सोनीपत के ओ.पी. जिंदल वैश्विक विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पहुंचे भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत ने कानून के विद्यार्थियों का संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि ईमानदारी को अपने चरित्र का स्थायी आधार बनाएं, यही गुण न्याय व्यवस्था को संरक्षित रखता है. संविधान को जीवंत बनाए रखता है.

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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कानून की पढ़ाई जितनी गहन है, उतनी ही प्रेरणादायी भी है. उन्होंने विद्यार्थियों से कहा, “याद रखें, आप भविष्य की दिशा तय करने वाले विद्यार्थी हैं. हमारा संविधान तभी तक सुरक्षित है, जब तक आपकी नैतिकता उसे सम्मानपूर्वक संभालकर रखेगी.”

इस मौके पर भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत के अलावा कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पहुंचे. इस दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल मुटिंग एकेडमी फॉर एडवोकेसी, नेगोशिएशन, डिस्प्यूट, एजूकेशन का औपचारिक उद्घाटन किया. 

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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि ईमानदारी केवल व्यक्तित्व का आभूषण नहीं, बल्कि वह अनुशासन है जो न्याय को दृढ़ बनाता है. प्रतिष्ठा को कायम रखता है. न्याय की राह और कानून का अभ्यास हमेशा इसी आदर्श के अनुरूप होना चाहिए. 

मुख्य न्यायाधीश ने डिजिटल युग की चुनौतियों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज के समय में विकृत वीडियो, भ्रम फैलाने वाली सूचनाएं और मनगढ़ंत ऑनलाइन अभियानों ने सत्य की परख को कठिन बना दिया है. 

उन्होंने कहा, “ऐसे समय में ईमानदारी और सच्चाई केवल आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व का आधार और सफलता का एकमात्र सच्चा मार्ग है. उन्होंने कहा कि किसी भी याचिका पर विचार करते समय न्यायालय केवल तथ्य और विधि नहीं देखता, बल्कि संविधान के उस मूल वादे को भी स्मरण रखता है जिसे हम राष्ट्र के रूप में स्वीकार कर चुके हैं." 

उन्होंने कहा कि संविधान के उच्च उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए न्याय करना ही बेहतर भारत निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है.,

कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राष्ट्रीय ध्वज को अंतिम रूप देने की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रक्रिया पर विस्तृत प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि ‘झंडा समिति’ की बैठक में तिरंगे के मध्य चरखा रखने का प्रस्ताव था, जिसका डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने विरोध किया. डॉ. अम्बेडकर ने स्पष्ट कहा, यदि चरखा रखा गया, तो ध्वज किसी दल का प्रतीक बन जाएगा, देश का नहीं.”

इसके बाद समिति ने अशोक चक्र को स्थान देने का निर्णय लिया, जिसकी 24 तीलियां निरंतर कर्म, करुणा, समानता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे मानवीय गुणों का प्रतीक हैं.

(रिपोर्ट- नितिन अंतिल)