भीमा कोरेगांव युद्ध की आज 204वीं बरसी है. हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय 1818 की जंग की वर्षगांठ मनाते हैं, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी के बलों ने दलित सैनिकों के साथ पुणे के पेशवा की सेना को पराजित किया था. इस मौके पर यहां स्मृति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. दलित इस जीत को उत्पीड़ित समुदायों के आत्म-सम्मान वापस पाने की शुरुआत के रूप में मनाते हैं.


साल 2017 में भड़क गई थी हिंसा


आज बरसी के मद्देनजर इलाके में सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं. साल 2017 में पुणे से करीब 40 किलोमीटर दूर भीमा-कोरेगांव में अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था, जिसका कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया. इसके बाद हिंसा भड़क गई थी.


भीमा कोरेगांव की लड़ाई के बारे में जानें


भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को कोरेगांव भीमा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा सेना के बीच लड़ी गई थी. इस लड़ाई की खास बात यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले 500 महार सैनिकों ने पेशवा बाजीराव-2 की 25000 सैनिकों की टुकड़ी से लोहा लिया था.


अंग्रेजों-महारों ने मिलकर पेशवा को हराया


उस वक्त महार अछूत जाति मानी जाती थी और उन्हें पेशवा अपनी टुकड़ी में शामिल नहीं करते थे. महारों ने पेशवा से गुहार लगाई थी कि वे उनकी ओर से लड़ेंगे, लेकिन पेशवा ने ये आग्रह ठुकरा दिया था. बाद में अंग्रेजों ने महारों का ऑफर मान लिया, जिसके बाद अंग्रेजों और महारों ने मिलकर पेशवा को हरा दिया.


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