नई दिल्ली: विदुर के नाम से सभी परिचित हैं. विदुर को धर्मराज का अवतार भी कहा जाता है. महाभारत के सबसे प्रभावी पात्रों में एक विदुर राजा धृतराष्ट्र के सलाहकार थे. विदुर धृतराष्ट्र को हमेशा सही सलाह दिया करते थे. वे सदा सत्य बोलते थे और सत्य के मार्ग पर ही चलते थे. धृतराष्ट्र और विदुर के बीच जो वार्तालाप होता था उसे ही विदुर नीति कहा गया.  विदुर नीति जीवन को श्रेष्ठ बनाती है. इसकी शिक्षाएं सही और गलत का भेद बताती हैं. आइए जानते हैं क्या हैं आज की विदुर नीति-

धन का करना चाहिए संचय

जो व्यक्ति धन की अहमियत नहीं पहचानते हैं वे व्यक्ति समय आने पर धन के लिए तरसते हैं. धन व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक साधन है. इस साधन का बहुत सोच समझकर ही प्रयोग करना चाहिए. धन के लिए न ज्यादा आसक्त होना चाहिए और न ही दूसरे के धन का लोभ करना चाहिए. अपनी मेहनत से अर्जित किए धन को अपना मानना चाहिए. धन के पीछे नहीं भागना चाहिए. जो धन के पीछे भागते हैं इसे व्यक्ति अपने जीवन का सुख चैन गवां देते हैं. परिवार समाज भी दूर हो जाता है. धन का संबंध व्यक्ति के आत्मविश्वास से होता है. जब इसका संचय करते हैं तब इसका भाव बना रहता है. जो धन को व्यर्थ में खर्च करता है, उसकी उपयोगिता को नहीं समझता है. व्यसनों में बरबाद करता है और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए जो धन का प्रयोग करते हैं, ऐसे व्यक्ति से लक्ष्मी रूठ जाती हैं.

अन्न का नहीं करना चाहिए अनादर

अन्न ही जीवन है. जीवन के लिए अन्न बहुत जरूरी है. विदुर का इस पर मत था कि व्यक्ति को कभी भी अन्न का अनादर नहीं करना चाहिए. सामने रखे भोजन का जो व्यक्ति तिरस्कार करता है, एक दिन अन्न उसका भी तिरस्कार कर देता है. अन्न की बर्बादी भी नहीं करनी चाहिए. व्यक्ति को उतना ही भोजन परोसना चाहिए जितना उसकी भूख हो. अन्न ग्रहण करते हुए मन का अच्छा रहना बहुत जरूरी है. अच्छे मन से खाया गया भोजन ही शरीर के लिए सबसे उत्तम होता है. इससे मन को ऊर्जा मिलती है, सेहत को लाभ पहुंचता है. अन्न बहुत ही संयम और स्वाद से खाना चाहिए. अन्न ग्रहण करने की पूरी एक प्रकिया होती है, जिसका पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए.