राम नवमी: भगवान राम ने जब पृथ्वी पर जन्म लिया तो उनकी मुख की चमक आकर्षण देखकर लोग मोहित हो गए. भगवान राम के जन्म लेते ही अयोध्या में खुशी की लहर दौड़ गईं. संपूर्ण महल बधाई गीतों से गूंजने लगा. हर कोई इतना प्रसन्न था कि वह भगवान राम की सुंदरता का वर्णन नहीं कर पा रहा है. रामचरित मानस में भगवान राम के जन्म का बालकांड में वर्णन मिलता है.


भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था. जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ इस दिन चैत्र मास की नवमी तिथि थी और पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न था. पुनर्वसु नक्षत्र में पांच ग्रह अपने उच्च स्थान पर थे. लग्न में चंद्रमा और देव गुरु बृहस्पति थे. ज्योतिष शास्त्र में इस इन योगों को विशेष माना गया है. भगवान राम के जन्म के बारे में वाल्मीकि रामायण में बताया गया है.


श्रीरामवतार कथा


इस कथा को सर्वप्रथम नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि जी को सुनाया था. बाद में इस कथा को अग्निदेव ने वसिष्ठ जी को इस कथा के बारे में बताया है. कथा के अनुसार राजा दशरथ के यहां भगवान विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए. उनकी बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से श्री रामचन्द्र. कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ.


एक बार विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में बाधा डालने वाले राक्षसों के बारे में राजा दशरथ को बताया औरे भगवान श्रीराम को साथ भेजने के लिए कहा. तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेजा. श्रीराम को विश्वामित्र ने अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्रदान की. इसके बाद उन्होंने ताड़का का वध किया. यज्ञ में बाधा पैदा करने वाले राक्षस सुबाहु का भी वध किया. कुछ दिनों के बाद विश्वामित्र के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला नरेश के धनुष-यज्ञ में पहुंचे. जहां पर राजा जनक ने भगवान श्रीराम का पूजन किया. श्रीराम ने धनुष प्रत्यंचा चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला. इसके बाद सीताजी से विवाह हुआ.


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