लक्ष्य निर्धारण मनोबल का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है. किसी कार्य के लिए तत्पर हो जाना निश्चित ही श्रेष्ठ होता है. लेकिन लक्ष्य स्वयं में कितना महत्वपूर्ण है यह भी स्पष्ट होना चाहिए. बड़ा व्यापार, उद्योग, कला साधना, विषयगत योग्यता और प्रसिद्धि लक्ष्य के बगैर संभव नहीं हैं. लक्ष्य पर अडिग रहना आगे बढ़ने की प्रेरना का मूल है. सफलता इसी से संभव है.


लाभ और लोभ में पड़कर किसी भी लक्ष्य में स्वयं को बांध लेना उचित नहीं होता. लक्ष्य निर्धारण की पहली जरूरत यह है कि इससे पूरा जीवन संवरना चाहिए. तात्कालिक लाभ के लक्ष्य भटकाव दे सकते हैं. लक्ष्य आत्ममूल्यांकन से चुना जाना चाहिए. मित्रों, करीबियों, परिजनों और आदर्शाें को देखकर लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए. स्वयं के सर्वाेत्तम आदर्श आप खुद होते हैं. अपने लिए क्या सर्वाधिक सही है यह आपको स्पष्ट होना चाहिए.


लक्ष्य बड़ा और संसार के हित को साधने वाला होना चाहिए. निज लाभ तक सीमित लक्ष्य आखिरकार कमजोर और एकांकी बनाते हैं. देने का भाव हर हाल होना चाहिए. लक्ष्य पूर्व योग्यता, प्राकृतिक क्षमता, रुचि, रुझान के साथ देश काल और समाज का समन्वय होना चाहिए. लक्ष्य भविष्योन्मुख होता है. आगामी बदलावों को लक्ष्यपूर्व जानने समझने का प्रयास करना चाहिए. इतिहास से ज्यादा ज्ञानानुभव लक्ष्य में अधिक सहायक होता है.


लक्ष्य बनाने की जल्दी भी न करें. जब तक मन बुद्धि और व्यवहार से लक्ष्य प्राप्ति का विश्वास न हो लक्ष्य न बनाएं. लक्ष्य बनाने के बाद उस पर कठिनतर परिस्थितियों में भी अडिग रहने को संकल्पित रहें.