Ujjain Mahakal Temple: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित हैं. उज्जैन एक प्राचीन नगर है. जिसे प्राचीनकाल में अवंतिका और उज्जैयिनी के नाम से भी जाना जाता था. इस नगर का प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. यह नगर क्षिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ.


पौराणिक कथा: महाकाल के रूप में प्रकट हुए शिव जी
उज्जैन में भगवान शिव कई भक्त थे. यहां पर एक ब्राह्मण परिवार रहता था. इस ब्राह्मण के चार पुत्र थे. उज्जैन नगर में दूषण नाम का राक्षस ने आंतक मचा रखा था. लोग इस राक्षस से बहुत पीड़ित थे. यह राक्षस कोई धार्मिक कार्य नहीं होने देता था. इस राक्षस के आतंक से बचने के  लिए ब्राह्मण ने भगवान शिव की पूजा आरंभ की. भगवान भोलेनाथ ब्राह्मण की तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए. भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और दूषण नाम के राक्षस का वध करके संपूर्ण नगर की रक्षा की. राक्षण के मरने के बाद नगरवासियों ने राहत की सांस ली और भगवान शिव से इसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की. भक्तों के प्रार्थना करने पर भगवान शिव अवंतिका में ही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए.


दक्षिणमुखी विराजमान हैं महाकालेश्वर
भगवान शिव का यह मंदिर अति प्राचीन माना जाता है. शिव पुराण के इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में हुई थी. इस मंदिर की विशेष बात ये है कि यहां भगवान शिव महाकाल के रूप में दक्षिणमुखी होकर विराजमान हैं. मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा गुजरती है. इसलिए इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है.


तीन भागों में विभाजित है महाकाल का मंदिर
यह पवित्र मंदिर मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है. महाकाल के मंदिर के ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर मंदिर है, नीचे ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे नीचे महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं. यहां पर भगवान शिव के साथ ही गणेश, कार्तिकेय और माता पार्वती की मूर्तियों भी स्थापित हैं. इस मंदिर का 14 वीं, 15 वीं और 18 वीं सदी के कई ग्रंथों में वर्णन किया गया है.


भस्म आरती से जगाया जाता है महाकाल को
मंदिर में सुबह के समय महाकाल की भस्म आरती की जाती है. इसके बाद उनका मनमोहक श्रंगार किया जाता है. भस्म आरती द्वारा महाकाल को जगाया जाता है. आरती में जिस भस्म का प्रयोग होता है उसे शमशान से मंगाया जाता है. माना जाता है कि भस्म ही संपूर्ण सृष्टि का सार है. इसलिए भगवान शिव इसे हमेशा धारण किए रहते हैं.


सावन में दर्शन करने का महत्व
सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित है. चातुर्मास आरंभ होने के बाद भगवान शिव इस सृष्टि को देखते हैं. चातुर्मास में भगवान शिव पृथ्वी का भ्रमण करते हैं. मान्यता है कि सावन में महाकाल के दर्शन करने से कई प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं.


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