लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक ने गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार साम्प्रदायिक दंगों के राजनीति से प्रेरित पाए जाने वाले मुकदमों की वापसी पर विचार कर सकती है. पाठक ने कहा, ‘‘आईपीसी के तहत दंगों के मुकदमे भी आते हैं. ऐसे मुकदमे अगर राजनीति से प्रेरित पाये गये तो हम उन्हें वापस लेने के बारे में निश्चित रूप से विचार करेंगे.’’


कानून मंत्री मुजफ्फरनगर समेत राज्य के विभिन्न हिस्सों में पूर्व में हुए कथित साम्प्रदायिक दंगों से संबंधित मुकदमों के सिलसिले में पूछे गये सवाल का जवाब दे रहे थे. हालांकि उन्होंने साफ किया कि केवल वे ही मुकदमे वापस लिये जाएंगे जो राजनीतिक बदले की भावना से दर्ज कराये गये थे. बहरहाल, पाठक ने मुजफ्फरनगर और शामली में साल 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़े 131 मुकदमें को राज्य सरकार द्वारा वापस लिए जाने की प्रक्रिया शुरू होने के दावे सम्बन्धी मीडिया रिपोर्ट्स पर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया.


मालूम हो कि साल 2013 में समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल में मुजफ्फरनगर और आसपास के कुछ जिलों में हुए दंगों में कम से कम 62 लोगों की मौत हो गयी थी. इसके अलावा हजारों बेघर हो गये थे. दंगों के मामले में करीब 1455 लोगों पर कुल 503 मुकदमे दर्ज किये गये थे.


कांग्रेस ने दंगा मामलों को वापस लेने के प्रयास पर योगी सरकार को घेरा 


वहीं दंगों को लेकर दर्ज कई मुकदमों को वापस लेने पर विचार करने का संकेत दिये जाने पर योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला बोला. पार्टी ने आज सवाल किया कि क्या कोई भी मुकदमा धार्मिक आधार पर वापस लिया जा सकता है और चंद मामलों के बजाय इसमें सभी मुकदमों की समीक्षा क्यों नहीं की जानी चाहिए?


कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने आज इस बारे में सवाल करने पर संवाददाताओं से कहा कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली में हुए दंगों में दुर्भाग्य से 62 लोगों की जानें गयीं और 503 मुकदमें दर्ज किए गए. बीजेपी के सांसद संजीव बालियान और दूसरी पार्टी के नेताओं ने पांच फरवरी 2018 को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक ज्ञापन देकर मांग की कि 503 मुकदमों में से 179 मामलों को वापस लिया जाए.


सुरजेवाला ने योगी सरकार और बीजेपी से चार सवाल पूछे. अगर दंगों के मामलों की समीक्षा ही करनी है तो केवल 179 की ही क्यों, पूरे 503 मुकदमों की क्यों नहीं? क्या गंभीर अपराध वाले मुकदमों को कोई सरकार राजनीतिक मुकदमें बताकर उन्हें वापस ले सकती है? क्या संविधान या कानून के अनुसार धर्म के आधार पर मुकदमों की वापसी हो सकती है? क्या मुख्यमंत्री इन मुकदमों को इस लिए तो वापस नहीं ले रहे क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि राजनीतिक नेताओं के खिलाफ मामलों की फास्ट ट्रैक अदालत में सुनवाई होनी चाहिए.


कांग्रेस प्रवक्ता ने सीएम योगी को नसीहत दी कि अब वह बीजेपी नेता नहीं एक मुख्यमंत्री हैं. उन्हें गोरखपुर संसदीय उपचुनाव के नतीजों से सबक लेना चाहिए. वह संविधान और कानून के रक्षक है. उन्होंने कहा कि मुकदमें वापस लेने का फैसला अदालत करेगी पर उसके लिए राज्य सरकार ने प्रक्रिया शुरू कर दी है. उन्होंने कहा, ''संविधान और कानून की ड्योढ़ी पर बैठे हुए व्यक्ति से बगैरे लाग-लपेट के न्याय की रक्षा की अपेक्षा है. क्या वह इसे कर पायेंगे, यह उनकी कसौटी होगी.''