प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में आयोजित बीजेपी की बैठक में अल्पसंख्यकों में पिछड़ी जातियों को मुख्यधारा में लाने की बात कही तो बीजेपी ने पसमांदाओं (मुसलमानों की पिछड़ी जातियां) को लेकर रणनीति बनानी शुरू कर दी है. इसको लेकर बीजेपी के तमाम संगठनों के जुड़े नेता पसमांदा मुसलमानों के बीच संपर्क बढ़ा रहे हैं.लेकिन पार्टी रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर अपनी पुराने रुख पर ही कायम है. 


इसी बीच 17 अगस्त को केंद्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह के एक बयान के बाद गृहमंत्रालय को सफाई देनी पड़ गई. हरदीप सिंह ने कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों को बाहरी दिल्ली में स्थित बक्करवाला के अपार्टमेंट में भेजा जाएगा और उन्हें मूलभूत सुविधाएं तथा पुलिस सुरक्षा भी मुहैया की जाएगी. 


पुरी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘भारत ने हमेशा उन लोगों का स्वागत किया है जिन्होंने देश में शरण मांगी.  एक ऐतिहासिक फैसले में सभी रोहिंग्या शरणार्थियों को दिल्ली के बक्करवाला इलाके में स्थित फ्लैट में स्थानांतरित किया जाएगा. उन्हें मूलभूत सुविधाएं यूएनएचसीआर (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की ओर से जारी) परिचय पत्र और दिल्ली पुलिस की चौबीसों घंटे सुरक्षा मुहैया की जाएगी.’’मंत्री ने उन लोगों की भी आलोचना की जिन्होंने देश की शरणार्थी नीति पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग इस कदम से निराश होंगे. 


हरदीप सिंह के बयान का विरोध
लेकिन उनके इस बयान का विरोध शुरू हो गया. आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने एक संवाददाता सम्मेलन में पुरी के ट्वीट पर प्रतिक्रिया में कहा, ‘‘मंत्री की घोषणा के साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार आज बेनकाब हो गई है...यह राष्ट्रीय सुरक्षा और दिल्लीवासियों के लिए भी एक बड़ा खतरा है.’’


उन्होंने कहा, ‘‘हम देशवासी और दिल्लीवासी, कम से कम उन्हें यहां किसी भी कीमत पर बसने नहीं देंगे. केंद्र सरकार चाहे कुछ भी करे, हम सरकार को उन्हें फ्लैट आवंटित नहीं करने देंगे.’’


भारद्वाज ने कहा कि प्रधानमंत्री चाहें तो उन्हें भाजपा शासित किसी भी राज्य में बसाने पर विचार कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ईडब्ल्यूएस फ्लैट, बंगला या जो कुछ भी आप चाहते हैं. 




गृहमंत्रालय की सफाई


इसके बाद गृह मंत्रालय की ओर से सफाई आई कि अवैध विदेशी रोहिंग्याओं के संबंध में मीडिया के कुछ वर्गों में आये समाचार के संबंध में, यह स्पष्ट किया जाता है कि गृह मंत्रालय ने दिल्ली के बक्करवाला में रोहिंग्या अवैध प्रवासियों को ईडब्ल्यूएस फ्लैट प्रदान करने का कोई निर्देश नहीं दिया है. गृह मंत्रालय की ओर से भी यह भी  दिल्ली सरकार ने ‘‘रोहिंग्या मुसलमानों को एक नये स्थान पर स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया था.’’


दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर यह पता लगाने के लिए 'निष्पक्ष जांच' कराने का आग्रह किया कि किसके निर्देश पर रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों को यहां फ्लैट में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया था. 




 


कांग्रेस भी कूदी नए विवाद में
रोहिंग्या को लेकर जारी इस नए विवाद में कांग्रेस भी कूद गई. पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार में असमंजस की स्थिति उस राष्ट्र के लिए कलंक है जिसने संयुक्त राष्ट्र संघ की शरणार्थी एजेंसी की कार्यकारी समिति में सेवाएं दी हैं.’’ थरूर ने कहा, ‘‘हमारी मानव सेवा की गौरवान्वित करने वाली परंपरा रही है जिसमें शरणार्थियों का स्वागत किया जाता है और उन्हें स्वीकारा जाता है. भाजपा, कृपया भारतीय सभ्यता के साथ विश्वासघात मत करो.’’


क्या है रोहिंग्या मुसलमानों का इतिहास
पूरी दुनिया में रोहिंग्या मुसलमानों के लेकर चर्चा होती रहती है. लेकिन अगर इनके इतिहास की बात करें तो शुरुआत म्यांमार (बर्मा) से करनी होगी. साल 1862 तक म्यांमार में ब्रिटिश हुकूमत शुरू हो चुकी थी और वहां पर चावल के दाम आसमान छू रहे थे. इस समस्या से निपटने के लिए अंग्रेज सरकार ने चावल की खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत के पूर्वी हिस्से यानी अब के बांग्लादेश से प्रवासियों को म्यांमर में बसाना शुरू कर दिया. 


अंग्रेज सरकार ने वहां खाली पड़ी जमीनों पर इन लोगों को बसा दिया. इनमें ज्यादातर मुसलमान थे.  करीब 150 सालों  से ज्यादातर रोहिंग्या म्यामांर के राखइन राज्य में बसे हुए थे. लेकिन हाल ही के कुछ वर्षों में म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्याओं को वहां का मूल निवासी मानने से इनकार कर दिया है और उनके साथ अवैध नागरिक के तौर पर व्यवहार शुरू कर दिया है. सरकार के साथ ही म्यांमार का समाज भी रोहिंग्याओं को अपनाने से इनकार कर दिया है.


म्यांमार के लोगों का मानना है कि रोहिंग्या एक तरह से अंग्रेजी हुकूमत के प्रतिनिधि हैं और ये भी उनके प्रति नफरत की एक मुख्य वजह यह भी है. म्यांमार में रोहिंग्याओं के साथ भेदभाव सिर्फ सामाजिक ही नहीं है बल्कि सरकार की ओर से दी जाने वाली मूलभूत सुविधाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य में भी वंचित कर दिया गया है.




टकराव की नौबत
म्यांमार के रखाइन राज्य में बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. यहां पर बौद्ध धर्म के मानने वालों और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है. साल 2012 में एक महिला का 3 रोहिंग्या मुसलमानों ने रेप के बाद हत्या कर दी थी. इसके बाद वहां हुए दोनों समुदायों के बीच संघर्ष में 10 रोहिंग्याओं की मौत हो गई. 


साल 2015 में म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक ऑपरेशन की शुरुआत कर दी. इसके बाद लाखों रोहिंग्याओं ने कई देशों से शरण मांगी लेकिन किसी भी देश ने उनकी गुहार नहीं सुनी. 


साल 2016 में रोहिंग्या मुसलमानों ने भी हथियार उठा लिए और रखाइन रोहिंग्या साल्वेशन ऑर्मी बनाकर सेना और पुलिस बलों पर हमले शुरू कर दिए.


साल 2017 में 150 रोहिंग्याओं ने मिलकर हमला किया और जिसमें कई लोगों की जान चली गई. इस हमले के बाद रखाइन राज्य में सेना ने व्यापक अभियान शुरू कर दिया.


अब रोहिंग्याओं ने वहां से भागकर दक्षिण एशियाई देशों में शरण लेना शुरू कर दिया. जिसमें बांग्लादेश उनके लिए पसंदीदा जगह बन गई. हालांकि बांग्लादेश के अलावा भारत और आसपास के देशो में भी रोहिंग्या मुसलमानों ने शरण ले रखी है और जगहों पर उनको रिफ्यूजी कैंपों में रखा गया है. जहां महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की हालत सबसे खराब है.


बांग्लादेश ने भी किया बसाने से इनकार
रोहिंग्या मुसलमान इस समय सबसे बड़ी संख्या में बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं. हालांकि वहां भी उनको अपनाने से इनकार कर दिया गया है. हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने साफ है कि म्यांमार को अपने नागरिकों (रोहिंग्या) को वापस लेना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि म्यांमार ने कभी मना नहीं किया है कि रोहिंग्या उनके नागरिक नही हैं. लेकिन उनकी वापसी पर वहां से अभी तक कोई बयान नहीं आया है.' पीएम शेख हसीना ने ये बातें संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति की एक सदस्य से कही हैं जो कि बांग्लादेश के दौरे पर थीं. 




 


रोहिंग्याओं पर क्या है भारत का रुख
नागरिक संशोधन बिल (CAA) पर चर्चा करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि भारत कभी रोहिंग्याओं को स्वीकार नहीं करेगा. भारत सरकार ने साफ माना है कि रोहिंग्या मुसलमान देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं. 


भारत में कहां-कहां हैं रोहिंग्या
बीते साल सरकार की ओर से संसद में जानकारी दी गई थी कि अवैध रोहिंग्या प्रवासी 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, कर्नाटक और केरल में रह रहे हैं. 


'अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं रोहिंग्या'
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि सरकार को रिपोर्ट मिली है कि रोहिंग्या मुसलमान देश में अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं. उन्होंने कहा कि वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करने वाले सभी विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी माना जाता है. मंत्री ने कहा कि म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों सहित अवैध प्रवासियों का पता लगाना और राष्ट्रीयता के सत्यापन की उचित प्रक्रिया के बाद उन्हें उनके देश वापस भेजना एक सतत प्रक्रिया है. 




क्या कहते हैं रोहिंग्या मुसलमान
दिल्ली में रोहिंग्याओं को लेकर हुए नए विवाद के बीच पीटीआई से बातचीत में  35 वर्षीय रोहिंग्या शरणार्थी मरियम ने दावा किया कि कालिंदी कुंज में कुछ प्रवासियों को 'बुधवार को बताया गया कि उन्हें निरुद्ध केंद्रों (डिटेंशन सेंटर) में ले जाया जाएगा.'


उसने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हम नहीं जानते कि भारत सरकार ने अपना निर्णय क्यों बदला. मैं केवल इस बात से खुश थी कि मैं और मेरी बेटी एक दशक के बाद पहली बार पक्की इमारत में रहेंगे.’’


2012 में भारत आये और यूएनएचसीआर पहचानपत्र रखने वाले कबीर अहमद ने कहा कि अगर उनके शरणार्थी शिविर निरुद्ध केंद्र में बदल जाते हैं तो उन्हें ‘‘गलत व्यवहार का डर’’रहेगा.


42 वर्षीय रोहिंग्या प्रवासी ने पीटीआई-भाषा से कहा,‘‘हमने सुना है कि भारत के कुछ राज्यों में हिरासत में लिए गए अन्य रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ किस तरह का व्यवहार किया गया. मुझे डर है कि हम उसी से गुजरेंगे. हमने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है और न ही किसी भारतीय को नुकसान पहुंचाने का हमारा इरादा है.’’


(नोट : खबर में इस्तेमाल की गईं सभी तस्वीरें बांग्लादेश में बसे रोहिंग्या मुसलमानों की हैं)