प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकारें लगातार इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करने पर ज़ोर दे रही हैं लेकिन हैरत तो तब होती है जब खुद सरकार ही अपनी दी हुई हिदायतों को ना सिर्फ भूल जाती है. बल्कि सांसद निधि से दिल्ली को साफ करने के लिए मिले पैसे और साधनों को पूरी तरह बर्बाद कर देती है.


सैकड़ों कूड़ा उठाने वाले ई-रिक्शा पड़े हैं बेकार


ईस्ट दिल्ली मुनिसिपल कॉर्पोरेशन (ईडीएमसी ) ऑफिस में खड़े सैकड़ों कूड़ा उठाने वाले ई-रिक्शा / ई-कार्ट धूल की मोटी चादर में लिपटे हुए हैं, जिनकी पैकिंग की पन्नी भी अब तक नहीं उतरी है. इन ई-कार्ट पर लिखा है "यह ई कार्ट श्री मनोज तिवारी के सांसद निधि से खरीदा गया ' ईडीएमसी, नंद नगरी का लगभग आधा ऑफिस इन ई कार्ट के कारण घिरा हुआ है. ऑफिस में दूर दूर तक बिना इस्तेमाल हुए ये बिजली वाहन खड़े हैं. जिन वाहनों को कूड़ा उठाने के लिए खरीदा गया था, वो खुद मानो कूड़े की तरह बेकार पड़े हैं. एबीपी न्यूज से बातचीत करते हुए ईडीएमसी के ऑफिस में काम करने वाले एक कर्मचारी जो कि पानी की टंकी के ड्राइवर हैं बताते हैं कि ये सभी रिक्शा करीब डेढ़ साल से ऑफिस में ही खड़े हैं.


आम आदमी पार्टी ने भाजपा और एमसीडी को घेरा 


आम आदमी पार्टी भी इस मामले पर भाजपा और एमसीडी को घेरती हुई नजर आईं. आप एमसीडी पर ई-रिक्शा की खरीद को लेकर 4 करोड़ का भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है. आम आदमी पार्टी के नेता दुर्गेश पाठक एबीपी न्यूज से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहते हैं कि "ईस्ट एमसीडी दिल्ली का सबसे गंदा इलाका है. ये दिखाता है कि एमसीडी का सिस्टम कितना खराब है. एमसीडी में कुछ भी ठीक से नहीं चल रहा है. खरीदारी 200 की, की गई थी लेकिन एक का भी इस्तेमाल पूर्वी दिल्ली में नहीं होता है. हमने यह बात वार्ड कि मीटिंग में भी रखी लेकिन कोई नहीं सुनता. आज दिल्ली सबसे ज़्यादा गंदी है, जिसे साफ करने की जिम्मेदारी एमसीडी की है. हो सकता है इनको खरीदार ना मिला हो, हो सकता है टेंडर देने में फायदा ना मिल रहा हो."


ईस्ट एमसीडी के मेयर ने दिया सवाल का जवाब 


चाबी लगे सभी ई-कार्ट खड़े खड़े पुराने हो रहे हैं. इनके टायर पंचर हो गए हैं और लंबे समय से इस्तेमाल ना होने के कारण बैटरी भी खराब हो गई है आखिर इन्हें वापस इस्तेमाल से कैसे और कब लाया जाएगा?, सवाल के जवाब में ईस्ट एमसीडी के मेयर निर्मल जैन बताते हैं कि "इन्हे वापस इस्तेमाल में लाने के लिए सरकार को मोटा पैसा नहीं लगाना पड़ेगा क्योंकि यह दो साल की अंडर वारांटी में हैं" लेकिन सवाल उठता है कि आखिर जरूरत नहीं थी तो इतने ई कार्ट मंगवाए क्यों गए? जरूरत नहीं थी तो सांसद मनोज तिवारी से मदद मांगी क्यों गई? क्या इन्हें वक़्त रहते अगर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था तो क्या वापस भी नहीं किया जा सकता था?


 लॉकडाउन में होने की वजह से नहीं बांटे गए रिक्शे


ईस्ट दिल्ली के मेयर से जब हमने इस बारे में पूछा तो मेयर कहते हैं कि "पूर्वी दिल्ली के दोनों एमपी महेश गिरी और मनोज तिवारी के फंड से शाहदरा साउथ जोन में 90 ई कार्ट आए थे जिन्हें हमने वार्ड में बांट दिए लेकिन शाहदरा नॉर्थ जोन की डिलीवरी जो कि मनोज तिवारी के फंड से लिए गए ई-कार्ट थे वो हमें लॉकडाउन के समय मिले. लॉकडाउन में होने की वजह से रिक्शा अभी बांटे नहीं गए हैं. अधिकारियों ने बांटने का जिम्मा लिया है. 100 के करीब ई-कार्ट खड़े हैं वहां. मुझे अधिकारियों ने इतनी ही जानकारी दी है. आम आदमी पार्टी वाले तो नुक्स ही निकालेंगे उन्हें तो किसी भी चीज में आरोप लगाना है और मै इस विषय में जांच करवा लूंगा कि कितने समय से ये कार्ट वहां खड़े हैं."


मनोज तिवारी ने भी दी अपनी प्रतिक्रिया 


इस मामले पर सांसद मनोज तिवारी कहते हैं कि " मुझे बताया गया है कि ई कार्ट अब तक खरीदे नहीं गए हैं इसलिए मैंने अपने फंड वापसी की चिट्ठी लिख दी है। मेरी जानकारी में नहीं है कि सैकड़ों ई कार्ट कबाड़ में खड़े खराब हो रहे हैं. मै बेहद दुखी हूं कि मेरे फंड का सदुपयोग नहीं हुआ और अब मै वो फंड लेकर दूसरी जगह खर्च करना चाहता हूं."


 मेयर निर्मल जैन कर रहे ये दावा 


एबीपी न्यूज की रिपोर्ट के बाद सांसद और मेयर के साथ प्रशासन के हरकत में आने के बाद अब मेयर निर्मल जैन दावा कर रहे हैं कि " डिपार्टमेंट ने अब इन सब ई-कार्ट को बांट दिया है. वार्ड के अनुसार और आवश्यकता के अनुसार बांट दिया गया है. किसी वक्त ये खड़े ज़रूर थे, मै इस बात को मानता हूं. मनोज तिवारी जी की सांसद निधि से हमे 100 ई-कार्ट उपलब्ध कराए थे, दो करोड़ रुपए की राशि दी गई थी और उन्हें बांटने में देरी क्यों हुई, मै इसकी जांच करूंगा!"


उठ रहे हैं ये सवाल 


प्रदूषण कम करने की नीयत से सांसद निधि के पैसे से खरीदे गए सैकड़ों ई-कार्ट खराब हालत में पड़े हैं. तर्क दिया जा रहा है कि लॉकडाउन की वजह से ई-कार्ट को नहीं बांटा गया लेकिन याद दिलाएं तो लॉकडाउन में भी कोरोना वॉरियर्स यानि कि सफाई कर्मचारी हर रोज़ काम कर रहे थे. तो सवाल ये उठता है कि अगर लॉकडाउन में भी ई-कर्ट्स मिले तो उन्हें अनलॉक-5 की प्रक्रिया शुरू होने के इतने महीनों बाद तक क्यों नहीं बांटा गया?