Mahabharat : बभ्रुवाहन अर्जुन की चौथी पत्नी और मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा का पुत्र था. महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा लेकर अर्जुन विभिन्न राज्यों को देखते हुए मणिपुर पहुंचे, यहां जब उनके बेटे बभ्रुवाहन को पता चला तो वह पिता के स्वागत के लिए दौड़ा-दौड़ा नगर द्वार तक पहुंच गया, लेकिन अर्जुन ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए युद्ध करने को कहा.


भाव विह्वल बभ्रुवाहन पिता से युद्ध करने को लेकर परेशान हो उठा, इसी वक्त वहां साथ आई  उलूपी ने उसे उकसाते हुए अर्जुन के खिलाफ हथियार उठाने को मजबूर कर दिया. उलूपी ने बताया कि इस समय अर्जुन विश्वविजय की मनोकामना से उसका राज्य जीतने आए हैं, ऐसे में प्रजा की रक्षा करना उसका क्षत्रिय धर्म है. वह पुत्रधर्म के बजाय राजधर्म का पालन करें.


बभ्रुवाहन के घातक तीर से गई जान


इस उकसावे में बभ्रुवाहन ने अर्जुन से युद्ध छेड़ दिया. भयंकर युद्ध छेड़ने पर उसने घातक तीर से अर्जुन को मूर्छित कर दिया, कुछ समय बाद अर्जुन मृत प्राय हो गए. पुत्र के हाथों पति का वध कराने की उलूपी की चाल पता चलते ही चित्रांगदा बरस पड़ीं और उलूपी को कोसते हुए रोना-बिलखना शुरू कर दिया. इस पर उलूपी ने संजीवनी मणि स्मरण कर प्राप्त कर ली और बभ्रुवाहन के हाथों ही अर्जुन के सीने पर मणि रखवा कर उन्हें दोबारा जीवित कर दिया.


तब तक वसु देवताओं के श्राप से अर्जुन को मुक्ति मिल चुकी थी. यहां उलूपी ने अर्जुन, चित्रांगदा को बताया कि यह उनकी मोहिनी माया थी. छल पूर्वक भीष्म का वध करने के चलते वसु अर्जुन को श्राप दे चुके थे. लेकिन उलूपी के पिता की प्रार्थना पर मुक्ति का उपाय बतााया कि मणिपुर के राजा खुद अर्जुन के पुत्र हैं, अगर वे पिता का वध कर दें तो अर्जुन को पापों से छुटकारा मिल जाएगा. इसी श्राप से मुक्ति के लिए मैंने मोहिनी माया दिखाई. यह बात जानकर अर्जुन बब्रुवाहन और चित्रांगदा भी प्रसन्न हो गए. अर्जुन विजय के बाद हस्तिनापुर आए और शुभ मुहूर्त में यज्ञ शुरू हो गया.


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