आपके पास एक से बढ़कर एक एक्टर हैं काजोल जैसी सुपरस्टार है, अच्छा प्लेटफॉर्म है, अच्छी प्रोडक्शन वैल्यू है लेकिन इन सबके साथ कैसे एक खराब शो बनाया जा सकता है. ये आप द ट्रायल के दूसरे सीजन से सीख सकते हैं. इस शो में कहानी को छोड़कर सब कुछ है, काश कहानी भी होती तो 6 एपिसोड तक इसे झेलना नहीं पड़ता.

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कहानी- काजोल यानी नोयोनिका का पति सेक्सुअल हैरेसमेंट के इल्ज़ाम से बरी होकर जेल से वापस आ गया है. दोनों के रिश्ते खराब हैं, नोयोनिका की प्रोफेशनल जिंदगी में भी दिक्कत है. वो कमाल की वकील हैं, उसके पास केस आते हैं ,फिर कैसे ये केस और जिंदगी आगे बढ़ती है, यही दिखाने की कोशिश जियो हॉटस्टार की इस सीरीज में की गई है.

कैसी है सीरीज - ये सीरीज क्यों बनाई गई, क्या दिखाना चाहती है, आप पूरी सीरीज में ये सोचते हैं, कोर्ट के ऐसे कमजोर सीन आपने पुरानी से पुरानी फिल्मों में नहीं देखे होंगे. कोई केस जानदार नहीं लगता, बाकी की चीजें भी बस चलती हैं. आप कुछ महसूस नहीं करते, न किसी का दुख, न किसी की खुशी, न कोई इमोशन, सिवाय एक के और वो है बोरियत. ये सीरीज कुछ नहीं दिखा पाती, न कोर्ट के मामले और न इनकी निजी जिंदगी.

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एक्टिंग- काजोल ने कमाल का काम किया है, वो अच्छी लगी हैं. उन्होंने कोशिश की है इस कमजोर कहानी में जान डालने कि लेकिन एक्टर खंडहर को ताज महल नहीं बना सकता. जीशु सेन गुप्ता अच्छा काम कर गए हैं. अली खान तेज तर्रार वकील ही लगते हैं. शीबा चड्ढा यहां कुछ खास कमाल नहीं कर पातीं. कुब्रा सैत ने ये सीरीज क्यों की, ये बड़ा सवाल है.

राइटिंग और डायरेक्शन-हुसैन दलाल, अब्बास दलाल और सिद्धार्थ कुमार ने सीरीज लिखी है, उमेश बिष्ट ने डायरेक्ट की है. राइटिंग काफी खराब है, इतने कमजोर केस कैसे लिखे गए, समझ से परे है, और राइटिंग इस सीरीज की सबसे बड़ी विलेन है. डायरेक्शन ठीक है.कुल मिलाकर ये सीरीज वक्त की बर्बादी ही है.

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