Bilkis Bano Case: गुजरात में 2002 के दंगों के समय सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुईं बिल्किस बानो (Bilkis Bano) ने कहा है, 'जो गलत है और जो सही है, उसके लिए मैं फिर से लडूंगी.’’ गुजरात दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्होंने उच्चतम न्यायालय (supreme court) का दरवाजा खटखटाया है. 


गुजरात में 2002 के दंगों के समय बिल्किस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं. बानो ने गुजरात सरकार द्वारा 15 अगस्त को दोषियों की समय से पहले रिहाई को अपनी दो अलग-अलग याचिकाओं में चुनौती दी और कहा कि इसने समाज की अंतरात्मा को झकझोर दिया है.


दुबारा न्याय के दरवाजे पर दस्तर देना आसान नहीं था


बानो ने गुरुवार (1 दिसंबर) को जारी एक बयान में कहा, 'एक बार फिर खड़े होने और न्याय के दरवाजे पर दस्तक देने का फैसला मेरे लिए आसान नहीं था. मेरे पूरे परिवार और मेरा जीवन नष्ट करने वाले लोगों की रिहाई के बाद, मैं लंबे समय तक स्तब्ध थी. मैं अपने बच्चों, अपनी बेटियों और सबसे बढ़कर उम्मीद खत्म होने से जड़ हो गई थी.’’ बानो ने कहा कि उनकी चुप्पी के समय उन्हें देश केअलग-अलग हिस्सों से समर्थन की आवाजें मिलीं, जिनसे उनकी उम्मीद जगी है, और उन्हें एहसास कराया गया कि वह अपनी पीड़ा में अकेली नहीं हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास यह बताने के लिए शब्द नहीं हैं कि इस समर्थन का उनके लिए क्या मतलब है.


लोगों के समर्थन से मिला मेरे साहस को बल


उन्होंने कहा कि देश के अलग-अलग हिस्सों से मिले समर्थन ने मानवता के प्रति उनके भरोसे को फिर से कायम किया और न्याय के विचार में फिर से विश्वास करने के लिए उनके साहस को नया बल मिला. बानो ने कहा, 'इसलिए, मैं एक बार फिर खड़ी होकर लडूंगी, जो गलत है और जो सही है, उसके खिलाफ, मैं आज अपने लिए, अपने बच्चों के लिए और हर जगह की महिलाओं के लिए ऐसा कर रही हूं.'


कोर्ट ने सुनाई थी सजा


मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिल्किस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस सजा को बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था. गुजरात सरकार की ‘क्षमा नीति’ के तहत इस साल 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से 11 दोषियों की रिहाई ने जघन्य मामलों में इस तरह की राहत के मुद्दे पर बहस छेड़ दी है. रिहाई के समय दोषी जेल में 15 साल से अधिक समय काट चुके थे.


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