Afghanistan New Government: अफगानिस्तान में घोषित नई तालिबान सरकार पर 'मेड इन पाकिस्तान' की छाप साफ नजर आती है. सरकार के अधिकतर ओहदेदार वही नेता हैं जो लंबे वक्त तक पाकिस्तान की पनाह में रहे. वहीं, गृहमंत्री और विदेश मंत्री जैसे पदों पर बैठाए गए सिराजुद्दीन हक्कानी और अमीर खान मुत्तक़ी जैसे नेता पाक से खासतौर पर करीबी रखने वाले माने जाते हैं. 


हालांकि नई तालिबानी सरकार पर सबसे मजबूत पाकिस्तानी छाप दिखाने वाला चेहरा है सिराजुद्दीन हक्कानी. तालिबानी समूह हक्कानी नेटवर्क को पूरी तरह पाकिस्तानी सरपरस्ती में पला बढ़ा संगठन माना जाता है. जानकारों के मुताबिक, 2015 में पाकिस्तानी फौज और आईएसआई की ताकत पर ही हक्कानी को पश्तूनों की ताकतवर संस्था रहबर शूरा में उपनेता बनाया गया था. उस वक्त तलीबान के अंदरूनी गुटों में इसका विरोध भी हुआ था. 


बहरहाल, अब हाल के तालिबानी नेतृत्व के बयानों को देखें तो वो यह जताने पर खास जोर दे रहे हैं कि हक्कानी नेटवर्क कुछ नहीं है. अब केवल इस्लामिक अमीरात है. यानि साफ तौर पर पाकिस्तान के बढ़ाए हक़्क़ानी अब तालिबान के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा हैं. 


विदेश मंत्री अमीर मुत्तक़ी का नाम भी पाकिस्तान के चहेते तालिबान नेता के तौर पर देखा जाता है. अमेरिकी सीमा की कार्रवाई के बाद आफ़ग़ानिस्तान से 2001 में भागने के बाद मुत्तक़ी पाकिस्तान के पेशावर में ही रहा था. इसके अलावा सरकार के लिए घोषित 33 नामों में से 15 नाम कंधार के इलाके से आने वाले उन नेताओं के हैं जिनमें से अधिकतर ने लंबा वक्त पाकिस्तान की पनाह में बिताया.


और भी हैं बड़े चेहरे


नई तालिबानी सरकार पर मज़बूत पाकिस्तानी छाप दिखाने वाला ताज मीर जवाद का भी है जिसे खुफिया विभाग का उप प्रमुख बनाया गया है. बताया जाता है कि जवाद एक खूंखार काबुल अटैक नेटवर्क का भी कर्ताधर्ता है. जानकारों के अनुसार एक हमले में घायल हुए जवाद का इलाज पाकिस्तानी आईएसआई ने ही एक सुरक्षित विदेशी शहर में करवाया था. 


यह भी साफ है कि तालिबान के नामों का ऐलान पाकिस्तानी आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद के काबुल दौरे के बाद ही किया गया. पाक सूत्रधारों ने यह भी सुनिश्चित  किया तालिबान क़ई नई सरकार में स्वतंत्र और अधिक व्यापक नज़रिया रखने वाले शेर मोहम्मद अब्बास स्तनिकजयी को उप विदेश मंत्री बनाया जाए. यानि वही पद मिले जिसपर वो करीब 25 साल पहले तालिबान की पिछली सरकार में भी तैनात था. वहीं स्तनिकज़ई के अलावा भारत से बात करने वाले नेताओं में शामिल खैरख्वाह को सूचना विभाग जैसा अपेक्षाकृत कमज़ोर विभाग दिया जाए.


सही तौर पर पाकिस्तान परस्ती की पहचान रखने वाले तालिबानी नेताओं की मौजूदगी में भारत के लिए अफगानिस्तान की नई सरकार के साथ संबंध निभाना बेहद कठिन होगा. इतना ही नहीं अब तक चली आ रही खुफिया सूचनाओं की साझेदारी रक्षा सहयोग और रणनीतिक निवेश की परियोजनाओं का आगे बढ़ना मुमकिन नजर नहीं आता.


अफगानिस्तान की सरकारी व्यवस्था में बेहद महत्वपूर्ण हैसियत रखने वाले गृह मंत्रालय की कुर्सी पर सिराजुद्दीन हक्कानी की मौजूदगी भारत की फिक्र बढ़ाने को काफी है. क्योंकि अफगानिस्तान में भारत के साथ हमदर्दी और दोस्ती की वकालत करने वालों के लिए हक्कानी की परीक्षा पास करना और काम करना बहुत मुश्किल होगा.


हालांकि नई सरकार के ऐलान के बाद तालिबान के सुप्रीम लीडर हैबतुल्लाह अखुनज़दा की तरफ से 4 पन्नों का घोषणा पत्र जारी किया गया. इसमें ऐलान किया गया कि अफगानिस्तान अपनी सभी अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही और जिम्मेदारियों का पालन करेगा. इसके साथ ही तालिबान के अमीर उल मोमिन ने सभी देशों के साथ बेहतर रिश्ते और किसी के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करने जैसे कई एलान भी किए हैं. 


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