Atrangi Re Review: सबसे पहले तो इस फिल्म में कहानी है. वह मूलभूत बात, जिसे मन में लेकर आप या तो सिनेमाघरों में जाते हैं या फिर स्क्रीन को ऑन करते हैं. अतरंगी रे आपके सामने वह कहानी पेश करती है जिसमें रोमांस है, इमोशन है और ड्रामा भी. सब कुछ ऐसा, जैसा परिवार के साथ देख सकें.


डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई इस फिल्म के साथ आप क्रिसमस की छुट्टियां मना सकते हैं. आने वाले साल का स्वागत कर सकते हैं. लंबे समय बाद ऐसी फिल्म आपके सामने है जो बगैर किसी एजेंडे के एंटरटेन करती है. फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा और निर्देशक आनंद एल राय के साथ पूरी टीम का काम तारीफ के काबिल है.


हाल के वर्षों में सिनेमा में सहजता कम होती चली गई है और लेखकों-निर्देशकों को कहानी के लिए मुद्दे ढूंढने पड़ते हैं. वहां मनुष्य और मनुष्यता पीछे छूट जाते हैं. फिर मनोरंजन दोयम बात बन जाता है. लेकिन अतरंगी रे में ऐसा नहीं है. फिल्म के किरदारों के साथ आप मिनटों में जुड़ जाते हैं. आपकी दिलचस्पी सहज जाग जाती है कि आगे क्या होगा.


आनंद एल राय के सिनेमा में लड़खड़ाने के बाद पटरी पर आ जाते रिश्तों का अहम रोल होता है. ऐसा यहां भी है. फिल्म बिहार से शुरू होती है, जहां रिंकू सूर्यवंशी (सारा अली खान) की शादी उसकी नानी (सीमा बिस्वास) और बाकी रिश्तेदार दिल्ली से आए तमिल भाषी विष्णु (धनुष) से जबरदस्ती करा देते हैं. यह पकड़ौवा ब्याह होता है, जिसमें शादी के लिए लड़के को उठा लिया जाता है.


रिंकू को साथ लेकर दिल्ली लौटते हुए विष्णु बताता है कि दो दिन बाद उसकी सगाई होने वाली है और यह लव मैरिज होगी. रिंकू कहती है कि यह तो अच्छा है क्योंकि वह किसी और से प्यार करती है. नाम है सज्जाद अली (अक्षय कुमार). सज्जाद के लिए वह पिछले चौदह साल में 21 बार घर से भागी है और हर बार पकड़ी गई. तय होता है कि विष्णु शादी कर ले तो दोनों अपने-अपने रास्तों पर निकल जाएंगे. अपने पसंदीदा साथियों के साथ. लेकिन सवाल यह कि क्या ऐसा हो पाएगा.


फिल्म की खूबसूरती इसके किरदार हैं. सारा अली खान यहां ठेठ देसी गर्ल हैं. पूरी कहानी के केंद्र में हैं. सारी बातें उनके इर्द-गिर्द हैं. अपने रोल से उन्होंने पूरा न्याय किया है. वह उम्मीद कर सकती हैं कि आनंद एल राय की तनु वेड्स मनु ने जो जादू कंगना रनौत के करिअर में किया था, यह फिल्म उनके लिए करे. सारा के किरदार में यहां परतें हैं और उन्होंने अभिनय से इन्हें अलग-अलग स्तर पर जीया है.


चकाचक गाने पर उनका डांस एक अलग असर पैदा करता है. धनुष शानदार अभिनेता हैं और यहां वह अपनी पहचान के अनुरूप हैं. चाहे प्यार का मामला हो या कॉमिक टाइमिंग का, वह नहीं चूकते. अक्षय कुमार के साथ अच्छी बात यह है कि उन्होंने कहानी में अपने रोल की नजाकत को समझते हुए इसे निभाया है. यही लचीलापन किसी अभिनेता के करिअर की जीवन-रेखा लंबी बनाता है. धनुष के दोस्त के रूप में आशीष वर्मा ने अपनी भूमिका मजबूती से निभाई है. एआर रहमान का संगीत और इरशाद कामिल के गीत कहानी को मधुर बनाते हैं. किसी फिल्म में अरसे बाद सारे गाने सुनने-गुनगुनाने जैसे हैं. लंबे समय बाद रहमान पूरे फॉर्म में हैं.



अतरंगी रे में रोमांस, इमोशन और ड्रामा भरपूर है. आनंद एल राय ने सिनेमा की भव्यता को यहां बनाए रखा है. कैमरा वर्क और एडिटिंग अच्छे हैं. जीरो की नाकामी के बाद राय यहां फिर पुरानी लय में हैं. यही बात हिमांशु राय की लेखनी के बारे में कही जा सकती है. उन्होंने कहानी में दिलचस्प ट्विस्ट डाला है, जो फिल्म को रोमांस और ड्रामे से ऊपर उठा कर मानवीय बनाता है.


यह जरूर है कि उन्होंने हीरो के दिल की जगह दिमाग को प्राथमिकता दी है. खास तौर पर आखिरी हिस्से में. वर्ना अतरंगी रे के मध्य भाग को देखते हुए आपको देर तक कमल हासन-श्रीदेवी की क्लासिक फिल्म सदमा याद आती है. उस फिल्म जैसी करुणा यहां गायब है. करुणा सबसे श्रेष्ठ मानवीय-मूल्य है. इसी बिंदु पर अतरंगी रे 1983 में आई निर्देशक बालू महेंद्र की सदमा से पीछे रह जाती है. जब तक थोड़े कठोर दिखते हीरो के बारे में आप कुछ सोचें, अतरंगी रे आगे बढ़ जाती है और आप भी मजा खराब करना नहीं चाहते.


सज्जाद के रूप में अक्षय का किरदार और उससे रिंकू का प्यार वह धागा है, जिसमें यह फिल्म मोतियों-सी पिरोई नजर आती है. विष्णु और रिंकू की कहानी के बीच सज्जाद और रिंकू दर्शकों को याद रह जाते हैं. आप खुश हो सकते हैं कि 2021 को एक अच्छी फिल्म की यादों के साथ विदा किया जा सकता है.


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