारी वर्षा के कारण 2015 में शहर कई दिनों तक बाढ़ में डूब गया था. यह घटना एक चेतावनी थी. अब एक बार फिर ऐसा ही हुआ है जो भारतीय शहरों के लिए भी एक संकेत है.


भारत के दूसरे शहरों में भी ऐसे ही हालात 
चेन्नई के अलावा कोलकाता और मुंबई को समुद्र के स्तर में वृद्धि, चक्रवातों और नदी में बाढ़ से महत्वपूर्ण खतरों का सामना करना पड़ रहा है. घनी आबादी वाले ये महानगर पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चपेट में हैं. इनमें वर्षा और बाढ़ की तीव्रता में वृद्धि के साथ-साथ सूखे का खतरा भी बढ़ गया है.


3 फीट पानी में डूब सकते हैं दर्जन भर शहर
2021 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक रिपोर्ट में भारत के लिए गंभीर चेतावनी है. इसमें कहा गया है कि सबसे खतरनाक जोखिम कारक समुद्र का बढ़ता स्तर है, जिससे सदी के अंत तक देश के 12 तटीय शहरों के जलमग्न होने का खतरा है. आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि मुंबई, चेन्नई, कोच्चि और विशाखापत्तनम सहित एक दर्जन भारतीय शहर सदी के अंत तक लगभग तीन फीट पानी में डूब सकते हैं.


बढ़ रहा है समुद्र का दायरा
यह जोखिम सिर्फ अनुमान नहीं हैं. 70 लाख से अधिक तटीय खेती और मछली पकड़ने वाले परिवार पहले से ही प्रभाव महसूस कर रहे हैं. अनुमान है कि बढ़ते समुद्र के कारण होने वाले तटीय कटाव से 2050 तक लगभग 1500 वर्ग किलोमीटर भूमि समुद्र में समा जाएगी. यह कटाव मूल्यवान कृषि क्षेत्रों को नष्ट कर देता है और तटीय समुदायों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल देता है.


समुद्र से दूर शहरों पर भी पड़ रहा प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ आने का खतरा सिर्फ तटीय शहरों के लिए नहीं है. समुद्र तट से दूर भारत के शहरों में भी इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है.  बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के शहर मॉनसून के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन से बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं.


इस साल की शुरुआत में राजधानी दिल्ली भी बाढ़ की चपेट में थी. जुलाई में, यमुना में पानी 208.48 मीटर तक बढ़ गया और किनारे के पास दिल्ली के निचले इलाकों में पानी भर गया था. इसकी वजह से आसपास की सारी इस सड़के जानमग्न हो गई थीं. यमुना ने 1978 का अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ दिया था जो लगातार बढ़ते खतरे का संकेत है.


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