Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: एक बार जब पैतृक गांव आगरा के बटेश्वर को लेकर लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी से सवाल किया तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से कहा कि पूरा देश ही मेरा गांव है. राजनीति में सादगी, सरलता और सहजता के प्रतीक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का यह जवाब दर्शाता है कि देश के हर गांव को लेकर वह कितने ज्यादा संजीदे थे. अटल जी को गांव, गरीब और किसान से खास लगाव था. 


राजनीति करने वाले तो बहुत हुए पर ऐसे महान व्यक्ति जिन्होंने शासन नहीं, सुशासन किया हो, उनकी गिनती बहुत कम है. जब सुशासन का जिक्र होता है तो सबसे पहले जिस शख्स का ध्यान हमारे जेहन में आता है वो हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनका मानना था कि भारत में स्वराज को सुराज में बदलकर सुशासन लाना मुमकिन है. इसके लिए उन्होंने सबसे ज्यादा जोर गांवों की बेहतरी पर दिया. 


गांव, गरीब और किसान रहे प्राथमिकता में शामिल


अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी अपने बारे में नहीं सोचा. वह सदैव देश के बारे में सोचते रहे. वह देश के जन-गण-मन को जीतते रहे. उन्होंने भारत की राजनीति में एक ऐसी लकीर खींची, जहां पहुंचना हर राजनेता का सपना होता है. बतौर प्रधानमंत्री गांव, गरीब और किसान तीनों ही अटल बिहारी वाजपेयी की प्राथमिकताओं में शामिल रहे. 


ग्रामीण भारत को दी नई ऊंचाई


ग्रामीण भारत को नई ऊंचाई देने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता. प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने कई ऐसे ऐतिहासिक कदम उठाए जिसने ग्रामीण भारत की तस्वीर ही बदल दी. उन्होंने ग्रामीण भारत के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की. गांव, गरीब और किसान को लेकर कई अभूतपूर्व फैसले किए. उन्होंने किसानों के हक में कई अहम कदम उठाए.


अंतिम व्यक्ति के चेहरे पर देखना चाहते थे मुस्कान


सुशासन के अटल शिल्पकार अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद संभालते ही स्वराज को सुराज में बदलने का संकल्प लिया. उन्होंने जनहित के अपने ऐतिहासिक फैसलों से इसे साकार भी करके दिखाया. इतिहास के आइने में जब भी उन्हें तौला जाएगा, भारत की राजनीति में नैतिकता के उच्च मापदंड स्थापित करने वाले शिखर पुरुष के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा. अटल बिहारी वाजपेयी समाज के अंतिम व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते थे. 


गरीब और किसानों की बुलंद आवाज बने


अटल बिहारी वाजपेयी की प्राथमिकताओं में हमेशा गांव, गरीब और किसान रहे. संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह अटल जी गांव, गरीब और किसानों की बुलंद आवाज बनें. वाजपेयी जी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ग्रामीण विकास और किसानों की समस्याओं को दूर करने वाली कई योजनाएं लागू की. असल में अटल जी ने  प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने संसदीय सफर में  ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कई तरह के अभावों से जूझते  देखा था. मानसून पर निर्भर कृषि, गरीबी, निरक्षरता और बेरोजगारी ऐसी समस्याएं थीं जिन्होंने वाजपेयी के संवेदनशील मन को झकझोरा.


प्रधानमंत्री रहते कृषि मंत्रालय खुद संभाला


अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने. 1996 में पहले 13 दिन तक, फिर 1998 में 13 महीने तक और उसके बाद 1999 से 2004 तक का कार्यकाल उन्होंने पूरा किया. गांव के लोग उनसे जुड़ा हुआ महसूस करते थे. देश के किसानों को लेकर वो काफी संवेदनशील थे और हमेशा किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे. खेती किसानी को लेकर वाजपेयी कितने संवेदनशील थे, ये इस बात से पता चलता है कि प्रधानमंत्री जैसी बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए भी उन्होंने 13 महीने कृषि मंत्रालय अपने पास रखा.


पहली बार किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य


अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि देश के समृद्धि का रास्ता खेत और खलिहानों से होकर गुजरता है. जब किसान आर्थिक तौर से मजबूत होंगे, तभी विकास की रफ्तार तेज होगी. वाजपेयी देश में खाद्य श्रृंखला क्रांति लाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने पहली बार किसानों की औसत आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य रखा. तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 15 अगस्त 2003 को लाल किले के प्रचीर से देश को संबोधित करते हुए पहली बार किसानों की आय दोगुना करने की बात कही थी. हालांकि उनका ये लक्ष्य 2010 तक पूरा करने का था. 


किसान क्रेडिट कार्ड की पहल


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ही किसान क्रेडिट कार्ड की पहल की थी. किसानों के पास नकदी की कमी होती है.. इसकी वजह से किसान अक्सर अपनी खेती के लिए कर्ज के जंजाल में फंस जाते थे. किसानों के इस दर्द को महसूस करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी मंजूरी दी. आरबीआई और वित्त मंत्रालय की ओर से ज्यादा सकारात्मक रुख नहीं होने के बावजूद कई बैठकों के बाद वाजपेयी जी ने इसे किसानों के हित में बड़ा कदम मानते हुए मंजूरी दी थी. 1998 में शुरू हुई किसान क्रेडिट कार्ड की व्यवस्था ऐतिहासिक रही. किसान क्रेडिट कार्ड से किसानों को खाद, बीज के लिए आसानी से कर्ज मिलने लगा. 2004 में वाजपेयी का कार्यकाल खत्म होने से पहले 31 मार्च 2004 तक 4 करोड़ 14 लाख किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए.  


पहली बार राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना शुरू


किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम से बचाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक फैसला किया. उनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही पहली बार राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना शुरू की गई. इस योजना को 1999-2000 के रबी फसल से शुरू किया गया. किसानों के हित में ये एक बड़ा फैसला था. ये देश में पहला बीमा कार्यक्रम था जिसमें अधिकांश फसलों और कर्जदार और गैर कर्जदार किसानों दोनों को कवर किया गया. ये अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शिता ही थी, जिससे किसानों के मन से अपनी फसल के नुकसान का भय दूर किया जा सका.


किसानों को मिले कृषि उपज का उचित मूल्य


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खेती को लाभकारी बनाने के प्रति हमेशा चिंतनशील रहते थे. वे चाहते थे कि देश के किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके. कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाने को लेकर उनकी सरकार प्रतिबद्ध थी. अटल जी ने 1998-99 में गेहूं के समर्थन मूल्य को लेकर ऐतिहासिक फैसला लिया. उन्होंने गेहूं का समर्थन मूल्य 19.6 प्रतिशत बढ़ाकर इतिहास रचा. 1998-99 में गेहूं का समर्थन मूल्य 460 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 550 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया. इससे पहले समर्थन मूल्य में एक साथ इतनी बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी.


पहली बार जैविक खेती के लिए नीति 


भारत परंपरागत रूप से दुनिया का सबसे बड़ा जैविक कृषि करने वाला देश है. मौजूदा वक्त में भारत जैविक खेती में एक नई ताकत बन कर उभर रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दूरदर्शी नेता थे. वो चाहते थे कि आने वाले वक्त में किसान उपज को कीटनाशक के बिना ही उगाए. जिस जैविक खेती को आज देश के किसान अपना रहे हैं, उसके पीछे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सोच की महत्वपूर्ण भूमिका है. अटल जी ने जैविक खेती के लिए अलग से नीति बनाई. जैविक खेती के लिए अलग से नीति पहली बार वाजपेयी सरकार के जमाने में ही बनाई गई. भारत में जैविक खेती 2000 में सरकार के एजेंडे में आयी. राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम आरंभ करने के साथ 2002 में जैविक चिह्न का लोकार्पण हुआ. वाजपेयी की दूरदर्शिता का ही असर था जिसकी वजह से बाद में कृषि मंत्रालय ने 2004 में राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र स्थापित किया. इसने 45 अलग-अलग जैविक खेती की प्रणालियां विकसित की हैं. साथ ही राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में जैविक खेती की खास पढ़ाई शुरू की गई. पूर्वोत्‍तर को भारत के जैविक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है. वाजपेयी जी की उसी दूरदर्शिता का ही नतीजा है कि 2018 में सिक्किम दुनिया का पहला जैविक राज्य बना. अनुमान है कि 2025 तक देश में जैविक खेती का कारोबार 75 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा होगा.


चीनी मिलों को लाइसेंस प्रणाली से मुक्ति


चीनी मिलों को लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करना, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का एक साहसिक फैसला था. 1998 में लिए गए इस फैसले का गन्ना किसानों को काफी लाभ मिला. चीनी मिलों को लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करने के ऐतिहासिक फैसले का जल्द ही असर भी दिखने लगा. फैसले से पहले किसान का सिर्फ 55 फीसदी गन्ना ही चीनी मिलों पर जाता था, बाकी गन्ना कोल्हू और खांडसारी इकाइयों के पास जाता था. इससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था. चीनी उद्योग के डि लाइसेंसिग से चीनी मिलें बढ़ी और किसान का अब 90 फीसदी से ज्यादा गन्ना चीनी मिलों को जाता है.


डेयरी उद्योग को लाइसेंस प्रणाली से मुक्ति 


ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में डेयरी उद्योग का महत्वपूर्ण योगदान है. 'मिल्कमैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर वर्गीज कुरियन की अगुवाई में शुरु किया गया दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी डवलमेंट प्रोग्राम 'ऑपरेशन फ्लड' से डेयरी उद्योग में अच्छे नतीजे आ रहे थे.  लेकिन 1970-1990 के दो दशकों के बाद भी, कुल दूध उत्पादन का 10% से कम सहकारी समितियों के माध्यम से संसाधित ( Processed) किया जा रहा था. 1991 के आर्थिक सुधारों के दौरान.. डेयरी सेक्टर को लाइसेंस प्रणाली से तो मुक्त कर दिया गया, लेकिन बाद में वर्गीज कुरियन के दबाव में आंशिक लाइसेंसिग लागू कर दी गई. इससे डेयरी उद्योग के विकास पर असर पड़ने लगा. साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने डेयरी उद्योग को पूरी तरह से लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करने का फैसला लिया. इसी का नजीता था कि डेयरी उद्योग में निजी क्षेत्र का दखल बढ़ा और भारत बाद में दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनने में कामयाब रहा.


बीटी कॉटन को मंजूरी देने का ऐतिहासिक फैसला


कृषि के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक फैसला था, 'जीएम' यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों के रूप में 'बीटी कॉटन' के इस्तेमाल को मंजूरी देना. 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसकी मंजूरी दी. भारत में इस्तेमाल की जाने वाली अब तक की ये एकमात्र जेनेटिकली मॉडिफाइड फसल है. बीटी कपास की अनुमति देने के 2002 के ऐतिहासिक फैसले ने आज भारत को विश्व में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बना दिया है. इस फैसले से कपास की खेती करने वाले किसानों की आय में जबरदस्त इजाफा हुआ. किसानों ने कपास के  उत्पादन में 22 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की. वहीं  मुनाफे में करीब 70 फीसदी का इजाफा हुआ. आज 95% से अधिक कपास क्षेत्र बीटी कॉटन के अधीन हैं.


किसानों की मदद के लिए 'किसान चैनल'


किसानों की मदद करने और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हमेशा से ही आगे रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन है कि आज किसानों के लिए एक अलग चैनल है. जनवरी 2004 में तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किसानों के लिए एक खास चैनल लॉन्च किया. उनका मानना था कि किसानों को सारी जानकरी टेलीवीजन के माध्यम से भी मिले और किसान ज्यादा से ज्यादा सीखे. इसलिए उन्होंने किसान चैनल की भी शुरुआत की.


गांवों की बेहतरी के लिए प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी  के जिस काम को सबसे ज़्यादा अहम माना जा सकता है, वो है सड़कों के जरिए भारत के गांव-गांव को जोड़ने की योजना. उन्होंने बड़े-बड़े शहरों को जोड़ने के साथ गांव देहात तक सड़कों का जाल बिछाने को सरकार की प्राथमिकता बना ली. इस मकसद से ही उनके कार्यकाल में स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के साथ ही ग्रामीण अंचलों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की गई. उनके इस फैसले ने देश के आर्थिक विकास को रफ्तार दी.  


प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना


गांवों को जोड़ने वाली प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की पक्की सड़कों ने तो गांवों की तस्वीर बदल दी. अटल बिहारी वाजपेयी ग्रामीण क्षेत्रों में कनेक्टिीविटी के अभाव को सबसे बड़ी समस्या मानते थे. 70 फीसदी आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उनके एक क्रांतिकारी फैसले से ग्रामीण भारत की तकदीर बदल गई. उन्होंने गांवों को सड़क से जोड़ने का काम शुरू किया. उन्हीं के कार्यकाल के दौरान दिसंबर 2000 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरुआत हुई थी. फिलहाल प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से देश के 90 फीसदी से ज्यादा गांव सड़क से जुड़ चुके हैं. अटल जी की चलाई यह योजना आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. शहरों  से सीधे जुड़ाव हो जाने से गांव में रहने वाले लोगों की जिंदगी बदल गई. कृषि उपज को मंडियों तक ले जाने और रोजी-रोजगार के रास्ते आसान हुए. पक्की सड़क हो जाने से गांव तक लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतें आसानी से मुहैया हो रही हैं.


गांवों का संपूर्ण विकास 'प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना'


अटल बिहारी वाजपेयी गांवों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार को लेकर हमेशा प्रयासरत रहे. इसी मकसद से 2000-2001 में उनकी सरकार ने प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना की शुरुआत की. इसके जरिए गांव में रहने वाले लोगों को. शुरुआती शिक्षा, बेहतर सड़कें, पीने के लिए साफ पानी, बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं और पोषण मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया. बाद में इसमें बिजली मुहैया कराने का भी लक्ष्य जोड़ दिया गया. इस योजना का मुख्य मकसद ग्रामीण इलाकों में गरीबी दूर कर लोगों के जीवन को बेहतर बनाना था.


संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना


ग्रामीण भारत के गरीबों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने 25 सितंबर 2001 को संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना की शुरुआत की. इसके लिए 10,000 करोड़ सालाना का बजट भी निर्धारित किया गया था. योजना के लाभार्थियों को प्रतिदिन की मजदूरी के हिसाब 40 रुपए या 8 किलो गेहूं दिया जाता था.


गरीबों के लिए अंत्योदय अन्न योजना


अंत्योदय अन्न योजना देश के गरीबों के लिए वाजपेयी सरकार की ओर से चलाई गई सबसे बड़ी योजना थी. 25 दिसंबर 2000 को इस योजना की शुरुआत की गई. इस योजना के तहत गरीबों में भी ज्यादा गरीब लोगों को रियायती दर पर गेहूं और चावल उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की गई. इसके तहत 1 करोड़ परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और तीन रुपये प्रति किलो की दर पर चावल उपलब्ध करवाना था.  इसके बाद 2003 में इस योजना को बढ़ाया गया और 50 लाख परिवार और जोड़ दिए गए. 2004 में योजना एक बार फिर से बढ़ाई गई और फिर से 50 लाख परिवारों को जोड़ा गया. कुल मिलाकर इस योजना के तहत 2 करोड़ परिवारों को सस्ती कीमत पर राशन मुहैया करवाने की व्यवस्था की गई. इन परिवारों की पहचान के लिए वाजपेयी सरकार ने पूरे देश में व्यापक स्तर पर सर्वे करवाए थे और उनके लिए राशन कार्ड बनवाए थे. इतना सस्ता अनाज पहले कभी नहीं दिया गया. ये दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा योजना थी.


सर्व शिक्षा अभियान


छह से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने का अभियान अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही शुरू किया गया था. सर्व शिक्षा अभियान 2000-01 में शुरू किया गया. इसके चलते बीच में पढ़ाई छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या में कमी दर्ज की गई. साल  2000 में जहां 40 फ़ीसदी बच्चे ड्रॉप आउट्स होते थे, उनकी संख्या 2005 आते आते 10 फ़ीसदी के आसपास आ गई थी. इस अभियान से तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जी के लगाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अभियान को प्रमोट करने वाली थीम लाइन 'स्कूल चले हम' ख़ुद से लिखा था.


जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन


अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि जनजातीय इलाकों के विकास के बिना देश का संपूर्ण विकास संभव नहीं है. जनजातीय इलाकों में बुनियादी सुविधाएं पहुंचाना,  वाजपेयी सरकार की प्राथमिकता में शामिल था. अनुसूचित जनजातियों के विकास पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने के मकसद से अटल बिहारी वाजपेयी ने अलग से जनजातीय कार्य मंत्रालय बनाने का फैसला किया. अक्टूबर, 1999 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से अलग कर जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन किया गया. अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि विकास की पहुंच से कोई अछूता नहीं रहने पाए.  पहली बार अनुसूचित जनजाति की सूची की समीक्षा करके 100 से भी अधिक नए समूहों को इसमें जोड़ा गया.


गांवों को इंटरनेट से जोड़ने की पहल


किसानों की आर्थिक हालात को बेहतर बनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय किसान आयोग बनाने का भी फैसला किया पूर्व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री सोमपाल शास्त्री की अध्यक्षता में फरवरी, 2004 में राष्‍ट्रीय किसान आयोग गठित की गई. गांवों को इंटरनेट से जोड़ने की पहल सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने ही अपने कार्यकाल के दौरान की थी. इंटरनेट की बहाली के लिए उन्होंने आईटी नीतियों में बदलाव किया था. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में देश को नई दूरसंचार नीति दी गई थी. इस नीति के आने के बाद देश में दूरसंचार क्रांति का आगाज हुआ और गांव देहातों तक संचार क्रांति का लाभ पहुंचने लगा.


अटल बिहारी वाजपेयी एक युगदृष्टा थे. अटल बिहारी वाजपेयी ने न सिर्फ भारतीय राजनीति को नए आयाम दिए, बल्कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को शिखर पर ले जाने की नींव भी रखी. उन्होंने अर्थव्यवस्था को अभावों के दौर से निकालकर आत्मनिर्भर बनने की राह पर बढ़ाना शुरू किया. उन्होंने आर्थिक विकास के मानवीय पहलू पर जोर दिया. उनका पूरा जीवन त्याग और आदर्श का बिम्ब है. वे आदमी को केवल आदमी मानते थे, वह न बड़ा होता है और न छोटा, लोकतंत्र में सब बराबर हैं. दशकों तक भारतीय राजनीतिक पटल को अपनी ओजस्वी व्यक्तित्व से चमकाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत, अंदाज-ए-बयां और देश प्रेम का जज्बा कभी भी खत्म नहीं हो सकता. आने वाली पीढ़ियों को राजनीति के इस पुरोधा से कई सदियों तक प्रेरणा मिलती रहेगी.


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