Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas : तुलसी दास जी स्वयं की निदा करते हुए श्रीराम के बड़प्पन का वर्णन करते हैं. वह कहते हैं भक्त का किसी भी प्रकार का भाव हो उसका शुभफल श्रीराम अवश्य देते हैं. उन्होंने यहां तक भी कह दिया कि यदि वैर रख कर भी राम नाम का जाप किया जाए तो ऐसा भक्तों का भी कल्याण करते हैं. तुलसी दास जी कहते हैं जब उन्होंने मेरे जैस दुष्ट सेवक पर कृपा बरसाई. नाम महिमा के क्रम में आगे मानस मंत्रों को सझते हैं-  


भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। 
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ⁠।⁠। 
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। 
करउँ नाइ रघुनाथहि माथा ⁠।⁠। 


प्रेम से, वैर से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है। उसी परम कल्याणकारी  राम नाम का स्मरण करके और श्री रघुनाथ जी को मस्तक नवाकर मैं रामजी के गुणों का वर्णन करता हूँ. 


मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। 
जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।⁠। 
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। 
निज दिसि देखि दयानिधि पोसो।⁠। 


श्रीराम जी मेरी बिगड़ी सब तरह से सुधार लेंगे, जो कृपा करने से कभी अघाते यानी ऊबते नहीं है. राम से उत्तम स्वामी और मुझ सरीखा बुरा सेवक इतने पर भी उन दया निधि ने अपनी ओर देखकर मेरा पालन किया है. 


लोकहुँ बेद सुसाहिब रीती। 
बिनय सुनत पहिचानत प्रीती।⁠। 
गनी गरीब ग्राम नर नागर। 
पंडित मूढ़ मलीन उजागर।⁠। 


लोक और वेद में भी अच्छे स्वामी की यही रीति प्रसिद्ध है कि वह विनय सुनते ही प्रेम को पहचान लेता है. अमीर-गरीब, गांव-नगर निवासी, बुद्धिमान-मूर्ख, बदनाम-यशस्वी. 


सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। 
नृपहि सराहत सब नर नारी।⁠। 
साधु सुजान सुसील नृपाला। 
ईस अंस भव परम कृपाला।⁠। 


सुकवि-कुकवि, सभी नर-नारी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार राजा की सराहना करते हैं। और साधु, बुद्धिमान्, सुशील, ईश्वर के अंश से उत्पन्न कृपालु राजा यानी श्रीराम. 


सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। 
भनिति भगति नति गति पहिचानी।⁠।
यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। 
जान सिरोमनि कोसलराऊ।⁠। 


सबकी सुनकर और उनकी वाणी, भक्ति, विनय और चाल को पहचान कर सुन्दर मीठी वाणी से सबका यथा योग्य सम्मान करते हैं. यह स्वभाव तो संसारी राजाओं का है, कोसल नाथ श्री रामचन्द्र जी तो चतुर शिरोमणि हैं. 


रीझत राम सनेह निसोतें। 
को जग मंद मलिनमति मोतें।⁠। 


श्री राम जी तो विशुद्ध प्रेम से ही रीझते हैं, पर जगत्‌ में मुझ से बढ़कर मूर्ख और मलिन बुद्धि और कौन होगा?


सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु ⁠। 
उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु ⁠।⁠। 


तथापि कृपालु श्री रामचन्द्र जी मुझ दुष्ट सेवक की प्रीति और रुचि को अवश्य रखेंगे, जिन्होंने पत्थरों को जहाज और बन्दर-भालुओं को बुद्धिमान मन्त्री बना लिया. 


हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास। 
साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास।⁠।  


सब लोग मुझे श्री रामजी का सेवक कहते हैं और मैं भी बिना लज्जा संकोच के कहलाता हूँ कहने वालों का विरोध नहीं करता कृपालु श्री राम जी इस निन्दा को सहते हैं कि श्री सीतानाथ जी जैसे स्वामी का तुलसीदास सा सेवक है.


निर्गुण और सगुण से भी ऊपर है राम नाम महिमा, राम नाम के जाप से होते हैं सब दुख दूर


सुमिरि पवनसुत पावन नामू…हनुमान जी ने राम नाम का जाप करके वश में किया श्रीराम को