राजधानी दिल्‍ली में हुमायूं का मकबरा न सिर्फ सबसे मशहूर टूरिस्ट आकर्षणों में से एक है बल्कि महान मुगल वास्‍तुकला का एक उत्‍कृष्‍ट नमूना है. इस मकबरे का विशेष सांस्‍कृतिक महत्‍व है क्‍योंकि यह भारतीय उप महाद्वीप पर पहला उद्यान - मकबरा था. यूनेस्को ने 1993 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया था.


आगरा का ताज महल भी इसी की तर्ज पर बनाया गया है. यह ऐतिहासिक स्‍मारक हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम (हाजी बेगम) ने लगभग 15 लाख रुपये की लागत से बनवाया था. ऐसा माना जाता है कि इस मकबरे की संकल्‍पना उन्‍होंने तैयार की थी. 1565 में इसका निमार्ण कार्य शुरू हुआ और से पूरा होने में करीब 8 साल लगे.


इस मकबरे को तैयार करने के लिए विदेशों से खासतौर पर आर्किटेक्ट बुलाए गए थे. इनमें अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और भारत के कई बड़े आर्किटेक्ट शामिल थे. हुमायूं के अलावा मुगल शासकों के परिजनों की करीब 150 कब्र इसी मकबरे में हैं.


करीब 30 एकड़ फैले इस मकबरे में हुमायू की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के बेटे दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं. अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर ।। ने 1857 में स्‍वतंत्र के प्रथम संग्राम के दौरान इसी मकबरे में आश्रय लिया था.  यहां के फव्‍वारों को सरल किन्‍तु उच्‍च विकसित इंजीनियरिंग कौशलों से बनाया गया है.


इस स्‍मारक की भव्‍यता यहां आने पर दो मंजिला प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते समय ही साफ हो जाती है। यहां की ऊंची छल्‍लेदार दीवारें एक चौकोर बागीचे को चार बड़े वर्गाकार हिस्‍सों में बांटती हैं, जिनके बीच पानी की नहरें हैं. प्रत्‍येक वर्गाकार को पुन: छोटे मार्गों द्वारा छोटे वर्गाकारों में बांटा गया है, जिससे एक प्रारूपिक मुहर उद्यान, चार बाग बनता है.


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