Shani Shingnapur Mandir: महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगणापुर केवल एक गांव नहीं, बल्कि शनिदेव की जागृत शक्ति का जीवंत प्रमाण माना जाता है.

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यह वही स्थान है जहां श्रद्धा और विश्वास ने सदियों से कानून, ताले और सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता को पीछे छोड़ दिया है. शनि शिंगणापुर अपने अद्भुत रहस्यों, अनोखी परंपराओं और शनिदेव की विशेष कृपा के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है.

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि गांव के घरों, दुकानों और यहां तक कि बैंकों में भी दरवाजे और ताले नहीं लगाए जाते. ग्रामीणों का अटूट विश्वास है कि स्वयं शनिदेव गांव की रक्षा करते हैं. उनका मानना है कि जहां शनि की दृष्टि होती है, वहां किसी प्रहरी की जरूरत नहीं होती.

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गांव जहां नहीं होती चोरी

शनि शिंगणापुर को लेकर सबसे चर्चित मान्यता यह है कि यहां कभी चोरी नहीं होती. कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां चोरी करने का प्रयास करता है, तो वह गांव की सीमा से बाहर नहीं जा पाता.

शनिदेव का प्रकोप उस पर इस प्रकार होता है कि वह स्वयं अपनी चोरी स्वीकार करने को मजबूर हो जाता है और शनिदेव से क्षमा याचना करता है. लोककथाओं के अनुसार, यदि चोर माफी नहीं मांगता तो उसका जीवन दुखों से भर जाता है.

यही कारण है कि यह गांव वर्षों से अपराध-मुक्त बना हुआ है. यह सब ग्रामीणों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं, बल्कि शनिदेव की प्रत्यक्ष उपस्थिति का प्रमाण है.

स्वयंभू शिला में विराजमान शनिदेव

शनि शिंगणापुर में शनिदेव किसी मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक काले रंग की स्वयंभू शिला के रूप में विराजमान हैं. लगभग 5 फुट 9 इंच ऊंची और 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह शिला संगमरमर के चबूतरे पर स्थापित है. इस स्थान पर न कोई भव्य मंदिर है, न छत्र, न ही शिखर.

कहा जाता है कि शनिदेव छाया पुत्र हैं, इसलिए उन्हें छाया की आवश्यकता नहीं होती. धूप हो, वर्षा हो, आंधी हो या शीत ऋतु, शनिदेव हर मौसम में खुले आकाश के नीचे विराजमान रहते हैं. यही उनकी विशेषता और भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है.

शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व

  • शनि शिंगणापुर में शनिदेव की पूजा का सबसे प्रमुख स्वरूप तेल अभिषेक है.
  • श्रद्धालु शनिदेव की शिला पर सरसों का तेल अर्पित करते हैं.
  • इसके साथ ही जल, दूध, दही, शहद, घी, काले तिल, काले वस्त्र और फूल चढ़ाए जाते हैं.
  • भक्त श्रद्धा भाव से “ॐ शनैश्चराय नमः”  शं मंत्र का जाप करते हैं.
  • विशेष रूप से शनिवार और अमावस्या के दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
  • शनि अमावस्या और शनिवार को शनिदेव की विशेष पूजा और अभिषेक होता है.

प्रतिदिन प्रातः 4 बजे और सायंकाल 5 बजे आरती संपन्न होती है. शनि जयंती के अवसर पर यहां लघुरुद्राभिषेक का आयोजन किया जाता है, जिसमें देशभर से विद्वान ब्राह्मण आमंत्रित किए जाते हैं. यह अनुष्ठान प्रातः 7 बजे से सायं 6 बजे तक चलता है.

पौराणिक मान्यता

शास्त्रों के अनुसार शनिदेव भगवान सूर्य के पुत्र हैं और नवग्रहों में सबसे प्रभावशाली माने जाते हैं. मान्यता है कि शनिदेव न्याय के देवता हैं और मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं. शनि शिंगणापुर में शनिदेव को जागृत देवता माना जाता है.

माना जाता है कि वे सदैव जागे रहते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. यह विश्वास है कि सच्चे मन से की गई शनि पूजा से शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है और जीवन में स्थिरता, अनुशासन और न्याय की प्राप्ति होती है.

शनि शिंगणापुर का इतिहास

शनि शिंगणापुर का इतिहास लगभग 300 से 400 वर्ष पुराना बताया जाता है. एक कथा के अनुसार, एक बार गांव में भारी वर्षा के बाद बाढ़ आई. बाढ़ उतरने के बाद एक किसान को खेत में एक बड़ा काला पत्थर दिखाई दिया. जब उसने उस पत्थर को छुआ, तो उससे रक्त निकलने लगा.

उसी रात किसान को स्वप्न में शनिदेव ने दर्शन दिए और बताया कि वे उसी शिला में विराजमान हैं और चाहते हैं कि उसे गांव के पास स्थापित किया जाए. गांववालों ने श्रद्धा के साथ उस शिला को स्थापित किया और तभी से यह स्थान एक प्रमुख शनि तीर्थ बन गया.

गडरिये को मिली शिला की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, यह शिला एक गडरिये को मिली थी. शनिदेव ने स्वयं उससे कहा कि इस शिला के लिए कोई मंदिर न बनाया जाए और इसे खुले स्थान पर ही स्थापित किया जाए.

साथ ही इस शिला पर तेल अभिषेक की परंपरा शुरू करने का निर्देश दिया गया. तभी से यह परंपरा आज तक निभाई जा रही है.

दर्शन में भी है नियम

यहां दर्शन को लेकर भी एक विशेष मान्यता है. कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु शनि भगवान के दर्शन के लिए प्रांगण में प्रवेश करता है, उसे दर्शन पूर्ण होने तक पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से शनि की कृपा दृष्टि नहीं मिलती और यात्रा निष्फल हो जाती है.

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