Human Movie Review In Hindi: आम तौर पर हर उद्योग के दो पक्ष होते हैं. एक उजला और दूसरा स्याह. एक ईमानदार और दूसरा भ्रष्ट. दवा उद्योग की भी यही स्थिति है. लेकिन इसका स्याह और भ्रष्ट पहलू इसलिए अधिक खतरनाक है कि इसके तार इंसानी जान की खिलवाड़ से जुड़ते हैं. यहां इंसान और गिनी पिग का फर्क खत्म हो जाता है. डिज्नी हॉटस्टार (Hotstar) पर रिलीज हुई वेबसीरीज ह्यूमन (Web Series Human) इसी अमानवीय पक्ष को सामने रखती है. इसका अंदाज थ्रिलर वाला है. सीरीज बताती है कि कैसे नई दवाओं को बाजार में लाने से पहले इंसानों पर उसके प्रयोग किए जाते हैं.  कैसे दवाओं के ट्रायल में हिस्सा लेने वाले इंसान कंपनियों और डॉक्टरों के लिए नोट छापने की मशीन में बदल जाते हैं और लालच की कोई सीमा नहीं रहती. ऐसा नहीं कि दवा-ट्रायल के वैध रास्ते नहीं है. इसके बावजूद निजी दवा कंपनियां मुनाफे की खातिर लोगों की जान से खेलती है और कई बार इसमें बड़े अस्पताल और सम्मानित डॉक्टर तक शामिल रहते हैं. वो डॉक्टर, जिन्हें लोग भगवान का दर्जा देते हैं.


वेबसीरीज ह्यूमन (Webseries Human) दवा ट्रायल और उससे जुड़ी बहस के तकनीकी पक्ष में ज्यादा नहीं जाती. वह इन ट्रायल्स के बहाने एक डॉक्टर की महत्वाकांक्षा और सनक की कहानी दिखाती है. यह भोपाल (मध्य प्रदेश) के एक बड़े अस्पताल मंथन की सर्वेसर्वा डॉ.गौरी नाथ (शेफाली शाह) (Shefali Shah) और अस्पताल में नई आई डॉ.सायरा सभरवाल (कीर्ति कुल्हारी) (Kirti Kulhari) को केंद्र में रख कर दवा ट्रायल की सच्चाई को दिखाने की कोशिश करती है. इस कहानी में डॉक्टरों और ट्रायल के लिए उपलब्ध इंसानों के साथ उद्योगपति, धनपति और राजनेता भी शामिल हैं. ह्यूमन दिखाती है कि दिल के मरीजों की नई दवा एस93आर का प्रयोगशाला में गिन पिग्स के साथ-साथ कैंपों में इंसानों पर ट्रायल हो रहा है. दवा में खामियां हैं.




कहानी तब उलझती है जब ट्रायल कैंप से बाहर एक गरीब युवक मंगू (विशाल जेठवा) (Vishal Jethwa) की मां पर इस दवा का रिएक्शन होता है. वह तड़प-तड़प कर मर जाती है. मंगू जैसे और भी लोग हैं, जिनके परिवारों ने ट्रायल के खराब नतीजे भुगते. सवाल यह कि पीड़ितों को मुआवजा और न्याय कौन देगा. गैर-कानूनी ढंग से ट्रायल कर रहीं दवा कंपनियां और भ्रष्ट डॉक्टर कैसे पकड़े जाएंगे. इन्हें सजा कैसे मिलेगी. यहां न्यूरोसर्जन डॉ.गौरी नाथ का सीधा संबंध एस93आर विकसित कर रही कंपनी से है। क्या वह नाकाम दवा और अवैध ट्रायल की जिम्मेदारी लेंगी. साथ ही डॉ.गौरी नाथ अपनी देखरेख में न्यूरो-संबंधी एक अन्य दवा भी विकसित करा रही हैं, जिसके अवैध ट्रायल दस युवा लड़कियों पर चल रहे हैं. लड़कियों को बंधक बनाकर रखा गया है. इसका नतीजा क्या आ आएगा. यह भी कहानी का एक प्रमुख ट्रैक है. ह्यूमन (Human) में डॉ.गौरी नाथ, डॉ. सायरा सभरवाल और मंगू की निजी जिंदगियों के ट्रेक समानांतर चलते हैं.




इस वेब सीरीज (Web Series) के मुख्य किरदारों की निजी कहानियों में खुशनुमा पल नहीं हैं और सभी की जिंदगी समस्याग्रस्त है. लगभग सभी किरदार अलग-अलग महत्वाकांक्षाओं से लैस, दोहरी जिंदगी जी रहे हैं. सब तनाव में हैं. सबका पारिवारिक जीवन बिखरा है. प्यार की बातें यहां आपको नहीं मिलेंगी. डॉ.गौरी नाथ कहती हैः प्यार जताने के लिए होना भी तो चाहिए. ह्यूमन को अच्छे ढंग से लिखा गया है और कथा-पटकथा बांधती है. कई जगह डायलॉग ध्यान खींचते हैं. जैसेः ‘दुख भी अजीब करवट लेता है, कभी रुलाता है कभी पत्थर बना देता है,’ ‘प्यार हमेशा दर्द देता है, यह बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए’. ह्यूमन देख कर आप सोच में पड़ सकते हैं कि क्या कामयाब डॉक्टरों की जिंदगी ऐसी होती है.




यह तय है कि इस सीरीज को देख कर आप पूरे मेडिकल सिस्टम पर अंगुली नहीं उठा सकते. लेकिन यह इशारा समझना होगा कि मानव-सेवा की आड़ में कैसे पैसे, भ्रष्टाचार और राजनीति का बोलबाला है. यह एक जाल है, जिसमें ज्यादातर कीड़े-मकोड़े की जिंदगी जीने वाले गरीब और अभावग्रस्त लोग फंसते हैं. इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया भर के ह्यूमन (Human)-ट्रायल बाजार में भारत सबसे सस्ती दवा-प्रयोगशालाओं में है. चीन के बाद सर्वाधिक दवा-ट्रायल भारत में होते हैं. लेकिन यहां होने वाले हादसों को देख कर कहा जा सकता है कि ह्यूमन-ट्रायल मैदान के खिलाड़ी कहने को इंसान हैं, मगर अमानवीय हैं. संवेदनहीन हैं. एक हद के बाद क्रूर भी हैं. जो कई बार प्रयोग में शामिल इंसानों को इंसान नहीं समझते.




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ह्यूमन में शेफाली शाह (Shefali Shah), कीर्ति कुल्हारी (Kirti Kulhari) और विशाल जेठवा (Vishal Jethwa)ने अपनी भूमिकाएं बढ़िया ढंग से निभाई हैं. शेफाली शाह ((Shefali Shah)) कई जगहों पर आंखों से सब कह जाती हैं जबकि कीर्ति कुल्हारी इमोशनल दृश्यों में जमी हैं. सीमा बिस्वास मुख्य ट्रैक में न होने के बावजूद असर छोड़ती हैं. ह्यूमन एक डार्क कहानी है. आप इसे मन बहलाने के लिए हल्के-फुल्के मनोरंजन की तरह नहीं ले सकते. ह्यूमन (Human) के साइड-फैक्ट्स भी हैं. करीब 50-50 मिनिट के दस एपिसोड आपसे खाली समय, धैर्य और ऐसी मनःस्थिति की मांग करते हैं जहां आप मेडिकल दुनिया के अंधेरों को सह सकें क्योंकि कभी न कभी सभी को अस्पतालों से रू-ब-रू होना पड़ता है.


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