Muslim Personal Law Board Meeting: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की बैठक में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का कड़ा विरोध किया गया. इस बैठक के बाद जारी किए प्रेसनोट में कहा गया कि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की ये बैठक समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के हर प्रयास का कड़ा विरोध करती है और इसे देश और मानवता के लिए बेहद खतरनाक, घातक और हानिकारक मानती है. हमें खेद है कि समलैंगिक विवाह और पश्चिमी देशों में एलजीबीटी का अनैतिक और अश्लील आंदोलन अब हमारे देश को प्रभावित कर रहा है.


इस बैठक में कहा गया कि इसने उस पश्चिमी देशों की परिवार व्यवस्था के लिए एक गंभीर संकट पैदा कर दिया है. हमारा देश एक धार्मिक देश है और हर धर्म में इन अप्राकृतिक और अनैतिक संबंध का का विरोध किया है. इस मुद्दे पर इस्लाम का दृष्टिकोण बहुत साफ और स्पष्ट है. इस्लाम इसे अप्राकृतिक, अनैतिक और निषिद्ध मानता है और साथ ही इसे प्रजनन की प्राकृतिक प्रक्रिया के विपरीत और परिवारिक व्यवस्था को प्यस्त करने वाला समझता है. बोर्ड देश के सभी धर्म गुरुओं, समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता बुद्धिजीवियों और राजनीतिक नेताओं से आह्वान करता है कि इस रझान का कड़ा विरोध करें और इसे कानूनी औचित्य हासिल न करने दें. 


बैठक में ये प्रस्ताव भी किए गए पारित


इसमें कहा गया कि बैठक को लगता है कि देश में नफरत का जहर फैलाया जा रहा है और इसे राजनीतिक संघर्ष के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो इस देश के लिए बहुत हानिकारक है. स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों, संविधान के संकलित कर्ताओं और इस देश के प्रथम निर्माताओं ने देश के लिए जो रास्ता चुना था, यह उसके बिल्कुल विपरीत है. विभिन्न धर्मों, जनजातियों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों ने सदियों से देश की सेवा की है और इसके विकास में समान भूमिका निभाई है.


इसमें कहा गया कि अगर ये सद्भाव और भाईचारा खो गया, तो देश की एकता चूर-चूर हो जाएगी. इसलिए ये सम्मेलन सरकार, देश से प्रेम करने वाले नागरिकों, धार्मिक नेताओं, बुद्धिजीवियों, न्यायविदों, राजनीतिक नेताओं और पत्रकारों से अपील करता है कि वे नफरत की इस आग को पूरी ताकत से बुझाने की कोशिश करें, नहीं तो ये आग एक ज्वालामुखी बन जाएगी और देश की सभ्यता, इसकी लोकप्रियता, इसके विकास और इसके नैतिक औचित्य सब कुछ जलकर राख हो जाएगा. 


धर्म स्थल से संबंधित फैसलों ने चिंता की पैदा


एक प्रस्ताव में कहा गया कि धर्म स्थल सम्बन्धी 1991 का कानून संसद की ओर से ही स्वीकृत कानून है, इसे बनाए रखना सरकार का कर्तव्य है और यह देशहित में भी है. नहीं तो देश भर में विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच अंतहीन लड़ाई शुरू हो जाएगी, जो देश के लिए एक बड़ा दुर्भाग्य होगा. मौजूदा समय में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की ईदगाह को लेकर निचली अदालतों और हाईकोर्ट के बार-बार आने वाले फैसलों ने मुसलमानों में चिंता पैदा कर दी है. 


देश में कानूनहीनता का माहौल बन रहा है


इस बैठक में पास किए गए एक अन्य प्रस्ताव में कहा गया कि कानून मानव समाज को सभ्य बनाता है, अत्याचारियों को न्याय के कठघरे में खड़ा करता है, उत्पीड़ितों को न्याय दिलाता है और उसके लिए न्याय-प्राप्ति की आशा होता है. कानूनहीनता समाज को अराजक बना देती है, इसलिए सरकार हो या जनता, बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक, सत्तापक्ष हो या विपक्ष, पूंजीपति हों या गरीब मजदूर, सबके लिए जरूरी है कि वे कानून को अपने हाथ में न लें, लेकिन दुर्भाग्य से इस समय देश में कानूनहीनता का माहौल बन रहा है. 


मॉब लिंचिंग को लेकर क्या कहा?


इसमे कहा गया कि मॉब लिंचिंग हो रही है, दोष साबित होने से पहले अभियुक्तों को सजा देने का चलन बढ़ रहा है. दसियों साल से बने घर, जो सरकार और प्रशासन की आंखों के सामने बने और उनसे कानूनी देय-राशि भी प्राप्त की जाती रही, उन्हें पल भर में बुलडोजर के माध्यम से ध्वस्त कर दिया जाता है. जो लोग विरोध करने और शांतिपूर्वक अपना पक्ष रखने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करते हैं उन्हें कठोर धाराओं के तहत गिरफ्तार किया जाता है और लम्बे समय तक बिना अपराध सिद्ध किए जेल में बंद रखा जाता है, ये सब कानून हीनता के निकृष्टतम रूप हैं. कानूनहीनता जनता की ओर से हो, या सरकार की ओर से हर हाल में निंदनीय है, इसे रोकना सरकार और देश के सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है. 


अपने धर्म का पालन करने की है स्वतंत्रता


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में कहा गया कि देश के संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता दी है, जो उसका मौलिक अधिकार है, जिसमें पर्सनल लॉ भी शामिल है. ये सम्मेलन सरकार से अनुरोध करता है कि वह सभी नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करे, पर्सनल लॉ के तहत विभिन्न समूहों की जो पहचान है, उन्हें समाप्त करके समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात असंवैधानिक होगी, ये इतने विभिन्न और विविध धर्मों और संस्कृतियों वाले देश के लिए न तो उपयुक्त है और न ही उपयोगी है.


इसमें कहा गया कि अगर संसद में बहुमत का लाभ उठाकर इसे बलपूर्वक लागू करने का प्रयास किया जाता है, तो यह देश की एकता को प्रभावित करेगा, देश के विकास में बाधा डालेगा और इससे कोई लाभ नहीं होगा. बोर्ड का ये सम्मेलन जो मुसलमानों के सभी विचारधाराओं के प्रतिनिधियों से मिलकर बना है, सरकार से अपील करता है कि वह इस मंशा से बाज आ जाए और देश की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान दे. 


मदरसे शिक्षण संस्थाएं हैं


मदरसों को लेकर कहा गया कि मदरसे ऐसी शिक्षण संस्थाएं हैं, जहां धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है और छात्रों को बताया जाता है कि वे ऐसे लोग हैं जो इन्सानों से प्यार करते हैं और उनकी सेवा करते हैं. ये संस्थाएं आजादी के बाद से स्थापित हैं. ये बिल्कुल पाठशालाओं की तरह है जो संस्कृत सीखने के लिए स्थापित किए गए थे और जो अभी भी मौजूद हैं, लेकिन दुख की बात है कि देश के पूर्वी हिस्सी में मदरसों को बंद करने की कोशिश की जा रही है. बोर्ड इस आचरण की कड़ी निंदा करता है. 


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