Lok Sabha Election 2024 : बिहार की राजनीति में मंगलवार से हुए सरकार परिवर्तन वाला बदलाव यहां के लिए कोई आम बात नहीं है. बिहार हमेशा से क्षेत्रीय और देश की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है. अब तो राजनीति के बदलते घटनाक्रम को राजनीतिज्ञों के साथ-साथ जनता भी भलीभांति समझती रहती है. बिहार ही था जहां 70 के दशक में विशाल आंदोलन हुआ. इस आंदोलन की धमक ने 1975 से लेकर 1977 तक देश में आपातकाल लगवाया था. यहां की राजनीति की एक खास बात यह भी है कि बिहार में अधिकांश मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नही कर पाए. अक्सर खुद को जेपी आंदोलन का उत्पात बताने वाले लालू यादव ने अपना कार्यकाल पूरा किया था. इसके साथ ही नीतीश कुमार ऐसे नेता हैं, जो काफी लंबे समय से मुख्यमंत्री बने हुए हैं.


लालू की ओर से रोकी गई आडवाणी की रथ यात्रा रही चर्चा में


मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सहयोगी बीजेपी से नाता तोड़कर महागठबंधन से अपना नाता जोड़ लिया. ऐसे में फिर से बिहार और इसकी जटिल राजनीति की चर्चा शुरू हो गयी है. यहां 70 के दशक में छात्रों के नेतृत्व में ऐतिहासिक बिहार आंदोलन से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा समस्तीपुर में लाल कृष्ण आडवाणी की अयोध्या रथ यात्रा को रोकने वाली राजनीति हमेशा चर्चा का केंद्र बिंदु बने रहे. इसी के चलते बिहार में अप्रत्याशित तौर पर सत्तारूढ़ दल सरकार से बाहर हो गये या अनपेक्षित एवं अस्थायी गठबंधनों का उदय हुआ.


जाने माने समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किये गये जेपी आंदोलन बिहार आंदोलन के रूप में इतना मशहूर हुआ कि पटना से लेकर दिल्ली तक इसक व्यापक प्रभाव देखने को मिला. बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में उनके भाषणों की गूंज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान तक गूंजती थी. अशांति वाले 70 के दशक में जेपी के बिहार आंदोलन के चलते देश में 1975 से 1977 तक आपातकाल लगाया गया. उन्होंने बिहार में कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों को भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में खुद को झोंकने के लिए प्रेरित किया था. यह संघर्ष भारतीय राजनीति के व्यापक मंथन के तौर पर देखा गया.


तेजतर्रार नेता जेपी के नेतृत्व में बिहार में हुए आंदोलन ने संपूर्ण क्रांति का रूप ले लिया. राज्य में तत्कालीन गफूर सरकार के इस्तीफे की प्रारंभिक मांग आगे चलकर इंदिरा गांधी सरकार को बर्खास्त करने की एक बड़ी मांग के रूप में तब्दील हो गई. आपातकाल समाप्त होने और आम चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार उलट गई और जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का गठन हुआ. जिसका प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को बनाया गया. जेपी आंदोलन का कई लोगों पर इतना व्यक्तिगत और भावनात्मक प्रभाव पड़ा कि नीतीश कुमार, लालू यादव, सुशील कुमार मोदी और शरद यादव उस समय छात्र राजनीति में तल्लीन थे. ये लोग अक्सर खुद को जेपी आंदोलन का उत्पाद बताते हैं.


दोस्त से बने थे दुश्मन और अब फिर हुई दोस्ती


छात्र आंदोलन से उभरे लालू यादव और नीतीश कुमार एक समय काफी करीबी दोस्त हुआ करते थे लेकिन अपने राजनीतिक करियर में वह दोस्त से दुश्मन बन गये. इसके बाद आज फिर मौका देखकर दुश्मनी को दोस्ती में बदल लिया है. दोनों के बीच बनते बिगड़ते रिश्तों ने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति दोनों को प्रभावित किया है.


राजद और जदयू सरकार गठन में निभाते हैं महत्वपूर्ण भूमिका


जनता पार्टी से टूटकर दो दल बने थे. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड). यह दोनों दल किसी भी सरकार गठन के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं.


2024 लोकसभा चुनावों का किया जा रहा है आंकलन


साल 2017 में महागठबंधन से दूरी बनाने वाले नीतीश कुमार जैसे ही अब फिर से महागठबंधन में लौटे हैं. कई लोगों ने यह भी अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि क्या इस कदम का 2024 के लोकसभा चुनावों पर कोई असर पड़ेगा.


पटना छात्र नेताओं ने ये कहा


पटना में कई छात्र नेताओं ने एजेंसी और मीडिया कर्मियों से बातचीत के दौरान इस बात को लेकर सहमति व्यक्त की है कि इस प्रकार का मौजूदा राजनीतिक संकट बिहार के लिए नया नहीं है और इस अस्थिरता ने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति दोनों को प्रभावित किया है.


अखिल भारतीय छात्र संघ के सदस्य और पटना विश्वविद्यालय के छात्र कार्यकर्ता अमन लाल ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद बिहार के शुरुआती दिनों (1961 तक) में श्री कृष्ण सिंह के कार्यकाल को छोड़कर उसके बाद बना कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका था. नब्बे के दशक में केवल लालू प्रसाद ही अपना कार्यकाल पूरा कर सके थे और उसके बाद नीतीश कुमार 2005 के बाद से बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं.


बिहार के इन नेताओं का प्रभाव भी रहा है राष्ट्रीय राजनीति में


विशेषज्ञों का मानना ​​है कि बिहार के बड़े राजनीतिक नेताओं का राजनीतिक प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी हद तक रहा है. शायद यह एक ऐसा कारक भी है. जिसके कारण बिहार में जो होता है, वह भारत को प्रभावित करता है. जयप्रकाश नारायण के अलावा केबी सहाय, कर्पूरी ठाकुर, दरोगा प्रसाद राय, बीपी मंडल, ये सभी राज्य के ऐसे नेता थे. जिनका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति में भी था.


आत्मदाह प्रदर्शन और आडवानी प्रकरण थे संवेदनशील


बीपी मंडल की अध्यक्षता में 1979 में स्थापित मंडल आयोग की सिफारिशों का पूरे भारत में व्यापक प्रभाव पड़ा. इसके फलस्वरूप व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. इस दौरान कई लोगों ने आत्मदाह करने का प्रयास भी किया. शायद 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा को रोके जाने की घटना बिहार और भारत दोनों के राजनीतिक इतिहास के महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है. इस घटना ने राम मंदिर मुद्दे को महत्वपूर्ण और संवेदनशील बना दिया. इस घटना ने भारतीय जनता पार्टी के देश के राजनीतिक मंच पर एक दुर्जेय शक्ति के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त किया.


अब क्या पड़ेगा असर, बताएगा समय


बिहार का मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम राष्ट्रीय राजनीति में आने वाले दिनों में किस तरह की भूमिका निभाएगा. इसका अनुमान तो सभी लगा रहे हैं. लेकिन इसका असर तो समय ही बताएगा.


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