India-China Tension: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सोमवार (10 अप्रैल) को अरुणाचल प्रदेश के किबिथू में वाइब्रेंट विलेजेस प्रोग्राम को लॉन्च करने वाले हैं. भारत सरकार की ओर से इस प्रोग्राम को लॉन्च करने का फैसला ऐसे समय में लिया गया है, जब इसी महीने 2 अप्रैल को चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 11 इलाकों का नाम बदलकर उन पर अपना दावा करने की कोशिश की थी. इसी के मद्देनजर अब मोदी सरकार ने चीन को उसी की भाषा में जवाब देने की तैयारी कर ली है.


मोदी सरकार ने चीन के साथ लगी सीमा पर बसे गांवों को जोड़ने के लिए वाइब्रेंट विलेजेस प्रोग्राम की शुरुआत की है. इसके तहत 2023 से 2026 के बीच इन सीमांत गांवों में विकास के लिए 4800 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. जिनमें से 2500 करोड़ रुपये सड़क परियोजनाओं पर खर्च होंगे. इस प्रोग्राम के जरिये सीमा पर गांवों में बेहतर सड़कों और इंफ्रास्ट्रक्चर से इन इलाकों से पलायन को रोका जाएगा. 


क्या है वाइब्रेंट विलेजेस प्रोग्राम?


हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीमांत गांवों से होने वाला पलायन सरकार के लिए चिंता का विषय है. वहीं, चीन के कब्जे वाले तिब्बत की उत्तराखंड में 345 किमी की सीमा साझा होती है, यह हिस्सा दिल्ली के सबसे करीब है. वाइब्रेंट विलेजेस प्रोग्राम केवल सीमांत इलाकों को आपस में नहीं जोड़ेगा, बल्कि इसके जरिये चीन से सीमा साझा करने वाले अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख को आसानी से जोड़ा जाएगा.


मोदी सरकार के इस फैसले से भारत-तिब्बत सीमा पर चीनी सेना के अतिक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही आईटीबीपी की सात अतिरिक्त बटालियनों को 47 नए आइटपोस्ट और 12 स्टेजिंग कैंप्स में स्थापित किया जाएगा. इन सीमांत इलाकों की पीएलए से रक्षा और सुरक्षा के लिए मोदी सरकार 1800 करोड़ रुपये खर्च करेगी. 


लद्दाख से सिक्किम तक चीन पर रहेगी नजर


आईटीबीपी की ये बटालियनें एलएसी पर भारतीय सेना के साथ काम करेंगी. पूर्वी लद्दाख के काराकोरम दर्रे से उत्तराखंड के बाराहोटी, सिक्किम के नाथूला से लेकर अरुणाचल प्रदेश के आखिरी सीमांत गांव जेमीथंग तक सुरक्षा बलों की आसान पहुंच हो जाएगी. मोदी सरकार का ये फैसला बीते दो दशकों में सीमांत इलाकों को लेकर बनी भारत की कूटनीतिक राय से बिल्कुल अलग नजर आता है. जहां सीमा पर सड़कों के निर्माण को कोई तवज्जो नहीं दी जाती थी और चीनी सेना पीएलए की भारत के अंदरूनी हिस्सों में पहुंच बन गई.


मोदी सरकार अब 1962 के भारत-चीन युद्ध के दंश से सबक लेते हुए बीजिंग को हर जगह मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी में जुटी है. गृह मंत्री अमित शाह का ये दौरा इसी तैयारी को लेकर एक कदम है. अमित शाह इस दौरान वालोंग वॉर मेमोरियल पहुंच कर चीन को संदेश देंगे कि नया भारत 1962 को भूला नहीं है. 


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