Solah Shringar, Silver Payal Dharmik and Scientific Significance: हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के श्रृंगार का विशेष महत्व होता है. हिंदू धर्म में महिलाओं के 16 श्रृंगारों की बात कही गई है, जिन्हें विवाह पश्चात महिला द्वारा किया जाता है. इसमें सिंदूर,बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ी, पायल और बिछिया जैसे श्रृंगार को महत्वपूर्ण माना गया है. इन श्रृंगार को महिलाओं के सुहागिन होने का प्रमाण माना गया है.


मान्यता है कि शादीशुदा महिलाओं के श्रृंगार करने से सुहाग की आयु लंबी होती है. महिलाओं के कई श्रृंगार में एक है पायल, जिसे पैरों में पहना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पैरों में पायल पहनने के केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक पहलू भी हैं. जानते हैं पायल पहनने की मान्यता, महत्व और लाभ.


कितना पुराना है पायल का इतिहास


पायल को पाटिल, पाजेब, पायल, गोलूसु, नूपुर जैसे कई नामों से जाना जाता है. कहा जाता है कि, प्राचीन काल से ही पायल की उत्पत्ति भारत में हुई है. पुराने समय में वजनदार और भारी चांदी के पायल पैरों में पहने जाते थे, जोकि कड़े के समान होते थे. हम्पी की मूर्तियों में भी पायल और अन्य गहनों को दर्शाया गया है.


चांदी के पायल का धार्मिक महत्व


हिंदू धर्म में पायल को बहुत शुभ माना गया है. वहीं ज्योतिष के अनुसार चांदी धातु से बने पायल का संबंध चंद्रमा से होता है. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि चांदी की उत्पत्ति भगवान शिवजी की देन है. इसके वास्तु शास्त्र में भी पायल को सकारात्मकता से जोड़ा गया है. इसके अनुसार पायल की घुंघरू से निकलने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है.


पायल पहनने के वैज्ञानिक लाभ


चांदी ब्लड सर्कुलेशन में मददगार होता है. ऐसे में चांदी की पायल पहनने से पैरों का दर्द कम होता है और हड्डियां मजबूत होती है. पायल को लेकर यह भी कहा जाता है कि पायल पहनने से पैरों मे सूजन नहीं आती है.


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