Citizenship Amendment Act: बीजेपी नीत केंद्र की मोदी सरकार ने सोमवार (11 मार्च) को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) को लागू करने से जुड़े नियमों को अधिसूचित कर दिया. इससे भारत के तीन मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश) के गैर-मुस्लिम और धार्मिक अत्याचार के सताए लोगों के लिए भारतीय नागरिक बनने का रास्ता साफ हो गया. इसकी पात्रता के लिए ऐसे लोगों को कानून की शर्तों को पूरा करना होगा.


सीएए को लागू करने का वादा बीजेपी के 2019 को लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में किया गया था. पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि 2019 में पारित कानून को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले लागू कर दिया जाएगा. वहीं, 27 दिसंबर, 2023 को गृह मंत्री अमित शाह ने सीएए को देश का कानून बताया था.  


CAA से किसे मिलेगी नागरिकता?


सीएए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता पाने का रास्ता खोलता है. यह कानून 31 दिसंबर 2014 को और उससे पहले भारत आए सभी प्रवासियों पर लागू है.


सीएए को नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करके पारित किया गया था. इस कानून के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए सताए हुए हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है लेकिन यह इन देशों के मुस्लिमों को ऐसी पात्रता प्रदान नहीं करता है.


तत्काल कितने लोगों को मिलेगा लाभ?


कानून में 2019 का संशोधन कहता है कि 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश करने वाले उन प्रवासियों को त्वरित नागरिकता के लिए पात्र बनाया जाएगा जिन्होंने अपने मूल देश में धार्मिक उत्पीड़न या भय का सामना किया. आवेदनकर्ताओं को साबित करना होगा कि वे कितने दिनों से भारत में रह रहे हैं. उन्हें नागरिकता कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को भी पूरा करना होगा. 


संशोधन ने इन प्रवासियों के भारत का कानूनी नागरिक बनने के लिए निवास की आवश्यकता को बारह साल से घटाकर छह साल कर दिया था. इंटेलिजेंस ब्यूरो के रिकॉर्ड के मुताबिक, सीएए के तत्काल लाभार्थी 30,000 से ज्यादा होंगे.


कब पारित हुआ था सीएए?


सीएए को 11 दिसंबर, 2019 को संसद के दोनों सदनों से पारित किया था और 12 दिसंबर, 2019 को इसे अधिसूचित किया गया था. राष्ट्रपति की ओर से इसे स्वीकृति दे दी गई थी. हालांकि, इसके नियमों को अधिसूचित नहीं किए जाने के कारण अधिनियम लागू नहीं किया गया था.


संसदीय कार्य नियमावली के अनुसार, किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की मंजूरी के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए, नहीं तो सरकार को लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समितियों से अवधि में विस्तार करने की मांग करनी होगी. वर्ष 2020 से गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए संसदीय समिति से नियमित अंतराल पर अवधि में विस्तार प्राप्त करता रहा है. गृह मंत्रालय ने आवेदकों की सुविधा के लिए एक पोर्टल तैयार किया है क्योंकि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी. इस पोर्टल पर नागरिकता पाने के लिए आवेदन किया जा सकता है.


न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 कहे जाने वाले ये नियम सीएए-2019 के तहत पात्र व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाएंगे.’’ प्रवक्ता ने कहा, ‘‘आवेदन पूरी तरह से ऑनलाइन मोड में जमा किए जाएंगे जिसके लिए एक वेब पोर्टल उपलब्ध कराया गया है.’’ एक अधिकारी ने कहा कि आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा.


इन राज्यों में नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत दी जाती है नागरिकता


वे नौ राज्य जहां पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत भारतीय नागरिकता दी जाती है उनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र शामिल हैं.


असम और पश्चिम बंगाल में यह मुद्दा राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील है और सरकार ने इन दोनों राज्यों में से किसी भी जिले के अधिकारियों को अब तक नागरिकता प्रदान करने की शक्ति नहीं प्रदान की है.


पिछले दो वर्षों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला अधिकारियों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्ति दी गई हैं.


नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत 2021 में 1414 लोगों मिली सिटीजनशिप


गृह मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 1 अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित कुल 1,414 लोगों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत पंजीकरण या नेचुरलाइजेशन (देशीयकरण) के जरिए भारतीय नागरिकता दी गई.


न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसके पहले सीएए विरोधी प्रदर्शनों या पुलिस कार्रवाई के दौरान 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक देशभर में सीएए के विरोध में काफी प्रदर्शन देखे गए थे और जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों का कारण भी बने.


एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में दंगों के दौरान 13 लोगों की जान चली गई थी, कई घरों और दुकानों को आग लगा दी गई थी और और दर्जनों लोग लापता बताए गए. संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग ने भी हिंसा पर ध्यान दिया और 3 मार्च 2020 को उसने सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया. माना जाता है कि सीएए को काफी पहले ही लागू कर दिया जाता, लेकिन कोरोना की वजह से इसमें देरी हो गई. हालांकि अब विपक्षी दल सीएए को लेकर जारी किए गए नोटिफिकेशन की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं.


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