Srikanth Review: श्रीकांत का ट्रेलर जब आया था तो हर तरफ तारीफ हुई थी, हर किसी को इसका ट्रेलर कमाल का लगा था, लग रहा था कि फिल्म कमाल की होगी और ऐसा ही हुआ, 12th फेल के बाद एक और बायोपिक आई है जो फील गुड है,जिसे देखकर आपमें जोश आ जाएगा,जो आपको प्रेरणा देगी, फिल्म में क्या अच्छा है, क्या खराब, पूरा रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि आप श्रीकांत से मिलने थिएटर जाएंगे या नहीं.


कहानी
ये एक असली कहानी है, आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में रहने वाले श्रीकांत बोला की जो देख नहीं सकता, लेकिन वो बड़े बड़े सपने देखता है और उसका एक बड़ा सपना है देश का पहला नेत्रहीन राष्ट्रपति बनना, स्कूल में श्रीकांत को मिलती हैं उसकी टीचर ज्योतिका जो उसके लिए यशोदा मां जैसी हैं, वो इस जिंदगी में आगे बढ़ना और मुसीबतों से लड़ना सिखाती हैं, वो आगे बढ़ता है लेकिन फिर उसका अहंकार उसे स्कूल से निकलवा देता है, फिर क्या होता है, क्या वो स्कूल में वापस आता है, क्यों वो इंडियन एजुकेशन सिस्टम से लड़ता है, इसके लिए आपको श्रीकांत की कहानी देखने सिनेमा हॉल जाना पड़ेगा.


कैसी है फिल्म
ये एक ऐसे फिल्म है जो आपको मोटिवेट करती है, श्रीकांत आपके अंदर एक जोश भरता है कि हौसला और जज्बा हो तो कुछ भी किया जा सकता है, फिल्म का फर्स्ट हाफ कमाल का है, कहीं ढीला नहीं पड़ता, कही आप बोर नहीं होते, हां जब रोमांटिक गाना आता है तो आप ब्रेक ले सकते हैं, कई ऐसे सीन आते हैं जब आंखें नम होती हैं. आप श्रीकांत के साथ उसके सफर पर चल पड़ते हैं, लेकिन सेकेंड हाफ में फिल्म थोड़ा सा भटक जाती है. आपको कुछ देर के लिए समझ नहीं आता कि क्या हो रहा है लेकिन फिर जबरदस्त क्लाइमैक्स आता है जो आपका तालियां बजाने को मजबूर कर देता है, कुल मिलाकर फिल्म काफी अच्छी है और देखनी चाहिए.


एक्टिंग
राज कुमार राव श्रीकांत को जीते हैं, वो कमाल के एक्टर है ये वो पहले ही साबित कर चुके हैं, यहां वो अपनी एक्टिंग की रेंज को और आगे ले जाते हैं, उनकी एक्टिंग देखकर लगता है की इस साल वो बेस्ट एक्टर अवॉर्ड के बड़े मजबूत दावेदार हैं, अलाया एफ का काम अच्छा है, लेकिन उनका रोल कम है, उन्हें और स्क्रीन स्पेस दिया जाना चाहिए था, ज्योतिका ने शानदार काम किया है, शरद केलकर की एक्टिंग हमेशा की तरह जबरदस्त है.


डायरेक्शन
तुषार हीरानंदानी का डायरेक्शन अच्छा है, फिल्म पर उनकी पकड़ दिखती है. वो इससे पहले सांड की आंख और स्कैम 2003 डायरेक्ट कर चुके हैं. उनके पास राइटिंग का लम्बा अनुभव है और ये उनके डायरेक्शन में दिखता है लेकिन फिल्म के सेकेंड हाफ की राइटिंग ही उनके काम पर भी असर डालती है. जगदीप सिद्धू और सुमित पुरोहित अगर सेकेंड हाफ को और बेहतर लिखते तो ये इस साल की सबसे शानदार फिल्म बन जाती.


कुल मिलाकर कमियों के बावजूद ये फिल्म देखने लायक है और देखी जानी चाहिए, अगर आपको 12th फेल पसंद आई तो ये भी जरूर आएगी.


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