Mahabharat : हथियार या संहारक अमूमन दो तरह के अस्त्र और शस्त्र हुए हैं. 'अस्त्र' ऐसे हथियार को कहा गया, जो किसी मंत्र या यंत्र से चलाए जाते थे. सह बहुत भयानक होते थे, इनसे चारों ओर हाहाकार मच जाता था। मौजूदा समय में यंत्र से फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे तोप है तो मंत्र से जैसे ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, पर्जन्यास्त्र आदि. जबकि दूसरे संहारक हाथों से चलाए जाने के कारण शस्त्र कहे गए. यह भी दो प्रकार के हुए यंत्र शस्त्र और हस्त शस्त्र. यंत्र शस्त्र मे शक्ति, तोमर, पाश, बाण सायक, शण, तीर, परिघ, भिन्दिपाल, नाराच आदि रहे तो हस्त शस्त्र में ऋष्टि, गदा, चक्र, वज्र, त्रिशूल, असि, खंजर, खप्पर, खड्ग, चन्द्रहास, फरसा, मुशल, परशु, कुण्टा, शंकु, पट्टिश, वशि, तलवार, बरछा, बरछी, कुल्हाड़ा, चाकू, भुशुण्डी आदि रहे.


चंद लोगों को ही था दिव्यास्त्र का ज्ञान
मंत्र से संचालित अस्त्र दिव्यास्त्र कहे जाते हैं. प्राचीनकाल में यह विद्या चंद लोगों को ही सिखाई जाती थी. ब्रह्मास्त्र चलाने के लिए कर्ण ने परशुराम से शिक्षा ली तो द्रोणाचार्य ने कौरवों समेत पांचों पांडवों को इसकी शिक्षा दी थी, लेकिन ब्रह्मास्त्र विद्या कर्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा के अलावा किसी को नहीं आई. 


अस्त्र भी दो प्रकार के दिव्यास्त्र और यांत्रिकास्त्र हुए. दिव्यास्त्र मंत्रों से चलाए जाते थे. हर अस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है. मंत्र-तंत्र से ही इसे चलाया जा सकता है. दिव्यास्त्रों में प्रमुख रूप से आग्नेयास्त्र, पर्जन्य, वायव्य, पन्नग, गरूड़, नारायणास्त्र, पाशुपत, ब्रह्मशिरा, एकागिन्न अमोघास्त्र और ब्रह्मास्त्र हैं.


दिव्यास्त्रों का असर : आग्नेयास्त्र अग्नि बरसता था तो पर्जन्य से भारी बारिश होने लगती थी. वायव्य से आंधी-तूफान बवंडर आ जाता था. इनका प्रभाव इतना घातक था कि पूरे युद्ध स्थल का वातावरण भयावह हो जाता था, इनसे बचना मुश्किल था, सिर्फ वही इनसे बच सकता था, जो इनकी काट जानता था.


ऐसे मिलते थे दिव्यास्त्र
इसके लिए कठिन तप, व्रत, उपवास, ध्यान आदि करके मन को काबू में करने पांचों इंद्रियों को संचालित करने की शक्ति पाई जाती थी. जो व्यक्ति एकचित्त हो जाता वही दिव्यास्त्र हासिल करने का अधिकारी बनता.


वासवी शक्ति: इसे अमोघ अस्त्र भी कहा जाता है, जो सिर्फ इंद्र के पास था. इसकी खूबी ये थी कि यह अचूक होने के चलते एक बार ही प्रयोग हो सकता था. महाभारत में कर्ण को इसे इंद्र ने कवच कुंडल के बदले दिया था. कर्ण इसके प्रयोग से अर्जुन को मार डालना चाहता था, लेकिन कर्ण को न चाहते हुए भी मित्र दुर्योधन के कहने पर महाशक्तिशाली घटोत्कच पर इसका प्रयोग करना पड़ा.


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