Krishna Sudama Story: श्रीकृष्ण के वैसे तो कई मित्र थे, लेकिन सुदामा और कृष्ण के मित्रता की मिसाल आज भी दी जाती है. इसका कारण यह भी है कि धन-दौलत, रंग-रूप और भेद-भाव से परे कृष्ण-सुदामा की घनिष्ठ मित्रता का गुणगान किया जाता है. बाल्यावस्था में कृष्ण और सुदामा एक साथ एक ही गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते थे. लेकिन बाद में श्रीकृष्ण द्वारकाधीश बने और सुदामा को अत्यंत निर्धनता में जीवन व्यतीत करना पड़ रहा था.


लेकिन श्रीकृष्ण ने सुदामा को तीन मुट्ठी चावल के बदले तीन लोक का स्वामी बना दिया. सुदामा की संपत्ति देख यमराज अपना बहीखाता लेकर द्वारका पहुंचे और श्रीकृष्ण को नियम-कानून का पाठ पढ़ाने लगे.


जब यमराज ने श्रीकृष्ण को पढ़ाया नियम-कानून का पाठ


यमराज द्वारका पहुंचे और श्रीकृष्ण से कहा- क्षमा करें भगवन, लेकिन सत्य तो यह है कि यमपुरी में शायद अब मेरी कोई आवश्यकता नही रही. इसलिए में आपको पृथ्वीलोक के प्राणियों के कर्मों का बहीखाता सौंपने आया हूं. यह कहते हुए यमराज ने भगवान के समक्ष सारा बहीखाता रख दिया.


श्रीकृष्ण बोले- यमराज जी आप इतने चिंतित क्यों लग रहे हैं, आखिर बात क्या बात है?


यमराज ने कहा- भगवान आपके क्षमा कर देने से अनेक पापी यमपुरी नहीं आते बल्कि सीधे आपके धाम चले जाते हैं. ऐसे में आपने सुदामा जी को तीनों लोक देकर तीनों लोक का स्वामी बना दिया. अब ऐसे में हम कहां जाएंगे.


कृष्ण की लीला से ‘श्रीक्षय से यक्षश्री’ बना सुदामा का भाग्य


यमराज भगवान को अपना बहीखाता दिखाते हुए कहते हैं कि सुदामा जी के भाग्य में ‘श्रीक्षय’ है. लेकिन बहीखाता देख यमराज भी चकित रह जाते हैं. सुदामा के भाग्य वाले स्थान पर ‘श्रीक्षय’ की जगह ‘यक्षश्री’ लिखा होता है. दरअसल खुद भगवान कृष्ण अपनी लीलाओं से अक्षर को बदलकर श्रीक्षय से यक्षश्री कर देते हैं. यक्षश्री यानी कुबेर की संपत्ति!


इसके बाद श्रीकृष्ण यमराज से कहते हैं- यमराज जी! शायद आप नहीं जानते कि सुदामा ने मुझे अपना सर्वस्व अपर्ण कर दिया था. मैंने सुदामा के केवल उसी का प्रतिफल उसे दिया है.


यमराज आश्चर्य होकर कहते हैं- सुदामा जी ने ऐसी कौन सी संपत्ति आपको दे दी. उनके पास तो कुछ भी नही.


भगवान बोले- सुदामा ने अपनी कुल पूंजी के रूप में मुझे प्रेम स्वरूप चावल अर्पण किये थे, जिसे मैंने और देवी लक्ष्मी ने बड़े प्रेम से खाए. जो मुझे प्रेम पूर्वक कुछ भी खिलाता है उसे सम्पूर्ण विश्व को भोजन कराने जितने पुण्यफल की प्राप्ति होती है. ठीक इसी तरह का प्रतिफल मैंने सुदामा को भी दिया है.


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